ये ग़ज़ल एक अनोखी रचना है..."अदबी-माला" पत्र में छपने के बाद
इसी के ज़रिये एक दोस्त बना ....मिठू जान...एक... वरिष्ठ श्रेणी
का साहित्यकार...आज भी दोस्त ही है ..एक अच्छा दोस्त ।
कोई कोई रचना अपने आप में कब कया अनूठा दे जाए ...कया पता !!
ग़ज़ल
इब्तिदाए-इश्क़ की राना`इयाँ
इंतिहा- ऐ- शौक़ की रुसवाईयाँ
यूँ रहीं ग़म की करम-फर्माईयाँ
मैं हूँ अब अर् हैं मेरी तन्हाईयाँ
धूप यादों की बढ़ी यूँ दिन ढले
और भी लम्बी हुईं परछाईयाँ
हैं यहाँ खुशियाँ, तो ग़म भी साथ हैं
है कहीं मातम, कहीं शहनाईयाँ
याद आतीं हैं मुझे परदेस में
गाँव , झूले , झूमती अमराईयाँ
रात से कहती हैं क्या, मिल कर गले
चाहतें , मदहोशियाँ , अँगड़ाइयां
तज्रबोँ से उम्र का रिश्ता बढ़ा
अब समझ आने लगीं गहराईयाँ
ज़िन्दगी भर नाज़ ही सहने पड़े
थीं मुक़ाबिल वक़्त की अंगडाईयाँ
अजनबी लगने लगे अपना वुजूद
इस क़दर अच्छी नहीं तन्हाईयाँ
मैं , कि अब ख़ुद को कहाँ ढूँढू बता
जाम -ऐ -शिद्दत, कर अता गहराईयाँ
साफ़-गोई से मिला 'दानिश' को क्या
बेबसी , आवारगी , रुसवाईयाँ ।
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34 comments:
सच कहा आपने "कोई कोई रचना अपने आप में कब क्या अनूठा दे जाए"...जैसे कि मेरी रचनाओं ने मुझे आपसे मिला दिया।
"धूप यादों की बढ़ी यूँ दिन ढले / और भी लम्बी हुईं परछाईयाँ" ऐसे शेर गढ़ पाना बस आपके बस की बात है, सर।
और ये वाला शेर "रात से कहती हैं क्या, मिल कर गले / चाहतें , मदहोशियाँ , अंगडाईयाँ"--आहाहा...पढ़ कर आशिकी करने को जी चाहे।
और मक्ते का बयान तो "मुफ़लिस" के लिये नत-मस्तक करा देता है।
और खास आपकी ग़ज़लों के लिये आपकी जमीं पर
याद आयीं, जब सुनी तेरी ग़ज़ल
गर्मियों में जो चले पुरवाईयां
धूप यादों की बढ़ी यूँ दिन ढले
और भी लम्बी हुईं परछाईयाँ
yakeenan bahut hi sundar khyaal hai...ghazal jaise jaise aage badhti gayee,iska asar aur ufaan chadtaa gayaa :)
www.pyasasajal.blogspot.com
और ये शेर तो अलग से टिप्प्णी माँग रहा था:-
"मैं , कि अब ख़ुद को कहाँ ढूँढू बता
जाम -ऐ -शिद्दत, कर अता गहराईयाँ "
मैं और मनु जी आपस में बातें कर रहे हैं इस वक्त आपकी ग़ज़ल पर ही और खास इस शेर पर....
जाम-ऐ-शिद्दत, कर अता गहराईयां
निशब्द............!!!!!!!!
अवाक,,,,,,!!!!!!!!!!
speechless..........!!!!!!!!!
इतना के कमेन्ट भी करने की हालत में नहीं,,,,,
इतना के इस जमीन पर कोई शेर भी नहीं हो रहा......
गौतम जी ने तो एक शेर भी कह दिया,,,,,( ओल्ड मोंक ज़रा लिमिट से ली होगी........)
मुफलिस जी,
शायद इस गजल के आगे से "पुरानी गजल" शब्द हटा लीजिये.....
ये तो सदा बहार चीज है....हर मौसम में ..हर किसी के लिए....
बेहद ...बेहद...बेहद....दमदार....
एकदम लाजवाब.....!!!!!
speechless...
धूप यादों की बढ़ी यूँ दिन ढले
और भी लम्बी हुईं परछाईयाँ
"मैं , कि अब ख़ुद को कहाँ ढूँढू बता
जाम -ऐ -शिद्दत, कर अता गहराईयाँ "
wah wah wah muflis ji, poori gazal behatareen lajawaab, badhai sweekaren.
