Sunday, January 31, 2010

कुछ शख्स ऐसे भी होते हैं....जिन की मन की सच्चाईयों और
फ़न की खूबियों से आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते
कभी कभी किसी से कितनी भी बातें कर लो ...
हर बार कम लगने लगती हैं.... और कभी ऐसा हो जाता है
कि किसी से की हुई बहुत कम बातें भी कम नहीं
लगतीं...
है तो ये एक अनबूझ पहेली ही,,,,,लेकिन अखरती नहीं
लगता है किसी पुरानी फिल्म का जुमला...!!
मुझे भी लगा...... अब.... कोई बात तो करनी ही थी आपसे (:
ख़ैर.....एक ग़ज़ल ले कर हाज़िर हूँ





ग़ज़ल



पाँव जब भी इधर-उधर रखना
दिल में अपने ख़ुदा का डर रखना

रास्तों पर कड़ी नज़र रखना
हर क़दम इक नया सफ़र रखना

वक़्त जाने कब इम्तिहान माँगे
अपने हाथों में कुछ हुनर रखना

मंज़िलों की अगर तमन्ना है
मुश्किलों को भी हम-सफ़र रखना

खौफ़ रहज़न का तो बजा, लेकिन
रहनुमा पर भी कुछ नज़र रखना

बात किस से करोगे फुर्क़त में
आंसुओं को सँभाल कर रखना

चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे
बंदिशें मुझ पे सोच कर रखना

हक़ जताना अज़ीज़ है जो तुम्हें
फ़र्ज़ को भी अज़ीज़तर रखना

तंज़ जब भी करो किसी पे अगर
सामने ख़ुद को पेशतर रखना

आएं कितने भी इम्तिहाँ 'दानिश'
अपना किरदार मोतबर रखना






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रहज़न=लुटेरा ,,,,,, रहनुमा=मार्ग-दर्शक
बजा=सही/ठीक,,,,,,फुर्क़त=वियोग,उदासी ,,,,,,
अज़ीज़=प्रिय
अज़ीज़तर=ज़्यादा प्रिय ,,,,,, तंज़=कटाक्ष
पेशतर=पहले ,,,,,, किरदार=चरित्र
मोतबर=विश्वसनीय .

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Saturday, January 16, 2010

ज़िन्दगी , इंसान को कब किस तरह के इम्तिहान में

डाल दे, कोई सोच भी नहीं सकता .....

आज हम तरक्क़ी की जाने कितनी मंजिलें तयकर चुके हैं ...

फिर भी अपने आप को ढून्ढ पाने में,,,

ख़ुद को ख़ुद से मिलवा पाने में ना-कामयाब ही लगते हैं .....

लेकिन ज़िन्दगी है....जीना है....तो ये सब सुनना है , सहते रहना है ....

एक नज़्म हाज़िर कर रहा हूँ ......



आज भी


दिख रही है .... आज

जाने...कितनी ही किताबों के

अनगिनत पन्नों पर बिखरी

ढेरों..ढेरों... तालीम ...


दिख रही है ... आज

हर तरफ पनप रही

इक-दूसरे से आगे...

बस, आगे निकल जाने की

आपसी होड़ ...


दिख रही है ... आज

आँखों को चुंधियाती

इठलाती , इतराती ,

क़ुदरत का मुहँ चिढ़ाती

बाज़ारी चकाचौंध ....


दिख रही है ... आज

नए बदलाव की ओट लिए

हमारी नई सभ्यता ,
नई तहज़ीब ...


लेकिन ....

इन सब के बावजूद

दिख रहा है ...

आज भी

अपनी हर छोटी-बड़ी ज़रुरत को

पूरा करने की कोशिश में

चलता ,

गिरता ,

थकता ,

टूटता ....

आम आदमी



दिख रहा है

आज भी .......


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Friday, January 1, 2010

आप सब को नव-वर्ष
2 0 1 0 की ढेरों शुभकामनाएं
आईये....हम सब मिल कर दुआएं करें कि
आने वाला साल दुखों की दवा बन कर आये
सुखों का खज़ाना भी साथ लाये....
इंसान,,,इंसान की क़द्र करे....और हर बशर
दूसरों के दुखों को भी बांटने का जतन करे......
एक ग़ज़ल हाज़िर करने की इजाज़त चाहता हूँ
उम्मीद करता हूँ कि आप मेरी प्रार्थना में शामिल रहेंगे.........






ग़ज़ल


नयी दस्तक , नए आसार , ओ साथी
सँवर जाने को हैं तैयार , ओ साथी


करें, मस्ती में हो सरशार , ओ साथी
नई इक सुबह का दीदार , ओ साथी


नया साल आये , तो, ऐसा ही अब आये
मने, हर दिल में इक त्यौहार , ओ साथी


हर इक आँगन में महकें आस के बूटे
सजे ख़ुशबू से हर घर-द्वार , ओ साथी


चलो, नफ़रत का हर जज़्बा मिटा कर हम
मुहोब्बत का करें इज़हार , ओ साथी


जियें इंसान सब इंसान ही बन कर
बहुत अब हो चुके अवतार , ओ साथी


करें कोशिश यही, हर ख़्वाब हो पूरा
मिले हर सोच को आकार , ओ साथी


लगन, मेहनत की राहें सख्त हैं, माना
कभी मानें नहीं हम हार , ओ साथी


करें 'दानिश' यही अब प्रार्थना मिल कर
चमन अपना रहे गुलज़ार , ओ साथी



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सरशार = उन्मत्त , परिपूर्ण
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