Tuesday, August 25, 2009

नमस्कार !!
कोई वक्त था कि
खतों कि बड़ी एहमियत हुआ करती थी ....ख़त लिखना , ख़त पढ़ना ,
ख़त का इंतज़ार करना सभी कुछ बहुत अच्छा लगता था ...
और वो ख़त..... जो मानिए आँख की सियाही से लिखे गए हों ...
आंखों में उभरते कतरों के साथ पढ़े गए हों ...
उन खतों की कैफ़ियत का अंदाज़ा तो आप को मालूम
ही होगा ....... खैर ! एक नज़्म आपकी खिदमत में हाज़िर कर रहा हूँ ।



वो ख़त


अभी अभी .......अचानक
दिल में इक एहसास ने अंगडाई ली
एक जाना-पहचाना ,
अपना-सा एहसास
यूँ लगा .....
जैसे
तेरा धुंधला सा कोई अक्स
तेरा खुशबु से भरा इक ख़याल
तेरे क़दमों की मखमली-सी इक आहट
तेरे हाथों की रेशम-सी इक छुअन
ये सब... .
मेरे ज़हनो-दिल को गुदगुदाते हुए
जैसे....
मुझे छू कर गुज़र गए हैं
हाँ ! याद आया !!
आज
तेरे उस ख़त को
देर तक पढ़ते-पढ़ते....
मैंने ....
अपनी थकी-मांदी
पलकों पर रख छोड़ा था




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Monday, August 10, 2009

kavita

ग़ज़ल की बंदिशों के इलावा कविता या नज़्म की आज़ादी का
अपना ही लुत्फ़ है । कई विद्वान् रचनाकारों द्वारा अच्छी-अच्छी
कविताएँ लिखी जाती हैं और पढने वालों तक ब.खूबी पहुंचाई
जा रही हैं । मन में एक नज़्म का ख़याल आया है ।
अब एक अदना-सी कोशिश है
जो भी है ....मन से है ...मन के लिए है ...आप सब के लिए है ।



उधेड़-बुन





मन की उकताहट ,

मन की बेकली .....

अचानक जब टीस बन करवट लेती है...तो...

जाने कयूं

चुभने-चुभने सा लगता है सब ...

आंखों का सूनापन

होटों पर पसरी चुप्पी

ख़ुद ही से बेगानगी

बेतरह सी उदासी

और कहीं......

अन्दर ही अन्दर

चल पड़ती है इक उधेड़-बुन .....

जैसे

आँख के किसी बेजान क़तरे को

बड़ी हिफाज़त से

लफ्जों में तब्दील करने की कोशिश

ज़हनमें कुलबुलाते किसी गुबार को

खयाली लिबास देने की तड़प

सोच , एहसास , जज़्बात को

इज़हार देने की छटपटाहट ......

और......धीरे-धीरे....

कुछ नक़्श ......

उभरने भी लगते हैं.....

लम्हा-लम्हा पिघलती रात की आगोश में

जाने क्या-क्या समाता चला जाता है

और अगली सुबह ......

एक काग़ज़ के टुकड़े पर

बिखरे पड़े अल्फाज़ को

मैं .......

निहारता हूँ....

फिर अपनी किताबों में संभाल कर रख कर

सोचने लगता हूँ

मानो ....

मैंने कोई कविता कह ली हो ......

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