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है!
muflis saheb......
aapki gazal padhi , bahut der tak sochate raha ki main kya tipani likhun.. mere paas jo shabd the wo maun ban gaye hai ...aapki gazal padhkar .....main nishabd hoon ..
तजरबों से उम्र का रिश्ता बढ़ा
अब समझ आने लगीं गहराईयाँ ..
ye sher me poori zindagi ka falasafa hai guruji..
aapki lekhni ko salaam ..
aapka
vijay
धूप यादों की बढ़ी यूँ दिन ढले
और भी लम्बी हुईं परछाईयाँ
हैं यहाँ खुशियाँ, तो ग़म भी साथ हैं
है कहीं मातम, कहीं शहनाईयाँ
आपका कहना सही है.........कोई बात, कोई किस्सा, कोई कहानी, कोई रचना बहूत देर तक दिल के साथ साथ चलती है.............वैसे तो ये ग़ज़ल अपने आप में इतनी लाजवाब है......इतना झूमती हुयी है की पढ़ कर दिल वाह वाह कहने को मजबूर हो जाता है...........जिन्द्स्गी के आस पास फैके हुवे रंगों से बुनी हुयी ग़ज़ल है ये......
'साफ़-गोई से मिला 'मुफलिस' को क्या
बेबसी , आवारगी , रुसवाईयाँ । '
-इस चापलूसी के जमाने में साफगोई की बात करना ही व्यर्थ है.
क्या बात है हर शेर पर दिल से दाद निकल रही है और हर शेर को बार बार पढ़ रहा हूँ
बहुत उम्दा गजल कही
आप जैसा लिखने वाले बहुत कम हैं जिनको उँगलियों में गिना जा सकता है
बहुत उम्दा किस्म के शेरों के लिये आपकी बधाई...
वीनस केसरी
तजरबों से उम्र का रिश्ता बढ़ा
अब समझ आने लगीं गहराईयाँ
bahut khoob...!
कमाल की ग़ज़ल और गज़ब के शेर।
बहुत खूब।
धूप यादों की बढ़ी यूँ दिन ढले
और भी लम्बी हुईं परछाईयाँ
wah wah..behtareen laga ye sher
आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!आपको मेरी शायरी और पेंटिंग दोनों पसंद आए उसके लिए धन्यवाद!
बहुत बढ़िया ग़ज़ल लिखा है आपने! इतना अच्छा लगा की कहने के लिए अल्फाज़ नहीं है!
SAHIB AAPKE GAZALGOEE KI DEEWANGI KIS HAD TAK BADHTI JAA RAHI HAI MAIN KYA KAHUN AB ....AB IS SHE'R KO HI DEKHTE HAI TO IS ANDAAZ SE AAPNE LIKHAA HAI... WAAH ...
अजनबी लगने लगे अपना वुजूद
इस क़दर अच्छी नहीं तन्हाईयाँ
SALAAM AAPKO TATHAA AAPKE LEKHANI KO...
ARSH
तजरबों से उम्र का रिश्ता बढ़ा
अब समझ आने लगीं गहराईयाँ
....बहुत खूब
bahut dino baad//
bilkul purani sharaab ki tarah///
naya nasha//
हैं यहाँ खुशियाँ, तो ग़म भी साथ हैं
है कहीं मातम, कहीं शहनाईयाँ
yatharth/
ज़िन्दगी भर नाज़ ही सहने पड़े
थीं मुक़ाबिल वक़्त की अंगडाईयाँ
waah// kya baat he/
goutamji aour manuji...ne satik kahaa he///
मिठू जान..." नाम कुछ अजीब अजीब सा लग रहा है मुफलिस जी ....??????? .... है भी female सा कुछ कुछ ...कौन है ये....???? मुझे तो हैरानी हो रही है मनु जी और गौतम जी पर इनकी परखी नज़रों से ये 'jaan ' कैसे बच गयी....??
खैर ' इब्तिदाए-इश्क़ की राना`इयाँ ' मुबारक हो आपको ....ग़ज़ल का हर शे'र उम्दा है तो मिठू जान ने तो प्रभावित होना ही था ...अब ग़ज़ल के सूरमाओं ने इतनी तारीफ कर दी है तो मई क्या कहूँ ....एक बार मनु जी ने मेरा कमेन्ट चोरी किया था तो आज मैं भी उनका कर लेती हूँ......
