पंकज मालिक का गाया हुआ एक गीत याद आ रहा है
"करूँ क्या आस निरास भई....",,,, कुछ ऐसी ही उधेड़-बुन से हो कर
गुज़रते हुए सोचते-सोचते ज़हन में ये बात भी आई कि
दुआओं में असर होता है...बहुत असर होता है
किसी की दुआएं आपके काम आ जाती हैं ,,,और आपकी दुआएं भी
किसी के काम आ सकती हैं..... यक़ीनन....
इबादत
माना ,
कि मुश्किल है
बहुत मुश्किल
इस तेज़ रौ ज़िन्दगी की
हर ज़रुरत में
हर पल किसी के काम आ पाना
इस भागते-दौड़ते वक्त में
हर क़दम
किसी का साथ दे पाना
इस अपने आप तक सिमटे दौर के
हर दुःख में
किसी का सहारा बन पाना
हाँ ! बहुत मुश्किल है
लेकिन
कुछ ऐसा भी मुश्किल तो नहीं
ख़ुदा से
अपने लिए की गयी बंदगी के नेक पलों में
किसी और के लिए भी दुआएं करते रहना
अपना भला चाहते-चाहते
दूसरों का भी भला मांगते रहना ....
सच्ची इबादत....
अब इसके सिवा
और...
हो भी तो क्या !!
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40 comments:
ख़ुदा से
अपने लिए की गयी बंदगी के नेक पलों में
किसी और के लिए भी दुआएं करते रहना
अपना भला चाहते-चाहते
दूसरों का भी भला मांगते रहना ....
सच्ची इबादत....
अब इसके सिवा
और...
है भी तो क्या !!
बहुत ख़ूब !
इबादत की ये ख़ूबसूरत परिभाषा आप की लेखनी का ही कमाल है
सच्ची इबादत....
अब इसके सिवा
और...
है भी तो क्या !!
Wah..! Kya kamal kee baat kah dee hai aapne!
काश ऐसी इबादत सब करने लगें !!!
सुन्दर नज़्म.
bahut hi gahree bhawnayen, jinko mahsoos kar sakte hain
ख़ुदा से
अपने लिए की गयी बंदगी के नेक पलों में
किसी और के लिए भी दुआएं करते रहना
अपना भला चाहते-चाहते
दूसरों का भी भला मांगते रहना ...
बहुत ही गहरी बात कही है आप ने..
दिल में उतर गई..
वाह!
बहुत ही खूबसूरत नज़्म है...सहज भाव से लिखी गयी गंभीर रचना...हमेशा की तरह.
ख़ुदा से
अपने लिए की गयी बंदगी के नेक पलों में
किसी और के लिए भी दुआएं करते रहना
अपना भला चाहते-चाहते
दूसरों का भी भला मांगते रहना ....
काश इस इबारत हो हम सब अपने दिल में बसा लें तो सारी दुनिया खुशहाल हो जाए...आपकी सोच को सलाम...
नीरज
"करूँ क्या आस निरास भई...."
दुआओं में असर होता है...
किसी और के लिए भी दुआएं करते रहना.....
नज़्म के पीछे इक गहरी सांस है .......!!
ख़ुदा से
अपने लिए की गयी बंदगी के नेक पलों में
किसी और के लिए भी दुआएं करते रहना
अपना भला चाहते-चाहते
दूसरों का भी भला मांगते रहना ....
वाह्……………बहुत सुन्दर बात कही है और यही तो सच्ची इबादत है………………बस इतना ही इंसान नही कर पाता।
badi hi paak-saaf shabdon ki iabadat hai ye 1
Part 1'इबादत' पढ़ कर इमरोज़ द्वारा अमृता प्रीतम के लिए कही गयी एक बात याद आ रही हैं. कहीं पढ़ी थी कभी...
