प्रकृति के क़रीब होना, अपने-आप के क़रीब होना ही है
क़ुदरत खिलखिलाती है मानो ज़िन्दगी खिलखिलाती है
खुले आसमान में आज़ादी से उड़ते परिंदे हर बार
अपनी मासूम ज़बान में किसी ना किसी
रूप में कोई ना कोई अच्छा पैग़ाम दे ही जाते हैं....
ख़ैर,,, एक नज़्म हाज़िर-ए-ख़िदमत है .........
नन्ही चिड़िया
रोज़ सुबह
भोर के उजले पहर में
सूरज की मासूम किरणों सँग
मेरे घर की तन्हा मुंडेर पर
वक्त की पाबंदी
और
फ़र्ज़ की बंदिशों से बेख़बर
इक नन्ही-सी चिड़िया
यहाँ-वहाँ बिखरा
दाना-दुनका चुगती
उडती ,
फुदकती ,
चहचहाती है
शुक्र अल्लाह !!
आज ऐसी भीड़ में भी
ज़िन्दगी...
कुछ पल ही सही
हँसती ,
खेलती ,
मुस्कराती है ...
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