२ अक्तूबर का दिन भारत के इतिहास में ख़ास एहमियत रखता है
इस तिथि को हम सब राष्ट्र-पिता महात्मा गाँधी जी और हमारे
भूतपूर्व प्रधान-मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी के जनम दिवस
के रूप में मनाते हैं....शास्त्री जी की सादगी और स्वाभिमान पर
और गाँधी जी के अहिंसा के सिद्धांत पर हम सब को गर्व है .......
महात्मा गाँधी जी के व्यक्तित्व को शब्दों में बाँधना आसान नही ।
एक गीतनुमा कविता प्रस्तुत है ..राष्ट्रपिता को श्रद्धांजली .....
गीत
भारत जब जब दोहराएगा आज़ादी के गान को
सब-जन तब-तब याद करेंगे बापू के बलिदान को
लन्गोती वाले बाबा की , ऐसी एक लड़ाई थी
ना गोला बरसाया कोई , ना तलवार चलाई थी
सत्य अहिंसा के बल पर दुश्मन को धूल चटाई थी
मन की ताक़त ही से उसने रोका हर तूफ़ान को
सब-जन तब-तब याद करेंगे बापू के बलिदान को...
सच की लाठी हाथों में ली, तन पर भक्ति का चोला
पाठ अहिंसा का सिखला कर हर मन में अमृत घोला
आज़ादी के रंग में रँग कर हर भारतवासी बोला
भारत माँ पर अर्पण कर देंगे हम अपनी जान को
सब-जन तब-तब याद करेंगे बापू के बलिदान को...
खादी के ताने-बाने से भारत का इतिहास रचा
हिंदू मुस्लिम सिख इसाई सब में इक विश्वास रचा
सहम गया कुख्यात फिरंगी ऐसा इक अभ्यास रचा
मान गया अंग्रेजी शासन बापू की पहचान को
सब-जन तब-तब याद करेंगे बापू के बलिदान को...
जिस गांधी ने सारे जग में हिन्दुस्तां का नाम किया
उस पर ही इक घातलगा कर अनहोनी ने काम किया
बापू ने बस राम कहा, चिर-निद्रा में विश्राम किया
वक्त नमन करता है हर पल सच्चाई की शान को
सब-जन तब-तब याद करेंगे बापू के बलिदान को .
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Wednesday, September 30, 2009
Tuesday, September 8, 2009
नमस्कार ।
ज़िन्दगी और मस्रुफियात का भी अजीब सा लेकिन पक्का रिश्ता है
फुर्सत के लम्हे चुरा पाना भी अपने आप में महारत ही है ।
इंसान , आज , जाने कयूं बस अपने आप के बारे में ही सोचने की फितरत
पाले रहने पर मजबूर सा होता जा रहा है । वजह.... वक्त है , हालात हैं , या
हमारा ये चौतरफा ....भाग-दौड़ वाला.... ख़ुद भागता-दौड़ता चौतरफा ....
खैर ....ये कहानी फिर सही ....
आप सब की खिदमत में एक ग़ज़ल लेकर हाज़िर हूँ ......
ग़ज़ल
किसी के कोई काम आओ , तो मानें
कि ख़ुद को कभी आज़माओ, तो मानें
खुशी के पलों में तो हँसते रहे हो
मुसीबत में भी मुस्कराओ , तो मानें
बनावट- नुमा ज़िन्दगी छोड़ कर तुम
हकीक़त से रिश्ता बनाओ , तो मानें
हमेशा चरागों तले है अँधेरा
भरम ये कभी तोड़ पाओ , तो मानें
रहो सामने भी , छिपे भी रहो तुम
मुहब्बत में इतना सताओ , तो मानें
किसी और में खोट कयूं ढूँढ़ते हो
कभी ख़ुद को दरपन दिखाओ, तो मानें
नए दौर के साथ चलते हुए तुम
पुरातन की रस्में निभाओ , तो मानें
परों की नही , बात है हौसलों की
इरादे फ़लक तक बनाओ , तो मानें
खफा हो के मुझसे , कहा ज़िन्दगी ने
मेरे नाज़ हर पल उठाओ , तो मानें
कई ग़मज़दा लोग, 'दानिश', मिलेंगे
उन्हें भी गले से लगाओ , तो मानें
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ज़िन्दगी और मस्रुफियात का भी अजीब सा लेकिन पक्का रिश्ता है
फुर्सत के लम्हे चुरा पाना भी अपने आप में महारत ही है ।
इंसान , आज , जाने कयूं बस अपने आप के बारे में ही सोचने की फितरत
पाले रहने पर मजबूर सा होता जा रहा है । वजह.... वक्त है , हालात हैं , या
हमारा ये चौतरफा ....भाग-दौड़ वाला.... ख़ुद भागता-दौड़ता चौतरफा ....
खैर ....ये कहानी फिर सही ....
आप सब की खिदमत में एक ग़ज़ल लेकर हाज़िर हूँ ......
ग़ज़ल
किसी के कोई काम आओ , तो मानें
कि ख़ुद को कभी आज़माओ, तो मानें
खुशी के पलों में तो हँसते रहे हो
मुसीबत में भी मुस्कराओ , तो मानें
बनावट- नुमा ज़िन्दगी छोड़ कर तुम
हकीक़त से रिश्ता बनाओ , तो मानें
हमेशा चरागों तले है अँधेरा
भरम ये कभी तोड़ पाओ , तो मानें
रहो सामने भी , छिपे भी रहो तुम
मुहब्बत में इतना सताओ , तो मानें
किसी और में खोट कयूं ढूँढ़ते हो
कभी ख़ुद को दरपन दिखाओ, तो मानें
नए दौर के साथ चलते हुए तुम
पुरातन की रस्में निभाओ , तो मानें
परों की नही , बात है हौसलों की
इरादे फ़लक तक बनाओ , तो मानें
खफा हो के मुझसे , कहा ज़िन्दगी ने
मेरे नाज़ हर पल उठाओ , तो मानें
कई ग़मज़दा लोग, 'दानिश', मिलेंगे
उन्हें भी गले से लगाओ , तो मानें
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