"इतनी बड़ी दुनिया में मेरा सिर्फ इतना योगदान है कि मैंने अपने जीवन में एक शख्स चुन लिया है जिसे मुझे खुश रखना है --अमृता को | बस अमृता को खुश रखने की कोशिश मेरी ज़िन्दगी का मकसद है | मुझमें इतनी क्षमता नहीं है कि मैं पूरी दुनिया को खुश रख सकूँ .लेकिन कम से कम एक शख्स को खुश रखने की क्षमता मुझमें जरुर है "
"जीवन खेल अजब देखा है"
पूरी ग़ज़ल ही अच्छी बन पड़ी है.
हुस्न ए मतला होना ग़ज़ल में इतना ज़रूरी क्यूँ हो जाता है वो जब ग़ज़ल को सुनो तो पता चलता है. जब आपकी ग़ज़ल की रिकोर्डिंग सुन रहा था तो पहले शे'र को रिपीट करने के बदले दूसरा शे'र कह देना . वाऊ ! ऐसा लगता है कि कोई 'बोनस' शे'र हो.
:) वैसे इसके अलावा कोई और कारण हो तो बताएं.
मज़े की बात की इस ग़ज़ल के अश'आर पढ़कर कोई न कोई नज़्म (कभी कभी १ से ज़्यादा भी) द्फ्तन ज़ेहन में आ जाती है. कितनी साधारण शब्दों में ज़िन्दगी का कोई एक फलसफा बताता है हर एक शे'र. आपके लिखे की सबसे बड़ी विशेषता है सिम्पलीसिटी. वैसे अगर "है वैसे भी राह कठिन ये , पनघट की" की तर्ज़ पर कहूँ तो इसका एक ड्राबेक भी है वो ये कि लोग कहते है यार ये है तो कमाल पर कहीं पढ़ा पढ़ा सा लगता है. (चाहे कहीं न पढ़ा हो, बस अपना सा लगता है इसलिए.)
वो... वो... बहुत से लोग बेशक आपकी बेहतरीन कृतियों में से एक न हो पर मेरे दिल के बहुत नज़दीक है. सच तो ये है की इस कविता को पढने के लिए बार बार आता हूँ. वैसे शिल्प, रस , भाव एवं किसी भी अन्य कवित्त-श्रृंगार की दृष्टि से देखें या यूँ ही कविता की दृष्टि से भी देखें तो भी ये एक अति साधारण कविता है. और इसका अति साधारण होना ही इसका सबसे बड़ा गुण है. क्यूंकि भावों को समझने और प्रतिक्रिया करने में समय कम लगता है. प्रेमचंद -रचित साहित्य की तरह. इस कविता से खुद को रिलेट कर पा रहा हूँ. कुछ लिंक दे रहा हूँ देखिएगा.
इस बेहतरीन सोच के लिए बधाई!ये वो ब्लॉग मार्का बधाई नहीं है . ;)
...TBC
Part 2
कब , किसको , क्या देना है , ख़ुद आँके है
ऊपर वाला , पोथी सब की जाँचे है
सच भगवान बड़ा कारसाज़ है वो भी बिना ३जी कनेक्शन के.
खुशियों में तो सब चाहें भागीदारी
दर्द भला अब कौन किसी का बाँटे है
एक वो दिन जब एक ज़रा सी बात पे नदियाँ (आंसू की) बहती थीं: जावेद अख्तर
है वैसे भी राह कठिन ये , पनघट की
पल-पल गगरी छलके, मनवा काँपे है
पनघट यानी: मंजिल,मैकदा, कू-ए-यार या मौत? इस पनघट की व्यंजना का उपयोग कई लोगों ने कई तरह से किया है. और ये अनस्टेबल ज़मीन हमेशा से ही कुछ बेहतरीन शे'र की प्लॉट रही है. जैसे कि आपके इस शे'र की. वैसे एक व्यंजना आपके लिए भी:
प्यास धोभी घाट या पनघट नहीं देखती.
अब उपर्युक्त कथन में बारी बारी से चारों शब्दों(मंजिल,मैकदा, कू-ए-यार या मौत) का उपयोग करके देखिये :). लेकिन पनघट के नहीं प्यास के बदले.
