Tuesday, December 30, 2008

सभी साथियों को

दानिश की तरफ़ से

नव - वर्ष २००९
की
शुभ - कामनाएं


खुदा से दुआ है कि आने वाला
नया साल आप सब के लिए
नई उम्मीदें
नये रास्ते
नयी मंजिलें
नयी सफलताएं
ले कर आए....
आप सब खुश रहें ...
खुशहाल रहें....
और आप सब अपनी
साहित्यिक रुचियों के
साथ जुड़े रहें..........

आमीन !!


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Thursday, December 11, 2008

मेरी कविता

तेज़ , बहुत तेज़ दौड़ती
इस जिंदगी की
भागमभाग से हार कर ,
अजनबियत के सायों से परेशान हो कर ,
अकेलेपन को ओढे हुए
मैं . . .
जब भी कभी
किसी थकी-हारी शाम की
उदास दहलीज़ पर आ बैठता हूँ
तो
सामने रक्खे काग़ज़ के टुकडों पर
बिखरे पड़े
बेज़बान से कुछ लम्हे
मुझे निहारने लगते हैं...
मैं . .
उन्हें.. छू लेने की कोशिश में...
अपने होटों पर पसरी
बेजान खामोशी के रेशों को
बुन बुन कर
उन्हें इक लिबास देने लगता हूँ
और वो तमाम बिखरे लम्हे
लफ्ज़-लफ्ज़ बन
सिमटने लगते हैं....
और अचानक ही
इक दर्द-भरी , जानी-पहचानी सी आवाज़
मुझसे कह उठती है ....
मैं... कविता हूँ ...............!
तुम्हारी कविता .............!!
मुझसे बातें करोगे ......!?!

Tuesday, December 2, 2008

एक तुम...

एक तुम ,
कि समाये हो जो
शब्द - शब्द की रूह में
सोच के विशाल दायरों में
कल्पना की अथाह उड़ान में
देख पाने की आखिरी मंज़िल तक
स्पर्श की सीमाओं से आज़ाद
महसूस कर पाने की अनुपम परिभाषा में
आकाश के असीम विस्तार में
आदि से अंत तक
अनहद नाद की पावन गूँज में ,
तो फिर .........!!
मिल पाना कैसा .........?
बिछड़ जाना कैसा .......?

Wednesday, November 19, 2008

भोर

तुम्हारे आने से
मेरे जीवन में जैसे
फिर से भोर हो गयी है
गगन में अब फिर
परिंदे चहकने लगे हैं
और इनका अपने घरों के लिए
तिनके बटोरना
मुझे फिर अच्छा लगने लगा है
ये खुशबुओं के काफिले जैसे
तेरा ही नाम गुनगुना रहे हैं
चढ़ते सूरज की लालिमा
मुझे फिर
संवारने को उत्सुक है
मेरे कान फिर
मन्दिर की घंटियों की गूँज से
स्वरमयी होने लगे हैं
और मेरा सर
स्वयं ही बंदगी के लिए झुक गया है

--------दानिश भारती--------