Thursday, April 9, 2009

मुमकिन है कि आप सब विद्वान् रचनाकार , लेखक , अदब-नवाज़ दोस्त
यहाँ दस्तक दे कर कई बार वापिस चले जाते होंगे ....

अब खज़ाना कम है तो है ....मुफलिस हूँ... तो हूँ......
लेकिन एक वजह ये भी है कि कंप्यूटर पर बहुत कम बैठ पाता हूँ....
पिछली बार की कविता के बाद मन में फिर
जिद पनप उठी है कि एक कविता और आपकी खिदमत में पेश
करुँ....हो सकता है कहीं कुछ कम भी हो...लेकिन जब आप हैं तो
हौसला
हो ही जाता है । .......



कविता


कुछ कम तो है .....

आज भी
रात के इस चुभते-से पहर में
अधलेटा-सा...... वह....
अपना बाज़ू अपने माथे पर टिकाए
फिर सोच रहा है ...
कुछ कम तो है कहीं ....
कहीं कुछ घट-सा गया है....
जिसे तलाशने की कोशिश
आज भी की थी उसने.....
दरवाजों पर लटकी बड़ी-बड़ी बेमाअना सी
झालरों के निष्प्राण रंगों में..
यहाँ वहाँ सजावट के लिए रक्खे
मंहगे-मंहगे बनावटी फूलों में..
एक-दम तीखे, शोख़ रंग-रोगन की ओट में
अपना खुरदरापन छिपाए हुए
बेजान दीवारों में...
इस कोने से उस कोने तक फैली-पसरी
खामोशी की बेजान परतों के आसपास..
और..... अपने-आप में ही सिमटे हुए
वैभव, आधुनिकता, और आडम्बर को ओढे
चलते-फिरते कुछ जिस्मों की हलचल में .....
क्या..... ?
क्या.... ? ?
इस घर से गुम हो चुके
एहसास और भावनाएं
अब इस मकान में वह कभी ढूँढ भी पायेगा भला ...?
सोचता है ....
फिर सोचता है.....
और फिर......... ...
रोज़ की तरह कर्वट बदल कर
सो जाने का बहाना करने लगता है .............




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29 comments:

Dr. Amar Jyoti said...

जीवन के बिखरते ताने-बाने से उपजी 'कुछ खो जाने' की अनुभूति का सफ़ल चित्रण। बधाई।

Vinay said...

सजीव कविता!

Yogesh Verma Swapn said...

aaj ki haqeeqat ka sajeev shabd chitra prastut kar diyaaapne.

नीरज गोस्वामी said...

बेहतरीन मुफलिस साहेब...बेहतरीन...जितनी महारत आप को ग़ज़ल लेखन पर पर है उस से कम नज़्म पर नहीं है...ज़िन्दगी की तल्खियों उदासिओं और खुशियों को समेटे आप की कवितायेँ बेजोड़ हैं और ये भी अपवाद नहीं है....इतने लाजवाब लेखन के लिए तहे दिल से बधाई कबूल करें...
नीरज

विधुल्लता said...

achchi bhaavnaayen hain...

"अर्श" said...

आदाब जनाब,
अब आपके मुफलिसी के भी क्या कहने ... बहोत खूब कुछ बही क्या कहा जा सकता है बस ये के कुछ नहीं ... वाह वाह के सिवा ...ये आखिरी की दो पंक्तियों ने जैसे झ्क्जोरते हुए अलग सी तस्कीं देती हुई आपकी कविता में

रोज़ की तरह कर्वट बदल कर
सो जाने का बहाना करने लगता है .............

ढेरो बधाई नाचीज के तरफ से ..

अर्श

रश्मि प्रभा... said...

kaafi achhi rachna....

vijay kumar sappatti said...

muflis ji
bahut acchi nazm

badhai

Pritishi said...

I had no expression for a while after reading this. The mind went blank for few seconds and I was speechless.
Its amazing!

दर्पण साह said...

MAIN KUCH KEHNE KE HAALT MAIN NAHI HOON:

रोज़ की तरह कर्वट बदल कर
सो जाने का बहाना करने लगता है .............


WAH YAHI TO DIFFERENCE HAI KISI-BHI-LAEKHAK MAIN AUR MUFILS JI AAP MAIN.

MUKAMILL NAZM. AUR BAYAN KARNE KA DHANG VAKIA MAIN SAMNE CHITR UKER DETA HAI. SAHI KAHA HAI MANU JI AAPNE.

