Tuesday, November 29, 2011

पल-पल , छिन-छिन सरकते सरकते जाने कब
बड़े लम्हों में तब्दील हो जाते हैं ... अहसास तब होता है
जब यूँ लगने लगता है कि वक़्त का एक बड़ा हिस्सा
आने वाले वक़्त के एक और हिस्से को सामने लाने के लिये
हमसे विदा ले चुका है .... लीजिये एक ग़ज़ल हाज़िर करता हूँ ।



ग़ज़ल


माना , कि मुश्किलें हैं , रहे-ख़ारदार में
बदलेगा वक़्त , गुल भी खिलेंगे बहार में

यादों में तेरी , फिर भी , उलझना पसंद है
उलझी तो है हयात, ग़म--रोज़गार
में

इंसान को जाने है ख़ुद पर ग़ुरूर
क्यूँ
है ज़िन्दगी , मौत ही जब इख़्तियार में

मानो , तो सब है बस में , मानो, तो कुछ नहीं
इतना-सा ही तो फ़र्क़ है बस जीत-हार में

चाहत , यक़ीन , फ़र्ज़ , वफ़ा , प्यार , दोस्ती
कल रात कह गया था मैं, क्या-क्या, ख़ुमार
में

नफ़रत के ज़ोर पर तो किसी को कुछ मिला
पा लेता है बशर तो, ख़ुदा को भी प्यार
में

तय की गई थीं जिन पे घरों की
हिफाज़तें
शामिल रहे थे लोग वही , लूट-मार
में

और आज़माओ मुझको अभी , मेरी हसरतो
बाक़ी बहुत जगह है दिल--दाग़दार
में

"दानिश" अब उनसे कह दो, आएँ वो आज
भी
मिलने लगा है मुझको सुकूँ, इन्तज़ार में




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रहे-खारदार = कंटीली राह
हयात = ज़िन्दगी
ग़म ए रोज़गार = दुनियावी उलझने/कामकाज की चिंता
इख्तियार में = बस में/क़ाबू में
दिल ए दागदार = क़ुसूरवार/बदनाम दिल
सुकूँ = आनंद
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Thursday, November 3, 2011

नमस्कार
परिस्थितियों की रुकावटें मन की ख्वाहिशों पर
हमेशा भारी रहती हैं . कुछ ऐसी मजबूरियाँ/मुश्किलें रहीं
कि पिछले दो-तीन माह से मैं आप सब साहित्यकार मित्रों के
ब्लॉग पर उपस्थित न हो पाया . इस बात के लिए मैं आप सबसे
क्षमा चाहता हूँ ... आप सबकी आमद मेरे लिए हमेशा ही
प्रेरणा और उत्साहवर्द्धन का स्रोत रही है , जिसके लिए
धन्यवाद कहना मात्र एक औपचारिकता पूरी करने जैसा ही होगा .
लीजिये एक ग़ज़ल लेकर हाज़िर-ए-ख़िदमत हूँ ........





ग़ज़ल



बात रखिए , तो ख़ूबतर रखिए
लफ़्ज़-दर-लफ़्ज़ कुछ हुनर रखिए

आसमानों तलक नज़र रखिए
और ख़्वाबों को हमसफ़र रखिए

जो भी करना है, कर गुज़रना है
यूँ न दिल में अगर-मगर रखिए

कीजिये आस के दिये रौशन
आँधियों पर भी कुछ नज़र रखिए

जो फ़ना कर दे मुस्कराहट को
उस उदासी को ताक़ पर रखिए

मौत ही ज़िन्दगी का आख़िर है
क्यूँ भला दिल में कोई डर रखिए

दिल में भी ताज़गी हो फूलों की
ज़हन भी खुशबुओं से तर रखिए

ज़िन्दगी तो ख़ुदा की नेमत है
चाह जीने की उम्र-भर रखिए

खोए रहिये न ख़ुद-तलक "दानिश"
कुछ ज़माने की भी ख़बर रखिए


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