सभी दोस्तों को सलाम ........!
कुछ अर्सा पहले अंशु प्रकाशन दिल्ली की तरफ़ से
मशहूरो मारूफ़ ग़ज़लकार, एक आलिम फ़ाज़िल शख्सियत
उस्तादे-मोहतरम जनाब 'दरवेश' भारती जी कुशल सम्पादन में
एक नायाब पत्रिका "ग़ज़ल के बहाने" मंज़रे-आम पर आई ....
ग़ज़ल में रूचि रखने वालों के लिए ये रिसाला एक एहम दस्तावेज़
साबित हो रहा है । इस अनूठी पत्रिका में आपके 'मुफलिस' की भी
एक रचना शामिल की गई , सो आज वही ग़ज़ल मैं आप सब
दोस्तों की खिदमत में लेकर हाज़िर हो रहा हूँ .....
उम्मीद है पसंद फरमाएंगे .................................
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ग़ज़ल
वो भली थी, या बुरी, अच्छी लगी
ज़िन्दगी, जैसी मिली, अच्छी लगी
बोझ जो दिल पर था, घुल कर बह गया
आंसुओं की ये नदी अच्छी लगी
चांदनी का लुत्फ़ भी तब मिल सका
जब चमकती धूप भी अच्छी लगी
जाग उट्ठी ख़ुद से मिलने की लगन
आज अपनी बेखुदी अच्छी लगी
दोस्तों की बेनियाज़ी देख कर
दुश्मनों की बेरुखी अच्छी लगी
आ गया अब जूझना हालात से
वक़्त की पेचीदगी अच्छी लगी
ज़हन में 'दानिश' उजाला छा गया
इल्मो-फ़न की रौशनी अच्छी लगी
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41 comments:
बेहतरीन ग़ज़ल है भाई जी.... बाक़माल... वाहवा...
आला दर्ज़े की ग़ज़ल है, बहुत उम्दा ख़्यालात
nice post and nice blog
behtareen ghazal ! behad umda !
दोस्तों की बेनियाज़ी देख कर
दुश्मनों की बेरुखी अच्छी लगी
.......bahut hi shaandaar
bahut khoob muflis ji,is field main itna chota hoon ki apki tarif mein to mein kuch keh bhi nahi sakta. Phir bhi:
kya poochte ho 'darshan' kaise rahi ghazal?
Ban gay wo, 'zindagi', acchi lagi.
bhaiji,khoob likha aapne.
आ गया अब जूझना हालात से
वक़्त की पेचीदगी अच्छी लगी
क्या कहें मुफ़लिस जी अब....उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़
मतले में तो पूरा सच उड़ेल दिया है जीवन का और वो भी इतने सहज और सुंदर शब्दों में
फिर शेर ये सारे---हाय रे~~~~
और कयामत ढ़ाता मक्ता..
सिलसिले जो जुड़ गये तुझसे मेरे
फिर तेरी हर बात ही अच्छी लगी
aadarniya muflis ji
namaskaar..ab ye bataaye ki main kis sher ki tareef karun aur kis ki nahi ...sab ki sab behatreen hai .,
वो भली थी, या बुरी, अच्छी लगी
ज़िन्दगी, जैसी मिली, अच्छी लगी
बोझ जो दिल पर था, घुल कर बह गया
आंसुओं की ये नदी अच्छी लगी
दोस्तों की बेनियाज़ी देख कर
दुश्मनों की बेरुखी अच्छी लगी
आ गया अब जूझना हालात से
वक़्त की पेचीदगी अच्छी लगी
yaar aap itne acche sher mat likha karo,chunaav men pareshaani hoti hai ..
well, great job this time. kudos ..
aap ustaad ho.. chele ka salaam le lijiye..
bhaiyya ,kavita padhwayiye.. plssssssssssssssssssssssssssssssssss
bahut din hue..
aapka
chela
vijay
ज़हन में 'मुफलिस' उजाला छा गया
इल्मो-फ़न की रौशनी अच्छी लगी
bahut khoob!
Dear Muflis bhai can I have Your mail id pls , you can send me mail on,. satpalg.bhatia@gmail.com
बोझ जो दिल पर था, घुल कर बह गया
आंसुओं की ये नदी अच्छी लगी
....बहुत बेहतरीन ग़ज़ल. हर शेर बेहद उम्दा.
