नमस्कार ।
कुछ ऐसा नहीं है ख़ास मन में कि कुछ शब्द
कह कर भूमिका बाँध ली जाये,, बस कुछ
हल्के-फुल्के वाक्य हैं जिन्हें ग़ज़ल कह कर
आपकी ख़िदमत में हाज़िर कर रहा हूँ...और
उम्मीद वोही कि आपको पसंद आएगी...
ग़ज़ल
ग़म में गर मुब्तिला नहीं होता
मुझको मेरा पता नहीं होता
जो सनम-आशना नहीं होता
उसको हासिल ख़ुदा नहीं होता
वक़्त करता है फ़ैसले सारे
कोई अच्छा बुरा नहीं होता
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
हाँ ! जुदा हो गया है वो मुझ से
क्या कभी हादिसा नहीं होता ?
ज़िन्दगी क्या है, चंद समझौते
क़र्ज़ फिर भी अदा नहीं होता
जब तलक आग में न तप जाये
देख, सोना खरा नहीं होता
क्यूं भला लोग डूबते इसमें
इश्क़ में गर नशा नहीं होता
डोर टूटेगी किस घड़ी 'दानिश'
कुछ किसी को पता नहीं होता
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मुब्तिला=ग्रस्त
सनम-आशना=दोस्तों को चाहने वाला
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39 comments:
क्यूं भला लोग डूबते इसमें
इश्क़ में गर नशा नहीं होता
डोर टूटेगी किस घड़ी 'मुफ़लिस'
कुछ किसी को पता नहीं होता
bahut hi sundar kin lafzon mein tarif karoon.
ग़म में गर मुब्तिला नहीं होता
मुझको मेरा पता नहीं होता
मतले में ही ऐसी मक़नातीसी कशिश है कि आगे बढ़ने में वक़्त लग गया
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
बहुत ख़ूब!
डोर टूटेगी किस घड़ी 'मुफ़लिस'
कुछ किसी को पता नहीं होता
ज़िंदगी की हक़ीक़त चंद लफ़्ज़ों में बयान कर दी है आप ने ,
यह सिफ़त भी उम्दा शाएरी की पहचान है
जो सनम-आशना नहीं होता
उसको हासिल ख़ुदा नहीं होता
बहुत सुन्दर।
जब तलक आग में न तप जाये
देख, सोना खरा नहीं होता
बिलकुल सही ।
आखिरी शेर ने उदास कर दिया मुफलिस जी।
wahwa MUFLIS ji kya khoob sher nikale hain saheb...
वक़्त करता है फ़ैसले सारे
कोई अच्छा बुरा नहीं होता
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
हाँ , जुदा हो गया है वो मुझ से
क्या कभी हादिसा नहीं होता ?
मुफलिस भाई...सुभान अल्लाह...बेमिसाल ग़ज़ल कही है आपने...हर शेर बेहद खूबसूरत और कमाल का है...ये उस्तादों वाली शायरी है..ऐसे शेर कहने में हम जैसों की जान निकल जाती है लेकिन आपने किस सहजता और आसानी से कह दिए हैं...मान गए आपको. ऐसे ही लिखते रहें...मेरी दुआएं आपके साथ हैं.
नीरज
कितनी सादगी से कही है आपने यह ग़ज़ल .... बेशक आप ही कह सकते हैं...
हर शे'र उस्तादों वाली बात कह रहा है ....
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
बस यही कहूँगा आपकी सदा दिली न मार डाल मुझे...
हाँ , जुदा हो गया है वो मुझ से
क्या कभी हादिसा नहीं होता ?
दांग रह गया इस शे'र को पढ़ कर ... जहन में शब्दों की चहलकदमी जारी है ...
क्यूं भला लोग डूबते इसमें
इश्क़ में गर नशा नहीं होता
और इसे अपने साथ लिए जा रहा हूँ... :)
आपका
अर्श
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
जनाब मुफ़लिस साहेब, शेर क्या....
अनमोल ’वचन’ हो गया है....
ग़ज़ल का हर शेर शानदार है...
बस ये है कि दिल पर ही रकम हो गया
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
ज़ेहन से हटने का नाम ही नहीं ले रहा....