मुफलिस जी,
शायद इस गजल के आगे से "पुरानी गजल" शब्द हटा लीजिये.....
ये तो सदा बहार चीज है....हर मौसम में ..हर किसी के लिए....
बेहद ...बेहद...बेहद....दमदार....
एकदम लाजवाब.....!!!!!
speechless...!!!!!!
bhai muflis aadaab.
bahut badhiya, umda likhte hain aap. poori ksawat ke saath. aapki yahan par upasthit saari ghazalen padhin. sach rooh taaza ho gayee. vah-vah..
sanjeev gautam
sanjivgautam.blogspot.com
yaad aai jab suni teri gazal ,garmiyon me jab chale purwaiya .bahut hi khoob ,har baat hi laajwaab .
"हैं यहाँ खुशियाँ, तो ग़म भी साथ हैं
है कहीं मातम, कहीं शहनाईयाँ
याद आतीं हैं मुझे परदेस में
गाँव , झूले , झूमती अमराईयाँ "
"याद आयीं, जब सुनी तेरी ग़ज़ल
गर्मियों में जो चले पुरवाईयां"
kis ki tarif nahi karu....har sher lajwaab...waah ..waah..waah...
वाह.... बेहतरीन.......
मुफलिस जी,
आपसे बात कर दिल को सुकूं मिला और साथ ही साथ "मनु" का फोन नम्बर भी।
एक अच्छे दोस्त से मुलाकात की हसरत अभी बाकी है, किसी दिन लुधियाना आया तो वो भी पूरी होगी।
इस गजल पर इतने गुणि लोगों ने कहा है कि मुझे तो सिर्फ अपनी पसंद ही बताना है निम्न दोनों शेर मेरी तबियत से मेल खाते मिले :-
(१) तजरबों से उम्र का रिश्ता बढ़ा
अब समझ आने लगीं गहराईयाँ
(२) अजनबी लगने लगे अपना वुजूद
इस क़दर अच्छी नहीं तन्हाईयाँ
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
Is umda prastuti ke liye dhanywaad.
अजनबी लगने लगे अपना वुजूद
इस क़दर अच्छी नहीं तन्हाईयाँ
bhut khoob kha
maine apki pichli gjal bhi pdhi bhut
bemisal hai .
nishabd hu mai .
shubhkamnaye
यूँ रहीं ग़म की करम-फर्माईयाँ
मैं हूँ अब अर् हैं मेरी तन्हाईयाँ
--पूरी ग़ज़ल ने प्रभावित किया.इस शे'र ने खासकर.
अपने ब्लॉग पर आपकी टिप्पणी पढ़कर अच्छा लगा . धन्यवाद !
sir ji ,
mere liye love poem kab likhonge...................................................................................................
साफ़-गोई से मिला 'मुफलिस' को क्या
बेबसी, आवारगी, रुसवाईयाँ ।
बहुत ख़ूब!
'धूप यादों की …'
'मैं कि अब ख़ुद को कहां…'
'तजरबों से उम्र का …'
'ज़िन्दगी भर नाज़ ही…'
'धूप यादों की…'
बेहतरीन! सभी एक से बढ़ कर एक।
हार्दिक बधाई!
Awesome...!!!! hamare paas koi alfaaz nahi iss kavita ko bayaan karne ke liye...
Mujhe kuchh din deejiye is nishchay per aane ke liye ke inmein se csabse achcha She'r mujhe kaunsa laga...
this is one of your best compositions, isnt it?
God bless
RC
Flhaal mer taraf in do Sheron mein "tie" hai ..
अजनबी लगने लगे अपना वुजूद
इस क़दर अच्छी नहीं तन्हाईयाँ
मैं, कि अब ख़ुद को कहाँ ढूँढू बता
जाम -ऐ -शिद्दत, कर अता गहराईयाँ
धूप यादों की बढ़ी यूँ दिन ढले
और भी लम्बी हुईं परछाईयाँ
अजनबी लगने लगे अपना वुजूद
इस क़दर अच्छी नहीं तन्हाईयाँ
हर शेर अपनी अलग तासीर लिए हुए है, लेकिन ये दो मुझे अपने लगे...
आपकी तारीफ करना मेरे लिए छोटा मुँह बड़ी बात होगी....
salaaaam bhai.....koe 18 rooz baad apne gaon poonch se wapis jammu laota houn...aap ki gazal achchi lagi...tafseelan rai fursat se likh bhaijoun ga....abhi bari bari sab dost nipta raha houn.....
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