Thursday, October 22, 2009

मजबूर बहुत करता है ये दिल तो जुबां को ....अचानक ही
ये गीत ज़हनमें आ गया ..आप सब ने तो सुना ही होगा ...
तसव्वर कीजिये ...ज़िन्दगी कई बार इंसान को इम्तिहानात
और आज़माईश में डाल कर ख़ुद जीत जाती है ...हालात ऐसे
न-साज़गार कि मन का भारीपन होटों की बेजान खामोशी में
तब्दील हो जाता है ..वक़्त की बेरूखी आंखों के खालीपनको भांप कर
और भी शदीद हो उठती है । काश ! बेबसी, कभी इंसान पर इस क़दर
भी न हावी होने पाये ...और ऐसे में खुदावंद का नाम तो
यक़िननबहुत बड़ा संबल बन जाता है ........



ग़ज़ल


दाता , नाम कमाई दे
साँसों में सच्चाई दे

दर्द-ओ-ग़म हँसके सह लूँ
हिम्मत को अफ़्ज़ाई दे

मेहनत-कश लोगों को तू
मेहनत की भरपाई दे

शोरो-गुल में क़ैद हूँ मैं
अब थोड़ी तन्हाई दे

चैन मिले जो यूँ उसको
दे , मुझको , रुसवाई दे

कह लूँ दिल की बात तुम्हें
लफ्ज़ों को सुनवाई दे

एक सनम मेरा भी हो
मुख़लिस , या हरजाई , दे

हर दिल में हो नाम तेरा
हर दिल को ज़ेबाई दे

मेरे नेक ख़यालों को
वुसअत औ` गहराई दे

आँखें रिमझिम भीग सकें
यादों की पुरवाई दे

आँगन-आँगन खुशियाँ हों
घर-घर में रा' नाई दे

कर मुझको तौफ़ीक़ अता
'दानिश' को अगुवाई दे



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afzaaee = vriddhee,,, मुख़लिस=निष्कपट
हरजाई=निष्ठाहीन,,, ज़ेबाई = नैसर्गिक सौन्दर्या
वुस अत=विस्तार,,, रा`नाई= सुन्दरता
मुफ़लिस=मासूम/गरीब
तौफ़ीक़=ईश्वरीय सामर्थ्य
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