BAHUT DER TAK SOCHTA RAHA HOON AUR AAP KI TARAH US SOCH KO VICHAROON KO SHABDON MAIN ABHIVYAKT NAHI KAR PA RAHA HOON...

kumar Dheeraj said...

जब भी आपका कविता पढ़ना शुरू करता हूं एक स्वच्छ साहित्य औऱ संवेदना की झलक दिखती है । फिर सोचने लगता हूं । बहुत बढ़िया लिखा है आपने शुक्रिया

अमिताभ श्रीवास्तव said...

आज भी
रात के इस चुभते-से पहर में...
shbdo ki nabz par haath rakh kar yadi koi rachna shuru hoti he to janaab..ukse artho aour uski gahraiyo me doobne kaa bhi apne mazaa he.
कुछ कम तो है कहीं ....
कहीं कुछ घट-सा गया है....
yahi he..antar ki aawaaz, jise jaanta to har koi he kintu ukerta nahi...
इस घर से गुम हो चुके
एहसास और भावनाएं
अब इस मकान में वह कभी ढूँढ भी पायेगा भला ...?
antas ko hole se hilaakar mastishk busy rakhne ka pryaas...
रोज़ की तरह कर्वट बदल कर
सो जाने का बहाना करने लगता है ...........
knhi kuchh kam saa nahi lagaa..roz ki tarah karvat badal kar..ye jo karvat he, uska jo badlna he, mujhe isme bahut si jhalkiya dikhaai deti he..jivan ki un tamaam baato ki jo ghatit to hui kintu vakai knhi koi kami, chhutna saa rah gaya he....

khazaana kam nahi usme keemti shbdalnkaar he..

aapne mere blog par aakar jis andaaz me mujhe saraahaa he, vah aapki saadhuvaadita ka parichayak he..sach maniye esi saadhuvadita ko me sirf naman hi kar sakta hu..aap sneh banaye rakhiye...DHNYAVAD

दिगम्बर नासवा said...

आप कहाँ मुफलिस हैं............आपसे ज्यादा अमीर नहीं कोई.........शब्दों के ताने बाने बोन्ने में आप सबसे अमीर हैं

Ria Sharma said...

रोज़ की तरह कर्वट बदल कर
सो जाने का बहाना करने लगता है .............


मुफ़लिस जी

आपका ख़जाना तो सागर की तरह है ....

वैसे ज़िन्दगी की इस कशमकश का सजीव वर्णन आपबीती सा लगता है
सुन्दर अति सुन्दर !!!!

हरकीरत ' हीर' said...

आज भी
रात के इस चुभते-से पहर में
अधलेटा-सा...... वह....

यह .... 'वह'...कौन है जी...??

अपना बाज़ू अपने माथे पर टिकाए
फिर सोच रहा है ...
कुछ कम तो है कहीं ....

हूँ...हूँ...मनु जी किधर हैं आप.....जनाब कभी दिल्ली में तन्हां खडे रहते हैं और कभी कुछ कम सा लगने लगता है ......की गल है जी.....???

कहीं कुछ घट-सा गया है....
जिसे तलाशने की कोशिश
आज भी की थी उसने.....

किसे जी.....??

दरवाजों पर लटकी बड़ी-बड़ी बेमाअना सी
झालरों के निष्प्राण रंगों में..
यहाँ वहाँ सजावट के लिए रक्खे
मंहगे-मंहगे बनावटी फूलों में..

घर की झलक यहीं बैठे बैठ देख ली हमने.....!!

इस कोने से उस कोने तक फैली-पसरी
खामोशी की बेजान परतों के आसपास..
और..... अपने-आप में ही सिमटे हुए
वैभव, आधुनिकता, और आडम्बर को ओढे
चलते-फिरते कुछ जिस्मों की हलचल में .....
क्या..... ?
क्या.... ? ?
इस घर से गुम हो चुके
एहसास और भावनाएं
अब इस मकान में वह कभी ढूँढ भी पायेगा भला ...?
सोचता है ....
फिर सोचता है.....
और फिर......... ...
रोज़ की तरह कर्वट बदल कर
सो जाने का बहाना करने लगता है .............

बहुत सुन्दर ......!!
मुफलिस जी मजाक को अन्यथा न लें ...आपने शब्दों को इतने अच्छे से बाँधा है की सबकुछ हकीकत सा लगता है.....बहुत बहुत बधाई....!!

