जून माह में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है
५ जून, सिर्फ एक ही दिन न बन के रह जाये ।
पर्यावरण की सुरक्षा हम सब का नैतिक कर्त्तव्य है ।
इस हाई-टेक दौर में प्रकृति का क्षरण करना ही
मनुष्य उन्नति करना समझ रहा है ।
तो.....आईये कुछ सोचें,,,विचार करें .....
ये कुछ शब्द हैं....आप तक पहुंचेंगे तो शायद संदेश भी बन पाएं ।
जागो ! संभलो !!
प्रश्न करते हैं अब
पेड़ , पौधे , वन-जंगल
जिन्हें अंधाधुंध काट कर
इतरा रहा है इंसान ..... अपनी प्रगति पर
हरियाली , छाँव , फूलों के सिंगार की जगह
पनप रहे हैं कंक्रीट के जंगल
जिनमें तरस रहा है जीवन
प्राण वायु के लिए ।
फरियाद करती है अब
कलकल बहती स्वच्छ पारदर्शी नदियाँ
जिनमें पल पल ज़हर घोल रही हैं
हमारी रासायनिक असावधानियां , कुव्यवस्थित प्रणालियाँ
जिस से कुपोषित हो रही है जीवन-शैली ।
आह्वान करती हैं
मंद-मंद बहती शीतल हवाएं
जिन में घुल रहा है ज़हरीला, तेज़ाबी धुआँ
प्रदुषण का, बारूदी परीक्षणों का
जिस से छटपटा रहा है
उपभोक्तावाद का आधुनिक प्राणी ।
आज ........
चेता रहे हैं सब
हवा , पानी , पेड़-पौधे..... सारी प्रकृति
सावधान कर रहे हैं इंसान को
जागो ! संभलो !!
..पर्यावरण संभालो !!!
वरना ...... बहुत देर हो जायेगी .......
नही रहेगा फिर सुरक्षा - कवच
और ... न ही रहेगी...... जीवन की सुरक्षा ।
__________________________________________
20 comments:
wah...
iski taarif main itna hi kahoonga...
ki dharti ko bhukhaar hai...
yakeen nahi aata logon ko ek documentry zarror dekhni chahiye:
"The Unconventional Truth"
aur hoozoor....
mujse zayada is dard ko kaun jaan sakta hai?
http://darpansah.blogspot.com/2009/06/blog-post_7244.html
Thanks for raising this issue,
आज ........
चेता रहे हैं सब
हवा , पानी , पेड़-पौधे..... सारी प्रकृति
सावधान कर रहे हैं इंसान को
जागो ! संभलो !!
..पर्यावरण संभालो !!!
वरना ...... बहुत देर हो जायेगी .......
नही रहेगा फिर सुरक्षा - कवच
और ... न ही रहेगी...... जीवन की सुरक्षा ।
bahut sahi kaha hai aapne, insaan men jaagrukta aaye to insaan ka jiwan bach jaaye.
फरियाद करती है अब
कलकल बहती स्वच्छ पारदर्शी नदियाँ
HUZUR ... SIRF ITNE CHHOTE SE WAKYA KO AGAR KOI PADH LE AUR SAMAJH LE TO KYA KAHANE .... SABHI LOG APNI UMRA SE JYADAH JIYENGE... BAS BAAT HI BE-FIKRI KI KAUN UN NADION SE BAAT KARTAA HAI AAJ KAUN UN HAWAAON SE PUCHHE KITNI DARD HAI USME ... KISI KE PAS WAKHT NAHI HAI .... MAGAR AAPNE BAHOT HI SACHHI BAAT KO BADE LUBHAWANE TARIKE SE LIKHAA HAI JISKE LIYE SALAAM AAPKO...
ARSH
muflis ji ,
namaskar ,
prayawaran par aapne bahut gahri baat likhi hai ....last para bahut prabhaavshali ban padha hai ...
bahut hi jaagrut kavita ..
aabhar .
vijay
आज ........
चेता रहे हैं सब हवा , पानी , पेड़-पौधे.....
सारी प्रकृति सावधान कर रहे हैं इंसान को जागो ! संभलो
kash............ अब भी jaag जाए insaan .......... कुछ तो हो सके इस vinaash से bachne का upaay .....
