Wednesday, November 19, 2008

भोर

तुम्हारे आने से
मेरे जीवन में जैसे
फिर से भोर हो गयी है
गगन में अब फिर
परिंदे चहकने लगे हैं
और इनका अपने घरों के लिए
तिनके बटोरना
मुझे फिर अच्छा लगने लगा है
ये खुशबुओं के काफिले जैसे
तेरा ही नाम गुनगुना रहे हैं
चढ़ते सूरज की लालिमा
मुझे फिर
संवारने को उत्सुक है
मेरे कान फिर
मन्दिर की घंटियों की गूँज से
स्वरमयी होने लगे हैं
और मेरा सर
स्वयं ही बंदगी के लिए झुक गया है

--------दानिश भारती--------