Sunday, February 12, 2012

वक़्त और हालात की अपनी अलग चाहतें हैं
मन का बहलना या बुझ जाना,
सब इन्हीं चाहतों के वश में ही रहता है
किसी तरह के भी ख़ालीपन को भरते रहने की कोशिश
करते रहना अहम भी है और ज़रूरी भी .
ख़ैर , एक ग़ज़ल के चंद शेर हाज़िर हैं ......



ग़ज़ल

शौक़ दिल के पुराने हुए
हम भी गुज़रे ज़माने हुए

बात, आई-गई हो गई
ख़त्म सारे फ़साने हुए

आपसी वो कसक अब कहाँ
बस बहाने , बहाने हुए

दूरियाँ और मजबूरियाँ
उम्र-भर के ख़ज़ाने हुए

आँख ज्यों डबडबाई मेरी
सारे मंज़र सुहाने हुए

याद ने भी किनारा किया
ज़ख्म भी अब पुराने हुए

दिल में है जो, वो लब पर नहीं
दोस्त सारे सयाने हुए

भूल पाना तो मुमकिन न था
शाइरी के बहाने हुए

ख़ैर , 'दानिश' तुम्हे क्या हुआ
क्यूँ अलग अब ठिकाने हुए

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