गौतम राजऋषि said...

नज़म पढ़ी...फिर पढ़ी...फिर-फिर पढ़ी...सोचने लगा कि ये "रोज़ की तरह करवट बदल कर सो जाने का बहाना करने" वाला शख्स कैसे इस मुक्त-छंद में भी इतनी गज़ब की गेयता ले आया है..
फिर-फिर-फिर पढ़्ता हूँ....अभी लौटा हूँ गश्त से, थके पैरों को सकून देती नज़म की बुनावट...
"खज़ान कम है" पढ़ कर ठठा के हँसता हूँ ..."मुफ़लिस" के इस मुफ़लिसी उद्‍घोषणा पर मंद-मंद मुस्कुराता हूँ और वापस नज़म पे लौट आता हूँ...
कुछ अपना-सा कहता हुआ "रात के इस चुभते-से पहर में"

शुक्रिया गुरूवर !!!

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

मुफलिस जी, जीवन के ताने बाने को शब्दों के जरिए बहुत उम्दा तरीके से पिरोया है आपने.....बधाई

manu said...

मुफलिस जी,
रात में भी पढ़ के देख ली और दिन में भी ..सवेरे भी...
हर पहर चुभता सा ही लगा है इसे पढ़ते वक्त.....टिपण्णी देते हुए भी ऐसा लग रहा है के माथे टिके बाजू की जाने किस नस पर हाथ पड़ जाए....इसी वजह से देर हो गयी कमेंट करने में..शायद..
अब भी शायद ज्यादा कुछ ना लिखा जाए.....

hem pandey said...

'इस घर से गुम हो चुके
एहसास और भावनाएं
अब इस मकान में वह कभी ढूँढ भी पायेगा भला ...?'

-करवट बदल कर सोने का बहाना करने से नहीं चलेगा. मकान को फिर से घर बनाना पडेगा. वही अहसास और भावनाएं फिर लौट आयेंगी.

hem pandey said...
This comment has been removed by the author.
Manish Kumar said...

sahi kaha, bhautikta ki chakachoundh mein samvedna dab si jati hain. Par ye jagmagahat kabhi kabhie behad khokhli nazar aati hai.

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' said...

रचना बहुत अच्छी लगी,बधाई।
मैनें आप का ब्लाग देखा। बहुत अच्छा
लगा।आप मेरे ब्लाग पर आयें,यकीनन अच्छा
लगेगा और अपने विचार जरूर दें। प्लीज.....
हर रविवार को नई ग़ज़ल,गीत अपने तीनों
ब्लाग पर डालता हूँ। मुझे यकीन है कि आप
को जरूर पसंद आयेंगे....
- प्रसन्न वदन चतुर्वेदी

abdul hai said...

रोज़ की तरह कर्वट बदल कर
सो जाने का बहाना करने लगता है ..


bahut hi Umda

Mumukshh Ki Rachanain said...

"रोज़ की तरह कर्वट बदल कर
सो जाने का बहाना करने लगता है .."

...आपने शब्दों को इतने अच्छे से बाँधा है की सबकुछ हकीकत सा लगता है.....

बहुत बहुत बधाई....!!

चन्द्र मोहन गुप्त

मोना परसाई said...

इस घर से गुम हो चुके
एहसास और भावनाएं
अब इस मकान में वह कभी ढूँढ भी पायेगा
......गुम हो चुके अहसास और भावनाएं तो अपने -अपने घरों में 'वह ' की तरह हम सभी तलाश रहे है .

Urmi said...

पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
मुझे आपका ब्लोग बहुत अच्छा लगा ! आप बहुत ही सुन्दर लिखते है !

RAJ SINH said...

SAMBHAV NAHEEN YE PADHKE TUMKO,
.........................KARVAT LE KE SO JAYEN.

JAISE GATA HAI YEH 'MUFLIS'
KASH JARA HAM BHEE GAYEN !

JO KUCH GHAT RAHA ,DEKH PANE KEE DRISTI HAI .

SHANDAR !

डिम्पल मल्होत्रा said...

bhari duniya me jee nahi lagta.jane kis cheez ki kami hai abhi.....very true or very real feelings..

निर्झर'नीर said...

talkh haqiqaton ko kis andaj se aapne shabdo mein parosa hai.
shabd nahi hai tariif ke liye.
ni:sandeh ek marmik abhivyakti