Saturday, January 7, 2012

मौसम का दबदबा क़ाइम है ... सर्दी पूरे शबाब पर है
सूर्य देव के दीदार भी नहीं हो पा रहे हैं,, और सुबह शाम की
धुंद और घने कोहरे से हाथ को हाथ सुझाई नहीं देता
बस हैं तो जगह-जगह छोटे-बड़े अलाव,, थोड़ी-थोड़ी मूंगफली,,
गुड वाली गचक...और आपके लिए... ग़ज़ल के कुछ शेर.... !!


ग़ज़ल

ज़रा-ज़रा-सी बात पे वो झूट बोलता तो है
उसी का एतबार बार-बार कर लिया तो है

फ़ज़ा-फ़ज़ा महक गयी, समाँ बहक गया तो है
क़रीब आके, गुनगुना के, उसने कुछ कहा तो है

भला नहीं, बुरा सही, ख़याल में उसी के हूँ
शिकायतों में ही सही मुझे वो सोचता तो है

घिरी हैं जो भँवर में, वो भी पार होंगीं कश्तियाँ
यक़ीन-ए-नाख़ुदा नहीं , नवाज़िश-ए-ख़ुदा तो है

गया जहाँ कहीं भी वो, भुला सका न घर कभी
तलाश-ए-रोज़गार में वो दर-ब-दर फिरा तो है

सिमट चुका है आज हर बशर बस अपने आप में
कि जज़्ब-ए-दुआ-ओ-ख़ैर आज घट गया तो है

ख़ला तलाशने की आज हो रही हैं कोशिशें
हयात-ए-बदगुमान का सुराग़-सा मिला तो है

अदब-शनास, रुशनास 'दानिश'-ए-अज़ीम तू
ख़ुदा भला करे तेरा , तू ख़ुद से आशना तो है

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फ़ज़ा=वातावरण/चौतरफा
यक़ीन-ए-नाख़ुदा=नाविक का भरोसा
नवाज़िश-ए-खुदा=भगवान् कि कृपा
ख़ला=अन्तरिक्ष
हयात-ए-बदगुमान=संदिग्ध जीवन/जीवन के आसार
जज़्ब-ए-दुआ-ओ-ख़ैर=भलाई और नेकी की भावनाएं
अदब-शनास=साहित्य का ज्ञाता
रुशनास=परिचित/वाक़िफ़
अज़ीम=महान
आशना=परिचित
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