Tuesday, October 13, 2015

लोग
जानते हैं तुम्हें
अपने-अपने ईष्ट के नाम से..
करते रहते हैं तुमसे
अपने हर-हर दुःख की बात
इक उम्मीद-सी रहती है उन्हें
कि सुन ली जाती है
उनकी कोई न कोई बात
कभी तो ...
और इसी धुन में
वो ख़ुद को ख़ुद से जुड़ा पाते हैं
ज़िंदा रहते हैं
ज़िन्दगी भर ही ...
हे परमेश्वर !
प्रार्थना है तुमसे
टूटने न पाए उनकी ये आस..
उनका ये विश्वास...
कभी भी . . .!!!