इधर-उधर की भाग-दौड़ , अफरा-तफरी , और कुछ मुश्किलों में
घिरे रहने के बाद अचानक याद आया कि कुछ लिखना भी तो है ,,
सो ....कोई लम्बी भूमिका नही, बस कुछ सरल-सीधे-से लफ्ज़
एक ग़ज़ल की शक़्ल में हाज़िर करता हूँ
ग़ज़ल
बारहा कयूं उलझती रही ज़िन्दगी
उम्र भर मुझ से लड़ती रही ज़िन्दगी
बालपन से जवानी , बुढापे तलक
नाम अपने बदलती रही ज़िन्दगी
याद की तितलियाँ रक़्स करती रहीं
फूल बन कर महकती रही ज़िन्दगी
लाख तूफ़ान आयें , उठें ज़लज़ले
काम चलना है , चलती रही ज़िन्दगी
एक छूटा बदन , दूसरा मिल गया
सिर्फ़ पैकर बदलती रही ज़िन्दगी
घर के आँगन में नन्ही-सी किलकारियां
मन के झूले में पलती रही ज़िन्दगी
कोख अपनी ही माँ की, बनी कत्लगाह
जन्म से पहले मरती रही ज़िन्दगी
इसको जब भी कहीं कोई 'दानिश' मिला
अपने तेवर बदलती रही ज़िन्दगी
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बारहा= बार-बार
रक्स =नृत्य
ज़लज़ला= भूचाल
पैकर= आकृति , शरीर
कत्लगाह=वध-स्थल
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26 comments:
एक छूटा बदन , दूसरा मिल गया
सिर्फ़ पैकर बदलती रही ज़िन्दगी
wah muflis ji , poori gazal men aapkk anubhav saaf jhalak raha hai, har ek sher besh keemti. ek mubarak se kaam nahin chalega, mubarak baad......................................
घर के आँगन में नन्ही-सी किलकारियां
मन के झूले में पलती रही ज़िन्दगी
कोख अपनी ही माँ की, बनी कब्रगाह
जन्म से पहले मरती रही ज़िन्दगी
........
aur aankh se bahti rahi zindagi....
कोख अपनी ही माँ की, बनी कब्रगाह
जन्म से पहले मरती रही ज़िन्दगी
अत्यधिक भावुक कर दिया इस शेअर ने
एक छूटा बदन , दूसरा मिल गया
सिर्फ़ पैकर बदलती रही ज़िन्दगी
कोख अपनी ही माँ की, बनी कब्रगाह
जन्म से पहले मरती रही ज़िन्दगी
AISA NAHI KE SIRF YE DONO SHE'R HI PASAND AAYE MAGAR INKE TEWAR AUR BHAV KE AAGE MAIN NISAAR HOGAYAA ... BAHOT HI KHUBSURATI SE KAHI HAI AAPNEE BAAT KO ...
BADHAAYEE
SAADAR
ARSH
Wahwa.....
बेहतरीन... हमेशा की तरह.. बधाई.
एक छूटा बदन , दूसरा मिल गया
सिर्फ़ पैकर बदलती रही ज़िन्दगी
कोख अपनी ही माँ की, बनी कब्रगाह
जन्म से पहले मरती रही ज़िन्दगी
भई मुफलिस जी, क्या खूब लिखा है....बेहद भावपूर्ण रचना......आभार
कोख अपनी ही माँ की, बनी कत्लगाह
जन्म से पहले मरती रही ज़िन्दगी
वाह इस एक शेर में कड़वी सच्ची बात लिख दी है...........
ये सच्चाई है हजारों साल बाद भी हमारे समाज की
याद की तितलियाँ रक़्स करती रहीं
फूल बन कर महकती रही ज़िन्दगी
jindgi ke har pahlu par muflisji ki nazar vakai jindgi ki parte kholti nazar aati he///
WAH jindgi/AAH jingi
bas yahi he jindgi///
boht khubsurat ahsaso se bhari rachna.......ek zindgee jhalak rahee hai...
मुफलिस भाई की जय हो!
jindagi ke alag alag pahloo bahut khoobsoorti se pesh kiye hain aapne. bahut khoob
और आँखों से बहती रही जिंदगी,,,
क्या बात कही है रश्मि जी ने,,
मुफलिस जी,,,,एक सधी हुई गजल हमेशा की तरह,,,,,
जिन्दगी के हर रंग को दिखाती हुई
कोख अपनी ही माँ की, बनी कत्लगाह
जन्म से पहले मरती रही ज़िन्दगी
और एक घिनौना सच भी,,,,,
शानदार मतला,,,,,
और उसे ही नया रंग देता खूबसूरत मक्ता,,,
मगर काफी दिन बाद याद आई आपको पोस्ट करनने की,,,,,,
हम तो बस आकर देख जाते थे,,,
बालपन से जवानी , बुढापे तलक
नाम अपने बदलती रही ज़िन्दगी
जिन्दगी तो अपने नाम बदलती रही और हम नाम के लिए लड़ते रहे.............कैसी त्रासदी है.....
