Saturday, February 27, 2010

नमस्कार !

होली का त्यौहार आ पहुंचा है ....रंगों की फुहार से माहौल

खुशनुमा हुआ जाता है...इस मौक़े पर एक रीत ये भी चली आ रही है कि

हास्य और व्यंग्य का बोल-बाला रहता है...साहित्य में भी हास-परिहास

रचना एक परम्परा के रूप ले चुका है...हंसना - मुस्कराना अच्छा लगता है

वो गीत है ....."मुस्कराओ कि जी नहीं लगता ..."(लताजी) या

"हंसता हुआ नूरानी चेहरा....",,,,ऐसे कितने ही गीत ज़हन में आ जाते हैं

ये और बात है कि मुकेश जी का गायाये गीत भी ज़हन में ही बसा रहता है ,,

"होंटोके पास आये हंसी, क्या मजाल है...."

ख़ैर .....एक हास्य रचना ले कर हाज़िर हूँ

आप सब को होली के त्यौहार की शुभकामनाएं ..................




हज़ल



आदत से मजबूर थे हम, मन फिर ललचाया रस्ते में

कल फिर उस लड़की को हमने खूब सताया रस्ते में


नाक कटे, या पगड़ी उछले, हमने कुछ परवाह न की

ज़िद में आ कर हमने सबको नाक चिढ़ाया रस्ते में


'परले दर्जे के दादा' के हम इकलौते बेटे हैं

आते-जाते हमने सब को ये जतलाया रस्ते में


सब गुंडे हैं दोस्त हमारे , थाने में पहचान भ है

ऐसा रौब जमा कर , इक-इक को धमकाया रस्ते में


गुंडागर्दी , सीनाज़ोरी , मन मर्ज़ी , छीना झपटी

रोज़ नयी आफ़त से अपना खेल दिखाया रस्ते में


सब्र मोहल्ले वालों का आखिर को ख़त्म तो होना था

स्कीम बना कर सबने मिल कर जाल बिछाया रस्ते में


बच्चे-बूढ़े , मर्द-जनाना , हथियारों से लैस हुए

चप्पल-जूतों से स्वागत का द्वार बनाया रस्ते में


भांप लिया हमने , अब अपनी फूंक निकलने वाली है

आनन्-फानन में बचने का प्लान बनाया रस्ते में


लेकिन , घेर लिया लोगों ने , इक कोने में खींच लिया

फिर , बेरहमी से 'दानिश' का ढोल बजाया रस्ते में

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Monday, February 15, 2010

ज़िन्दगी जुर्म सही, जब्र सही, ग़म ही सही ...

जाने क्यूं आज सुमन कल्यानपुर का गाया ये गीत

अचानक ज़बाँ पर आ गया...आप सब ने भी सुना ही होगा

बस यूं ही सांझा करने को जी चाहा .....

एक नज़्म-नुमा कुछ ताना-बाना-सा हुआ है

आप मेहरबान दोस्तों को आदत तो है ही ...सह लेने की ....

सो...क़ुबूल फरमाईये



आज फिर



आज

आज फिर...

वो अपने आप-सा

उदास-सा दिखा

आज फिर

कुछ भी तो

अपनी तरह से न हो पाने पर...

वो झुंझलाया

आज फिर

अपने अकेलेपन के एहसास से झगड़ते हुए

हालात की तल्ख़ी से हार कर ...

वो कसमसाया

आज फिर

माहौल के खालीपन को गले लगा

ख़ुद से बात करने की कोशिश में

अचानक

वो उठा...

अपनी पलकों के कोनों पर उभर आये

चन्द क़तरों को दर्पण में निहारा

और....

हँस दिया .....

...................

आज फिर ....