Wednesday, March 24, 2010

नमस्कार
कुछ ऐसा नहीं है ख़ास मन में कि कुछ शब्द

कह कर भूमिका बाँध ली जाये,, बस कुछ

हल्के-फुल्के वाक्य हैं जिन्हें ग़ज़ल कह कर

आपकी ख़िदमत में हाज़िर कर रहा हूँ...और

उम्मीद वोही कि आपको पसंद
आएगी...




ग़ज़ल


ग़म में गर मुब्तिला नहीं होता
मुझको मेरा पता नहीं होता


जो सनम-आशना नहीं होता

उसको हासिल ख़ुदा नहीं होता


वक़्त करता है फ़ैसले सारे

कोई अच्छा बुरा नहीं होता


मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है

मैं होता, तो क्या नहीं होता


हाँ ! जुदा हो गया है वो मुझ से

क्या कभी हादिसा नहीं होता ?

ज़िन्दगी क्या है, चंद समझौते

क़र्ज़ फिर भी अदा नहीं होता


जब तलक आग में तप जाये

देख, सोना खरा नहीं होता


क्यूं भला लोग डूबते इसमें

इश्क़ में गर नशा नहीं होता


डोर टूटेगी किस घड़ी 'दानिश'
कुछ किसी को पता नहीं
होता





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मुब्तिला=ग्रस्त
सनम-आशना=दोस्तों को चाहने वाला


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Thursday, March 11, 2010

पिछले दिनों एक मित्र द्वारा कुछ ऐसा सन्देश प्राप्त हुआ ...
"प्यार और बारिश एक-से होते हैं,,,बारिश पास रह कर
तन भिगोती है और प्यार दूर रह कर आँखें..."
असरदार पैग़ाम अक्सर मन में समा जाया करते हैं ..
ख़ैर .....आप सब की हिफाज़तों और दुआओं के नाम....
एक नज़्म हाज़िर करता हूँ






काश...




साँझ के उदास धुंधलकों में
ख़ुद अपने आप से भी दूर
कुछ तन्हा-से लम्हों को ओढ़े
उसने ...
मिट्टी की खुरदरी सतह पर
अपनी उँगलियों से
इक नाम लिखा ...
ज़रा देर
वक़्त के ठहर जाने को महसूस किया
फिर अचानक ठिठक कर
अपनी भरपूर हथेली से
उस लिखे नाम को मिटा दिया...
और
ख़ुद में वापिस लौटते हुए
वो
यकायक कह उठा
काश ....
ऐसा ही कहीं आसान हो पाता
दिल पर लिखे कुछ नक्श मिटा पाना ...
... .....
काश ......!!





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