बहुत ही अच्छी ग़ज़ल. हमेशा की तरह. मेरे मनपसन्द शेर--
वक़्त करता है फ़ैसले सारे
कोई अच्छा बुरा नहीं होता
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
जब तलक आग में न तप जाये
देख, सोना खरा नहीं होता
वक़्त करता है फ़ैसले सारे
कोई अच्छा बुरा नहीं होता
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
डोर टूटेगी किस घड़ी 'मुफ़लिस'
कुछ किसी को पता नहीं होता
बस एक शब्द - उम्दा
वक़्त करता है फ़ैसले सारे
कोई अच्छा बुरा नहीं होता
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
हाँ , जुदा हो गया है वो मुझ से
क्या कभी हादिसा नहीं होता ?
गज़ब..........जानलेवा ग़ज़ल निकली है मियां.....जितनी तारीफ इन शेरों की हो , कम ही है !
wah muflis ji, behatareen/lajawaab har sher.
हाँ , जुदा हो गया है वो मुझ से
क्या कभी हादिसा नहीं होता ?
ज़िन्दगी क्या है, चंद समझौते
क़र्ज़ फिर भी अदा नहीं होता
सचमुच लाजवाव.
ज़िन्दगी क्या है, चंद समझौते
क़र्ज़ फिर भी अदा नहीं होता
ज़िन्दगी क्या है, चंद समझौते
क़र्ज़ फिर भी अदा नहीं होता
बहुत ही बढिया .....
वक़्त करता है फ़ैसले सारे
कोई अच्छा बुरा नहीं होता
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
नमस्कार मुफ़लिस जी ... इस बार तो बहुत ही कमाल की ग़ज़ल है ... आम भाषा के शब्दों को लेकर ... छोटी छोटी बातों से ग़ज़ल के शेरॉन को निकाला है आपने ... आप जैसा शिल्पी ही कर सकता है ऐसी
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
ओजी आप न होते तो ग़ज़ल कहाँ से होती .....???
जब तलक आग में न तप जाये
देख, सोना खरा नहीं होता
देख लिया जी पूरा २४ कैरेट का है ......खरा और उम्दा .....!!
डोर टूटेगी किस घड़ी 'मुफ़लिस'
कुछ किसी को पता नहीं होता
ओये होए ....आज तो बड़ी टूटने - टुटाने की बातें हैं जी .......?????
अभी भी गुनगुना रही हूँ.......
दिल के टुकड़े-टुकड़े कर के मुस्कुरा के चल दिए
जाते जाते ये तो बता जा .........
यह अशार बहुत पसंद आये मुफलिस जी, खासकर "हाँ जुदा हो गया .."| बहुत बढ़िया !
हाँ , जुदा हो गया है वो मुझ से
क्या कभी हादिसा नहीं होता ?
ज़िन्दगी क्या है, चंद समझौते
क़र्ज़ फिर भी अदा नहीं होता
डोर टूटेगी किस घड़ी 'मुफ़लिस'
कुछ किसी को पता नहीं होता
गज़लों के बारे में ज्यादा नहीं जानती पर सुनती हूँ और पढ़ती ब्लॉग में ही हूँ.ग़ज़ल लिखना इक मुश्किल काम है.मीटर में लिखना पड़ता है.आपने इतनी अच्छी ग़ज़ल लिखी है के मैं हैरान हूँ कैसे इतना अच्छा लिख लेते है आप.
हाँ , जुदा हो गया है वो मुझ से
क्या कभी हादिसा नहीं होता ?
ज़िन्दगी क्या है, चंद समझौते
क़र्ज़ फिर भी अदा नहीं होता
यह ख़ास पसंद आये मुझे.
dil ke maaro...
dil ke maalik...
thokar lagaa ke chal diye......................................
dil ke maaro...
dil ke maalik...
thokar lagaa ke chal diye......................................
चाँद भी होगा..\तारे भी होंगे
फूल च्स्म्सं मर प्य्स्सरे भी होंगे...
लेकिन हमारा दिल ना लगेगा.....
....... ...... .... ..................
तू ही बता कोई कैसे जियेगा......?
hnm
फूल च्स्म्सं मर प्य्स्सरे भी होंगे...
??????????????
?????????
printing mistake thi sir.....
जो सनम-आशना नहीं होता
उसको हासिल ख़ुदा नहीं होता
yahaaN par aakar sochte hain.....
sanam ko ..
aur khudaa ko......
क्यूं भला लोग डूबते इसमें
इश्क़ में गर नशा नहीं होता
डोर टूटेगी किस घड़ी 'मुफ़लिस'
कुछ किसी को पता नहीं होता
Kya gazab likhte hain aap! Kin,kin panktiyonko dohraya jay? Mook kar diya...
