Monday, August 16, 2010

इस बार स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर कुछ बहुत ही
अच्छी और स्तरीय रचनाएं / ग़ज़लें पढने को मिलीं ...
आपने सीमित ज्ञान और व्यस्तताओं के कारण
मैं समय रहते आपसे कुछ सांझा ना कर पाया...
eक कविता जो कभी पहले लिखी थी और कल यहाँ
"बाल-भवन" में संपन्न हुए स्वतंत्रता-दिवस समारोह में
वहाँ रह रहे अनाथ बच्चों दुआरा समूह-गीत की तरह गाई गयी

उसी को आप भी दोहरा लीजिये .......



पुण्य धरा की आरती



अपनी पुण्य धरा पर, हैं बलिहारी हम सब भारती
मन आशा के दीप जला कर , नित्य उतारें आरती


हिम-आलय का ताज अनूठा, माथे का सम्मान है
बहते जल की धाराओं की भी, अपनी इक शान है
खेतों की माटी की ख़ुशबू , जीवन की पहचान है

इन सब की सुन्दरता, देखो, सब के मन को तारती
मन आशा के दीप जला कर नित्य उतारें आरती....


वन-जंगल , हरियाली , रक्षा करते हैं परिवेश की
मौसम की करवट से, आभा निखरे इसके वेश की
कुदरत के अनगिनत अनुपम स्रोत, धरोहर देश की

जलवायु की शीतलता , धरती का रूप सँवारती
मन आशा के दीप जला कर नित्य उतारें आरती ....


अपनी धरती माँ से हम को, तन-मन-धन से प्यार हो
सारे जग की शान बनें हम , ये सपना साकार हो
इसकी गोदी में ही जीना-मरना , सब स्वीकार हो

माँ भी अपने सब बच्चों को पल-पल देख, दुलारती
मन आशा के दीप जला कर नित्य उतारें आरती




_________________________________________
_________________________________________