चन्द्र मोहन गुप्त
इस अनूठी नायब ग़ज़ल के लिये वैसे भी किसी भूमिका की जरूरत भी नहीं थी, सर। जाने ये क्या सिलसिला जुड़ गया है आपकी ग़ज़लों के साथ कि जब पढ़ता हूँ, देर रात गये ही...
याद की तितलियाँ रक़्स करती रहीं
हो या फिर पैकर बदलती रही जिंदगी...
सब से सब शेर इस खूबसूरत बहर पे एकदम सजे-सँवरे से बैठे हुये हैं
आपके लिये आपकी ही तर्ज पर:-
शक्ल तेरी बनी शेर जब भी कहा
तेरी ग़ज़लों में ढ़लती रही जिन्दगी
muflis ji
aapki gazal padha aur bahut der tak wahn raha .. aur padha , aur nam hui aankhon se aansuo ko poncha ...
कोख अपनी ही माँ की, बनी कब्रगाह
जन्म से पहले मरती रही ज़िन्दगी
aajkal aap har sher me zindagi ka phalsafa daal dete hai aur dil ko udaas kar dete hai . main to bahut dino ke baad blogjagat me aaya , dekha to aapki gazla lagi hui thi .. aur padha to aapne udaas kar diya ..
ye maharat aaphi ko haasil hai guru ji ... ki aap different emotions me se hamne swim karwa lete hai ..
dil se badhai aur aapke lekhan ko salam ..
एक छूटा बदन , दूसरा मिल गया
सिर्फ़ पैकर बदलती रही ज़िन्दगी
कोख अपनी ही माँ की, बनी कत्लगाह
जन्म से पहले मरती रही ज़िन्दगी
badhiya ashaar
लाख तूफ़ान आयें , उठें ज़लज़ले
काम चलना है , चलती रही ज़िन्दगी
रवानी का नाम ही जिंदगी है ,एक खूबसूरत ख्याल और बेहतरीन अंदाज-ए-बयां ! बहुत खूब मुफलिस जी !
कोई लम्बी भूमिका नही, बस कुछ सरल-सीधे-से लफ्ज़
आपके ये सीधे सरल शब्द कितना कुछ कह जाते हैं मुफलिस जी
हर शेर दिल से लिखे हुवे ..
बहुत ख़ुशी होती है आपकी ग़ज़ल को पढ़ने ,समझने में
आभार !!!
"बालपन से जवानी , बुढापे तलक
नाम अपने बदलती रही ज़िन्दगी "
बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल .....मुफ़लिस जी! आप कलम के धनी हैं....
घर के आँगन में नन्ही-सी किलकारियां
मन के झूले में पलती रही ज़िन्दगी
wah bahut sunder gazal kahi hai aapne
kahs kar ye sher bahut pasand aaya
इसको जब भी कहीं कोई 'मुफलिस' मिला
अपने तेवर बदलती रही ज़िन्दगी
very nice ...
लाख तूफ़ान आयें , उठें ज़लज़ले
काम चलना है , चलती रही ज़िन्दगी
वाह..मुफलिस जी , हर शेर जैसे मोती जिन्दगी की माला का .
एक छूटा बदन , दूसरा मिल गया
सिर्फ़ पैकर बदलती रही ज़िन्दगी
वाह, वाह और वाह
जब भी गम में रहा ,मुझको मुफलिस मिला
इस तरह लम्हा लम्हा महकती रही ज़िन्दगी
BARHA KYU ULAJHTI RAHI JINDGI
UMR BHAR MUJHSE LADTI RAHI JINDGI
BALPAN SE JAWANI , BUDHAPE TALAK
NAAM APNE BADALTI RAHI JINDGI
BAHUT KHOOB KAHA ...JINDGI HAI
PAL PAL ROOP BHI BADLA KARTI HAI
JITNI NAZREN UTNE ISKE ROOP ....
NAZREN BADALTI HAIN ,
NAZAARE BADAL JAATE HAIN ,
KASHTI KE RUKH KO THODA MOD DO KINAARE BADAL JAATE HAIN ....
kin shabdo ki taarif karoo harek taarife kabil. kuchh ne to maan ko chhoo liya .umda .
Muflisji,
Aapki rachnaon pe tippanee karneki qabiliyat nahee rakhtee, phirbhee kahungi, badee derse koshishme lagee hun...kaafee dinobaad ayee to bohot kuchh padhtee rahee...
Sheershak ho na ho, samajh gaye,ki, yahee hai zindagee...!Apneehee lagee ye zindagee...
"Ek maako maarke aage badh gayee zindagee, jab sawal ek daaleese uskee kaleene kiya, mujhe khilnese pehle chun kyon na liya?"
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