नमस्कार
कविताएँ आप ने पढीं , पसंद फरमाईं ....शुक्रिया !
आप सब मुझ से बेहतर जानते हैं कि कविता लिखना या
ग़ज़ल कहना मन में कहीं गहरे उतर कर ख़ुद से बात करना है ।
मैं जब आप जैसे क़ाबिल दोस्तों के ब्लॉग पर जा कर आपकी
उम्दा रचनाएं पढता हूँ तो मुझे उतना ही सुकून मिलता है ,
जितना किसी रचनाकार को अपनी रचना प्रक्रिया के वक्त मिलता
है ...आपकी कविताएँ , आलेख , ग़ज़लें पढ़ना हमेशा-हमेशा एक
अनुभव रहता है , नई ऊर्जा नई प्रेरणा मिलती है ........
लीजिये ! एक छोटी बहर की नन्ही-सी ग़ज़ल हाज़िरे खिदमत है ।
ग़ज़ल
हादिसों के साथ चलना है
ठोकरें खा कर संभलना है
मुश्किलों की आग में तप कर
दर्द के सांचों में ढलना है
हों अगर कांटे भी राहों में
हर घडी बे-खौफ चलना है
जो अंधेरों को निगल जाए
बन के ऐसा दीप जलना है
वक़्त की जो क़द्र भूले, तो
जिंदगी भर हाथ मलना है
हासिले-परवाज़ हो आसाँ
रुख हवाओं का बदलना है
इन्तेहा-ए-आरजू बन कर
आप के दिल में मचलना है
जिंदगी से दोस्ती कर लो
दूर तक जो साथ चलना है
रात भर तू चाँद बन 'दानिश'
सुब्ह सूरज-सा निकलना है ।
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33 comments:
ख़ूबसूरत अशआर...
बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल है............हर शेर जिन्दा दिल है.........उमंग भरी है.....कोई ललक सी नज़र आती है सब में
आपकी हर रचना खुद ही एक नयी ऊर्जा और प्रेरणा से पूर्ण होती है,जिससे गुजरना सुखद होता है ..........
wah muflis ji, sabhi sher umda , behtareen gazal kahi hai. badhai.
जिंदगी से दोस्ती कर लो
दूर तक जो साथ चलना है
बहोत खूब....!!
रात भर तू चाँद बन 'मुफलिस'
सुब्ह सूरज-सा निकलना है ।
वाह ...दोनों तरह से रौशनी देने का इरादा है....!!
हासिले-परवाज़ हो आसाँ
रुख हवाओं का बदलना है
wah mufis ji....
ye line to bahut acchi lagi HUZOORRRR....
Zayada taarif nahi karoonga because your ghazals are always "flawless"
har ek sher...
aur haan muflis ji ab zara ghazlein kuch zaldi zaldi post karne ka prayas karein.....
...hum blogjagat main apko miss kartein hain...
मुफलिस जी बहोत ही उम्दा ग़ज़ल कही आपने
आपके गज़ल्गोई का भी क्या कहना है बेहद उम्दा
जहां तक छोटी बहर के ग़ज़ल का सवाल है तो ये
जितना देखने छोटा लगता है उतना ही मुश्किल होता है लिखने में
जैसा की मेरे गुरु कहते है क्यूँ के इसमें आपको बहोत
ही कम शब्द में पूरी की पूरी बात को मुकम्मल
तरीके से कहना है ... इस बात को बहोत ही करीने से आपने
उतारा है इस ग़ज़ल में ... ढेरो बधाई और शुभकामनाएं
आभार
अर्श
नन्हीं-सी ग़ज़ल अपनी छुटकी बहर में कयामत ढ़ा रही है गुरूवर..
"इन्तेहा-ए-आरजू बन" जाने की इस खास अदा ने मन मोह लिया और इस शेर पर "हासिले-परवाज़ हो आसाँ / रुख हवाओं का बदलना है" पर इस देर रात गये आपको फोन पे उठा कर दाद देने को मन कर रहा है। फिर सोचता हूँ, चलिये शेर की दाद ही यही है कि खुद जग कर आपको सोता रहने दूँ...
मक्ता नोट कर लिया है वक्त-बेवक्त बोल कर लोगों को इम्प्रेस करने के लिये...
और मतले के दूसरे मिस्रे के काफ़िये में शायद टाइपिंग की गलती हो गयी है...
और जाते-जाते, इजाजत हो तो:-
रास्ता है सत्य का मुश्किल
तुमको अंगारों पे चलना है
बस यही इक आरजू अपनी
तेरी आँखों में मचलना है
नमन !!!
बहुत ख़ूब!
सुबह से सोच रहा हूँ के मेजर साहिब वाला कमेंट ही टीप दूं,,,,
भले ही कल " पाल ले इक रोग नादां " पर पोस्ट आ जाए .....चोरी एक कमेंट की,,,,,,,,,,
पर मेजर साहिब ने ये कमेंट किस तरह कसाले से वक्त निकाल कर लिखा होगा,,ये सोचते ही गजल से पहले उनके लिए श्रद्धा वश सर झुक रहा है.....गजल के बाद बार बार कमेंट किये दो शेर पढता हूँ.....
