Monday, January 19, 2015

ग़ज़ल / GHAZAL


कोई सूरत निकालिये साहिब
ख़ुद को दुनिया में ढालिये साहिब

अस्ल चेहरा छिपा रहे जिसमें
इक नक़ाब ऐसा डालिये साहिब

'वाह' कह कर निभाइए  सबसे
यूँ न कमियाँ निकालिये साहिब

ख़्वाब कोई तो फल ही जाएगा
ख़्वाहिशें ख़ूब पालिए साहिब

मैकदे में भी आपसी झगड़े
छोड़िये, ख़ाक डालिये साहिब

ये ज़बां कौन अब समझता है
आँसुओं को सँभालिए साहिब

जो हक़ीक़त बयां न कर पाए
वो क़लम तोड़ डालिये साहिब

क्या उसूल और क़ाइदा कैसा
काम अपना निकालिये साहिब

मुस्कुराहट में भी नमी, "दानिश"
बात हँस कर न टालिए साहिब