गजल बहुत अच्छी लगी. साधुवाद. गजल की तकनीकी जानकारी मुझे नहीं है. लेकिन लगता है इस पैमाने पर भी गजल खरी है,क्योंकि प्रवाह सुंदर है.
पढ़ कर ग़ज़ल ऐसा लगा के "ठीक है",
जब जाना कि "मुफलिस" की है , अच्छी लगी .
Bahut umda ha aapki gazal...
कुछ अपने से लगे ये खयाल
चांदनी का लुत्फ़ भी तब मिल सका
जब चमकती धूप भी अच्छी लगी
bahut achhe ....
आपकी ग़ज़ल प्रकाशित हुई ,आपको बहुत बधाई /अपन ब्लॉग पर लिख देते है कुछ पाठक कमेन्ट भी देते है खुशी भी होती है ,ब्लॉग पर हमारी गजल किसने पढी सराही हमें मालूम रहता है ,पत्रिका में प्रकाशित हमारी रचना किसी ने पढी या नहीं ,सराही या नहीं हमको मालूम नही होता है परन्तु पत्रिका में प्रकाशित होने पर होने वाली खुशी निराली ही होती है /और आपकी गजल तो किसी भी पत्रिका को भेजते प्रकाशित होती ही /
भाई श्री मुफलिस जी,
आप तो नाम के ही मुफ़लिस हैं लेकिन ख़्यालों से आप बहुत अमीर दिख रहे हैं आपके दीवानों में एक और दीवाना और जुड़ गया साहब।
वाह वाह
हमें भी गौतम की जी की ही बात दोहरानी है
उन्ही की तरह दिल से,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
सिलसिले जो जुड़ गए तुझ से मेरे,
फ़िर तेरी हर बात ही अच्छी लगी...
माफ़ करें जबानी बातचीत ही इतनी हो जाती है.....के ब्लॉग को तो ध्यान ही नही आता,,,,,,,,,
जबके इस ब्लॉग के शुक्रगुजार भी हैं,,,,
जाग उट्ठी ख़ुद से मिलने की लगन
आज अपनी बेखुदी अच्छी लगी .
बेहतरीन ग़ज़ल . साधुवाद
bahut hi umda gazal... dil ko chhhu gayi.
itna hi kahunga.
gazal achhi lagi...
:)
बहुत बढ़िया. आभार.
बोझ जो दिल पर था, घुल कर बह गया
आंसुओं की ये नदी अच्छी लगी
बहुत अच्छा gazal है
जरूर .
आप जैसो से ही सीखने को मिलता है.
धन्यवाद.. महावीर जी की ही नहीं आपकी भी बातो को सर आँखों पर रखता हूँ. बहुत बहुत शुक्रिया जनाब आपका. यदि आप मेरे ब्लॉग पर आते रहेंगे तो हो सकता है आपकी ज़मात में आने में मुझे ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा ओर में भी बेहतर कुछ लिखना सीख लूँगा. आभार
bahut badiyaa gazal hai bdhai
Bahut achchi lagi aapki ghazal.Badhai.
आ गया अब जूझना हालात से
वक़्त की पेचीदगी अच्छी लगी
ज़हन में 'मुफलिस' उजाला छा गया
इल्मो-फ़न की रौशनी अच्छी लगी
bahut hi umda ghazal.....
आप की गज़ल पढ़कर अपना एक शेर याद आया -
"शररअफशां को मशहूर थे हुस्नेसाद,
शरफे-मुलाजमत को हमने भी क्या-क्या न किया |
आप की ये सादा बयानी ...
देखना एक दिन दुनिया होगी दीवानी |
वो भली थी, या बुरी, अच्छी लगी
ज़िन्दगी, जैसी मिली, अच्छी लगी
Bahut gahre arthon wali panktiyan. Swagat.
Dilnasheen hai kalam Muflis ka
Jis mein hai fikr o fan ki aamezish
Ahmad Ali Barqi Azmi
देख कर मुफलिस का मेयारी कलाम
मुझको उनकी शायरी अच्छी लगी
यह ग़जल है फिक्रो फन का इम्तेज़ाज
मुझको इसकी दिलकशी अच्छी लगी
डा. अहमद अली बर्क़ी आज़मी
वो भली थी, या बुरी, अच्छी लगी
ज़िन्दगी, जैसी मिली, अच्छी लगी
वाह्! बहुत खूब.......क्या लिखा है.
बेहद् उम्द गजल.......
Pehle Gautam ji bat dohra dun.....