इस बेहतरीन ग़ज़ल का हर शेर ही बेहद खूबसूरत है.किसी एक को चुनना नाइंसाफी होगी.
हाँ ! जुदा हो गया है वो मुझ से
क्या कभी हादिसा नहीं होता ?
उससे जुदा होना हादिसा था, पर उससे मिलना तो क़यामत.
और क़यामत? वो तो... हमेशा नहीं आती!!
वक़्त करता है फ़ैसले सारे
कोई अच्छा बुरा नहीं होता
वो शे'र याद हो आया...
... उसके हालत बुरे होते हैं...
PS:हादसों वाला शे'र सहेजने लायक है.
पहले कब पढ़ी थी ये ग़ज़ल आपकी, ये सोच रहा हूँ फिलहाल तो। ये शेर उस वक्त भी बहुत अच्छा लगा था "वक़्त करता है फ़ैसले सारे / कोई अच्छा बुरा नहीं होता" आज भी फिर से...इस शेर ने उस वक्त भी ग़ालिब की याद दिलायी थी "मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है/मैं न होता, तो क्या नहीं होता"...आज भी फिर से।
और क्या कभी हादसा नहीं होता का अंदाज़े-बयां तो वही उफ़्फ़्फ़्फ़्फ़्फ़ वाला।
ग़म में गर मुब्तिला नहीं होता
मुझको मेरा पता नहीं होता
वक़्त करता है फ़ैसले सारे
कोई अच्छा बुरा नहीं होता
जब तलक आग में न तप जाये
देख, सोना खरा नहीं होता
मुफलिस साहब, बड़े अमीर शेर लिखे हैं
तर्ज़ेबयां खूब !
वाह! वाह !!
बेहतरीन ग़ज़ल!
आपको तो पहले पढ़ा है.
"मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
हाँ ! जुदा हो गया है वो मुझ से
क्या कभी हादिसा नहीं होता ?"
So beautifully written.. it just took my heart away :)
I am fan of ur urdu writing.. Keep it up
हाँ ! जुदा हो गया है वो मुझ से
क्या कभी हादिसा नहीं होता ?,,,बहुत खूब
nice
मुफलिस जी आपका ईमेल पता चाहिए एक जरूरी मेल भेजनी है
venuskesari@gmail.com
मुफलिस भाई, हर शेर वज़नदार, पूरी गज़ल ही बेहद खूबसूरत, जिंदगी बयां करती हुई ।
और ये तो सरताज़
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता ।
बेहतरीन ग़ज़ल है ... हर एक शेर उम्दा है ... पढके बहुत अच्छा लगा ...!
मैं अगर हूँ, तो कुछ अलग क्या है
मैं न होता, तो क्या नहीं होता
हाँ ! जुदा हो गया है वो मुझ से
क्या कभी हादिसा नहीं होता ?
ये दो शेर तो गजब के हैं !
वक़्त करता है फ़ैसले सारे
कोई अच्छा बुरा नहीं होता ...
bahut achhi lagi, sukoon se kahee gyii ek ghazal.
Excellent And the best is you wrote words And meanings which are mostly not easy to understand. Thanks for sharing And keep writing...
Will try the best to visit again & again. Knowledge will be enhanced, I am sure.
क्यूं भला लोग डूबते इसमें
इश्क़ में गर नशा नहीं होता
इतनी जबर्दस्त गजल और मैं महरूम रह गया? लेकिन महरूम क्यों, देर आमद, दुरुस्त आमद. खतरा महसूस होने लगा मुफलिस भाई. बड़ी मुश्किल से ब्लॉग पर एक साल में थोड़ी सी शिनाख्त बनाई थी. अब लगता है उसके रुखसत होने की घड़ी आ गयी.
बाप रे! ऐसे ऐसे अशआर! कागज़ नहीं, नेट पे रख दिया है कलेजा निकाल के.
ये बताएं, क्या ये ब्लॉग पर लिखा-पढ़ा भाभी जी नहीं पढ़तीं? यह शेर अगर उनकी नजर से गुज़रा फिर आप की खैर नहीं वीर जी.
मुबारकबाद, लेकिन मेरा कबाड़ा तो हो ही गया. अब समझ में आया मेरे ब्लॉग पर लोग क्यों नहीं आ रहे हैं.
डोर वाला शे'र सुब्हान-अल्लाह!
बाक़ी ग़ज़ल तो बढ़िया है ही, हस्बे-मामूल;
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