खामोशी के किन्हीं ज़्यादा खिंच गए पलों को
कम करने में कारगर साबित होता है ...
कुछ न कहने से, कुछ कह दिया गया कहते रहना ,
आपको अपनी मौजूदगी का अहसास दिला ही जाता है...
फेस बुक पर छपी एक ग़ज़ल यहाँ भी हाज़िर है,,,
आप इसे ब्लॉग पर पहले भी पढ़ चुके हैं !!
ग़ज़ल
दाता , नाम कमाई दे
साँसों में सच्चाई दे
दर्द-ओ-ग़म हँसके सह लूँ
हिम्मत को अफ़ज़ाई दे
मेहनत-कश लोगों को तू
मेहनत की भरपाई दे
शोरो-गुल में क़ैद हूँ मैं
थोड़ी-सी तन्हाई दे
चैन मिले जो यूँ उसको
दे , मुझको , रुसवाई दे
मन की इक-इक बात कहूँ
लफ्ज़ों को सुनवाई दे
एक सनम मेरा भी हो
मुख़लिस , या हरजाई , दे
हर दिल में हो नाम तेरा
हर दिल को ज़ेबाई दे
मेरे नेक ख़यालों को
वुसअत औ` गहराई दे
आँगन-आँगन खुशियाँ हों
घर-घर में रा'नाई दे
पल-पल सच्ची राह चुनूँ
'दानिश' को अगुवाई दे
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अफजाई=अफ्जायिश/वृद्धि
मुख्लिस=निश्छल/सद्भावक
ज़ेबाई=श्रृंगार/सजावट
वुस अत =विस्तार/सामर्थ्य
रा`नाई= सुन्दरता/छटा/सौन्दर्य
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