हर चीज संभालने के बाद आधी रात में क्या लिखा है आपकी गजल पर,,,,,
मजा आ गया,,,,,,
और मक्ता शायद वक्त-बेवक्त इसलिए इस्तेमाल करेंगे के ये हर वक्त कहने की चीज है,,,,
मुबारक हो ,,हुजूर,,
छोटी बहर में बड़ी बात,,,,,,
jaate jaate darpan waalaa
huzoooooooooorrrr
भाई,
मैं मुफलिस नही कहूँगा। यह मेरी आदत में है कि मैं संबोधन में नाम का सहारा लेता हूँ।
हरकीरत जी ने बहुत ही उम्दा चयन किया है, हालांकि पूरी गज़ल अच्छी है, फिर वज़न इन दोनों में कुछ ज्यादा है :-
जिंदगी से दोस्ती कर लो
दूर तक जो साथ चलना है
रात भर तू चाँद बन 'मुफलिस'
सुब्ह सूरज-सा निकलना है ।
बहुत बधाईयाँ, देरी से आपके ब्लॉग आने की क्षमा चाहता हूँ।
आपका,
मुकेश कुमार तिवारी
वक़्त की जो क़द्र भूले, तो
जिंदगी भर हाथ मलना है///
goutamji aour manu ji ne vo sab likhaa he jo mere dimaag me bhi uth raha thaa, hnaa..shbdo ka thoda her fer ho sakta he.. bhaav ekse he..
mujhe "vaqt ki kadra...." vala sher jyada behtar isliye laga kyuki usi vaqt ki kdra hi hame doosri baate likhne yaa karne ke liye yogya banaataa he..
aour waah kyaa baat he..antim-
"raatbhar too chaand ban muflis...
subah sooraj saa niklnaa he"
poori gazal me jivan he..aour ham jiye jaa rahe he..waaaaah
thanks for the comments
जिंदगी से दोस्ती कर लो
दूर तक जो साथ चलना है
loved this one too like all...
muflis ji deri se aane ke liye maafi chahunga .. main tour par tha ..
जिंदगी से दोस्ती कर लो
दूर तक जो साथ चलना है
hamresha ki tarah .. aapke har sher behatreen hai .. laajawab hai .. is baar aapki rachana ne emotional kar diya bhiayya.. upar waala sher ultimate hai ..
meri dil se badhai sweekar kare guredev.. aapne meri kavita waali request poori nahi ki hai saheb .. thoda hum jaise chelo ka khyaal karen..
aapka
vijay
वक़्त की जो क़द्र भूले, तो
जिंदगी भर हाथ मलना है
bahut sundar.....
मुफ़लिस जी
कौन सा शेर उठाऊ ..तारीफ के लिए ?
सभी लाज़वाब !!!
कितनी सकारात्मक
जीवन के प्रति जिन्दादिली का अहसास दिलाती
शानदार ग़ज़ल !!!!!
सादर !!!!
वक़्त की जो क़द्र भूले, तो
जिंदगी भर हाथ मलना है
Bahut khob
आदाब अर्ज़ है :-)
एक बुजुर्ग की कतरन से बनी शाल जैसी लेखनी थी ये... जिस्में हर पहलू का हर फिक्रे मे बखूबी खुलासा किया गया है.
कहीं वक्त की इम्पोर्टेन्स तो कहीं रोज़ सुबह को वही सफूर्ती से ज़माने के रूबरू होने की ताकत भरती ये रचना मेरे को आराम से समझ आयी.
आदर सहित
नवीन
मुफलिस साहेब देरी से आने पर माफ़ कीजियेगा...जयपुर में हूँ तो समझिये वक्त मिलता ही नहीं...बहरहाल इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल फरमाईये....जिस हुनर मंदी से आपने छोटी बेहर में ज़िन्दगी की बड़ी सच्चाईयों को बाँधा है वो हुजुर आप जैसे कमाल के शायर के ही बस की बात है....सुभान अल्लाह...जोर कलम और ज्यादा...
नीरज
इन्तेहा-ए-आरजू बन कर
आप के दिल में मचलना है
क्या बात है!!!
Hosla badhane wali is gajal ko padhna ek achch anubhav raha.Badhai.
'जिंदगी से दोस्ती कर लो
दूर तक जो साथ चलना है
रात भर तू चाँद बन 'मुफलिस'
सुब्ह सूरज-सा निकलना है ।'
- यह हौसला अफजाई अच्छी लगती है |
जिंदगी से दोस्ती कर लो
दूर तक जो साथ चलना है
रात भर तू चाँद बन 'मुफलिस'
सुब्ह सूरज-सा निकलना है
भई वाह्! मुफलिस जी....बहुत ही उम्दा गजल.....(हमें तो पता ही नहीं चल पाया कि आपने कब नई रचना पोस्ट कर दी,इसलिए आने में थोडी देरी हुई)
ek muflis ke jhole mai ek ton academic degries dekh kar jhalle ko bhi aisi muflisi bhaane lag rahee hai.jhalle ke blog par avtrit hone ke liye dhanyaavaad.
bhut umda gjal hai.
ap mere blog par aye apni bhumuly tippni dhanywad.
भाई,
दर्पण शाह के ब्लॉग पर पढा कि श्री विजय कुमार साप्पति से आपकी बात हो रही थी, यदि ठीक समझो तो मुझे भी अपना कोई नम्बर दे दो। वैसे तो इन्दौर से कम ही निकलता हूँ फिर भी कभी कभी गप्पें तो मारी ही जा सकती हैं।
मुकेश कुमार तिवारी
"जिंदगी से दोस्ती कर लो
दूर तक जो साथ चलना है "
bahut khoob... :)
kaafi umda gazal. har pankti jeevan se judi kayi baatein bayaan kar rahi hai.
"जो अंधेरों को निगल जाए
बन के ऐसा दीप जलना है "
बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल है|
बधाई और शुभकामनाएं .......
मुझे आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा ! आपने बहुत ही सुंदर लिखा है ! मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है !
आपकी रचना बार-बार पढने पर भी वही आनन्द मिलता है
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चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
aapki har rachna ban sanwar kar poore shringar ke saath sundar nazar aati hai .bahut hi laajwaab .
इन्तेहा-ए-आरजू बन कर
आप के दिल में मचलना है
बहुत खूबसूरत....
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