Tuesday, June 8, 2010

अक्सर "आज की ग़ज़ल" ब्लॉग पर तर`ही मुशायरे / ग़ज़लों का
इंतज़ाम किया जाता है ... वहाँ एक बार ये मिसरा दिया गया ...
"कभी इनकार चुटकी में, कभी इकरार चुटकी में......"
इस बार, , वहाँ छप चुकी अपनी ग़ज़ल के कुछ शेर
आपकी खिदमत में हाज़िर कर रहा हूँ



ग़ज़ल


उठो , आगे बढ़ो , कर लो समंदर पार, चुटकी में
वगरना ग़र्क़ कर देगा तुम्हें मँझदार चुटकी में

किया , जब भी किया उसने , किया इज़हार चुटकी में
'कभी इनकार चुटकी में , कभी इकरार चुटकी में'

बहुत मग़रूर कर देता है दौलत का नशा अक्सर
फिसलते देखे हैं हमने कई किरदार चुटकी में

ख़ुदा की ज़ात पर जिसको हमेशा ही भरोसा है
उसी का हो गया बेड़ा भँवर से पार चुटकी में

परखते ही वसीयत गौर से, बीमार बूढ़े की
टपक कर आ गए जाने कई हक़दार चुटकी में

विदेशों की कमाई से मकाँ अपने सजाने को
कई लोगों ने गिरवी रख दिए घर-बार चुटकी में

किया वो मोजिज़ा नादिर, नफस दमसाज़ ईसा ने
मुबारिक हो गये थे अनगिनत बीमार चुटकी में

ख़याल-ओ-सोच की ज़द में इक उसका नाम क्या आया
मुकम्मल हो गये मेरे कई अश`आर, चुटकी में

सफलता के लिए 'दानिश' कड़ी मेहनत ज़रूरी है
नहीं होता यूँ ही सपना कोई साकार चुटकी में



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वगरना = अन्यथा , नहीं तो
मोजिज़ा = चमत्कार ,,,,, नादिर = अमूल्य, श्रेष्ठ
नफ़सदम साज़ ईसा = प्रभु यीशु (न्यू टेसतामेंट में दर्ज घटना का विवरण )
मुबारिक = भले-चंगे ,,,,,,, ख़याल-ओ-सोच = मन की कल्पना
ज़द = लक्ष्य , निशाना
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