प्रकृति तो हमेशा चेतावनी देती रही है मगर हम क्यों सुधरें. गंगा जैसी पवित्र नदी की बात करूं, अगर लोग इस सच को स्वीकार करें तो हकीकत ये है कि प्रत्येक शहर से गंगा में मिलने वाला सीवर और तीर्थयात्रियों की एक बड़ी संख्या यदि दैनिक नित्यकर्म नदी तट पर न निपटाए तो शायद गंगा को भी सरस्वती बनने में समय नहीं लगेगा. जंगलों को काटकर कंक्रीट बोना, विकास के नाम पर प्लास्टिक का गुलाम होते जाना और एक बहुत छोटी सी बात.... पैदल चलने में तौहीन महसूस करना तथा सिर्फ धुआं उगलते वाहनों पर निर्भर रहना, हमें कहाँ तक पहुंचा चुका है, वहां से वापसी में भी कई दशक लगेंगे.......................किस शरीफ आदमी ने मेरे ब्लॉग का पता दे दिया? ....शुक्रिया.
अच्छा प्रयास है लोगों को को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरुक करने का।
चेतना जाग्रत करती एक अच्छी रचना.
जागो ! संभलो !!
..पर्यावरण संभालो !!!
वरना ...... बहुत देर हो जायेगी
देर तो हो ही चुकी है फिर भी जागृति के कोई आसार नहीं दिख रहे हैं.
ये रूप तो गुरूवर अनूठा है...
हम तो 20 की शाम को सोच कर सब भूलायें बैठे हैं...
khubsurat bhav, umda rachna. wah
मुफ़लिस जी,
रचना अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई।आज की ग़ज़ल में भी आप की रचनाएं पढी़,बहुत पसन्द आई....
एक नई शुरुआत की है-समकालीन ग़ज़ल पत्रिका और बनारस के कवि/शायर के रूप में...जरूर देखें..आप के विचारों का इन्तज़ार रहेगा....
Paryavaran surakshit rakhne ke prati dhyan aakrist karti behad asardar rachna.
Behtreen rachna Muflis g....
जागो ! संभलो !!
..पर्यावरण संभालो !!!
वरना ...... बहुत देर हो जायेगी .......
नही रहेगा फिर सुरक्षा - कवच
और ... न ही रहेगी...... जीवन
आज भी नहीं जागे तो फिर कब ??
जी हुजूर,,,,,
ये सन्देश हर किसी के लिए है,,,हर दिन के लिए,,,,
सच में दिन-बदिन हम लोग इस धरती की खूबसूरती का बेडा गर्क किये जा रहे हैं,,,,
जिंदगी इन के बिना और भी मुश्किल होगी
सुर्ख उम्मीद के ये फूल खिलाये रखना ,,,,
अब बस ,
बस पकड़ लीजिये,,,,या ट्रेन,,,
अगर पर्यावरण दिवस सारे साल मनाया जाए तो
कितना अच्छा हो ...ये वो दिवस है जिसे सरकारी
मुलाज़िम अपने जन्मदिवस की तारहे मनाते हैं ,
व्रक्षारोपण किया जाता है, और इन सरकारी बाशिंदों
के जाते ही या तो गाय खा जाती है या बिन पानी के
सब सूख जाते हैं. इसके अलावा हम सभी को वातावरण
के प्रति जागरूक होना चाहिए , आपने इस पोस्ट मे जिस तारह से
जागरूकता का संचार किया है , क़ाबिले तारीफ़ है,,''
सुन्दर प्रस्तुति.
कैसा अजीब लगता है यह सुन कर कि पड़े-लिखों को अब प्रकृति को भी सन्देश भेजना पद रहा है, फिर भी पढ़ा -लिखा तबका समझ-समझ कर भी अनाडी सा व्यव्हार ही किये जा रहा है और उसे अपनी तरक्की से जोड़ कर देख रहा है, शायद भूल जाता है कि जिस दिन प्रकृति कुपित होगी सभी जोड़ पटल की गहराइयों में समाहित ही मिलेंगें.
चन्द्र मोहन गुप्त
boht hi achha likha hai aapne..abhi na sambhle to der ho jayegi....
bahut dino baad aayaa.
jun ki rachna aour july me tippani..// vese aapki rachna in dino ke antaraal me bhi tazaa bani rahti he/
jeevan ki surakshaa..
atyavashyak he/// kambakht insaan..apne svartho me andhaa banaa pataa nahi kyo vinaash maarg par jaa rahaa he?
Post a Comment