क्या कहें मुफ़लिस जी अब....उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़
मतले में तो पूरा सच उड़ेल दिया है जीवन का और वो भी इतने सहज और सुंदर शब्दों में
फिर शेर ये सारे---हाय रे~~~~
Ab to aap nam k hi Muflish hain dekhiye chahne walon ne aapko khan la khda kiya....gazal ki tarif ab bhla mai kya karun....her sher umda hai fir bhi ye do behtreen lage....
बोझ जो दिल पर था, घुल कर बह गया
आंसुओं की ये नदी अच्छी लगी
दोस्तों की बेनियाज़ी देख कर
दुश्मनों की बेरुखी अच्छी लगी
33 post tale daba hoon ek baar pehle bhi padh ke comment post kar chuka hoon, par jab doobara padhi to ZAYADA ACCHI LAGI!! chaliyea Harkrit ji ki baat daurha doon:
/////
Pehle Gautam ji bat dohra dun.....
क्या कहें मुफ़लिस जी अब....उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़
मतले में तो पूरा सच उड़ेल दिया है जीवन का और वो भी इतने सहज और सुंदर शब्दों में
फिर शेर ये सारे---हाय रे~~~~
Ab to aap nam k hi Muflish hain dekhiye chahne walon ne aapko khan la khda kiya....gazal ki tarif ab bhla mai kya karun....her sher umda hai fir bhi ye do behtreen lage....
बोझ जो दिल पर था, घुल कर बह गया
आंसुओं की ये नदी अच्छी लगी
दोस्तों की बेनियाज़ी देख कर
दुश्मनों की बेरुखी अच्छी लगी///
आ गया अब जूझना हालात से
वक़्त की पेचीदगी अच्छी लगी
bahut khoob.mere naye blog par aapki aamd ka shukriya,houslaafjai ka shukriya.bhasha ko lekar yadi galtiyan ho jayen to muaf keejiyega
ज़हन में 'मुफलिस' उजाला छा गया
इल्मो-फ़न की रौशनी अच्छी लगी
sach much achchhi lagi aapke ilm-o-fan ki roshni.
tamam she'r achchhe nikale hai.
mubarakbaad
"Is me to hai Zindagi chhai hui,
Is liye to ye Gazal achchhi lagi"
wah, Janab Zindagi ke bare mai khoob kahe dala aapne.
congrets, aap Muflis ho hi nahi sakte.
बढ़िया गजल पढ़ने में काफी मजा आया । लिखते रहिए आभार
बेहतरीन है यह ग़ज़ल, एक एक शेर मोती की तहर, बहुत ही खूबसूरत शेरों का पुलिंदा, आपने तो हमें अपने मुरीद कर लिया
दोस्तों की बेनियाज़ी देख कर
दुश्मनों की बेरुखी अच्छी लगी
ये लाइनें विशेष अच्छी लगीं.वैसे तो सारी गज़ल ही अच्छी है
वाह! मुफ़लिस जी।
बोझ जो दिल पर था, घुल कर बह गया
आंसुओं की ये नदी अच्छी लगी...
वाह! महावीर जी की वो गज़ल याद आ गई।
ग़म की दिल से दोस्ती होने लगी
ज़िन्दगी से दिल्लगी होने लगी
जब मिली उसकी निगाहों से मिरी
उसकी धड़कन भी मिरी होने लगी
ज़ुल्फ़ की गहरी घटा की छाँव में
ज़िन्दगी में ताज़गी होने लगी
बेसबब जब वो हुआ मुझ से ख़फ़ा
ज़िन्दगी में हर कमी होने लगी
बह न जायें आंसू के सैलाब में
साँस दिल की आखिरी होने लगी
आंसुओं से ही लिखी थी दासतां
भीग कर क्यों धुन्दली होने लगी
जाने क्यों मुझ को लगा कि चांदनी
तुझ बिना शमशीर सी होने लगी
आज दामन रो के क्यों गीला नहीं ?
आंसुओं की भी कमी होने लगी
तश्नगी बुझ जायेगी आंखों की कुछ
उसकी आंखों में कमी होने लगी
डबडबायी आंखों से झांको नहीं
इस नदी में बाढ़ सी होने लगी
इश्क़ की तारीक़ गलियों में जहाँ
दिल जलाया, रौशनी होने लगी
आ गया क्या वो तसव्वर में मिरे?
दिल में कुछ तस्कीन सी होने लगी
मरना हो, सर यार के काँधे पे हो
मौत में भी दिलकशी होने लगी
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