है मुट्ठी - भर राख , नतीजा, जीवन का
फिर भी क्यूं इंसान बस अपनी हाँके है
बेहतरीन शे'र. इस पूरी ग़ज़ल की जान. सच ज़िन्दगी आसान हो जाये अगर सब जान जाएँ कि हमने मरना है.(हाँ मैंने 'जान जाएँ' ही कहा. वो! युधिष्ठिर के यक्ष को दिए उत्तर...)
एक लम्बी सांस लेकर ये ही कहता हूँ...
"सब ठाठ धरा रह जायेगा, जब..."
जब तेरे मन में ही कोई खोट नहीं
क्यूं 'मुफ़्लिस' ख़ुद को पर्दों से ढाँपे है
हद्द है मुफलिस सर, कलयुग में एक मन्त्र का तो कुल उच्चारण होता है ("एक मैं सच्चा, मेरा नाम सच्चा !") उसमें भी ऐसे खतरनाक अशारों के फतवे जारी कर देते हो? :(
दुनिया में ३ लोगों के मन में कोई खोट नहीं:
१) जिनके केवल मन में खोट है (प्रत्यक्ष नहीं)
२) जिनको खोट का शाब्दिक अर्थ नहीं मालूम.
३) जिनके मन में वाकई कोई खोट नहीं है. (वर्तमान में इनकी जनसंख्या डोडो प्रजाति जितनी है.)
अपूर्व से आपके विषय में देर तक बात हुई.
अपूर्व बोलते हैं: मुफलिस सर का उर्दू शब्द कोष बहुत अच्छा है.
मैंने कहा: अंग्रेजी का भी. और जब वो उस शब्द कोष का इस्तेमाल करते हैं (कविता, नज़्म या ग़ज़ल में ) तो ऐसा नहीं लगता कि कहीं भर्ती का शब्द हो. इसलिए उनके मुश्किल से मुश्किल शब्द भी ग्राह्य होते है और कविता को मुश्किल नहीं बनाते. और सबसे आसान और सादगी भरी पोस्ट निर्मित करते हैं.
अपूर्व का ज़वाब आया: इसलिए ही तो कह रहा हूँ बड़ा है नहीं कहा बल्कि अच्छा है कहा.
आपकी सादगी के सब कायल हैं.
(तुझ शम्म-ए-फरोशां के दीवाने...)
आशा करता हूँ अब स्वास्थ्य ठीक होगा.
प्रणाम
बहुत खूब लिखा है ... अपनी इबादत में किसी और के लिए दुआ माँगना इतना मुश्किल नही पर दिल भी चाहिए उसके लिए ... मज़ा आ गया आपको पढ़ कर ....
ख़ुदा से
अपने लिए की गयी बंदगी के नेक पलों में
किसी और के लिए भी दुआएं करते रहना
अपना भला चाहते-चाहते
दूसरों का भी भला मांगते रहना ....
सात्विक और राजसी का यही तो फर्क है ।
जो हम समझा रहे हैं , वही आपने लिखा है ।
बहुत खूब ।
ख़ुदा से
अपने लिए की गयी बंदगी के नेक पलों में
किसी और के लिए भी दुआएं करते रहना
अपना भला चाहते-चाहते
दूसरों का भी भला मांगते रहना ....
सोलह आना सही,
इससे सच्ची इबादत और कुछ नहीं हो सकती /
Sadvechaar !!Uchch vichaar se saraboor !jai ho
आपकी तबियत के बारे में जान कर बहुत दुःख हुआ था आपके द्वारा ....हमेशा ही आपके स्वस्थ्य के लिए अल्लाह मियां से दुआएं करता हूँ... सुखी रहें स्वस्थ्य रहे ...
अर्श
ख़ुदा से
अपने लिए की गयी बंदगी के नेक पलों में
किसी और के लिए भी दुआएं करते रहना
अपना भला चाहते-चाहते
दूसरों का भी भला मांगते रहना ....
सच्ची इबादत....
अब इसके सिवा
और...
है भी तो क्या !!
.क्या खूब लिखा है!!!!!!!!!!!!!!! सागर सी गहरी बात मन में भी हलचल पैदा कर गयी
क्या खूब कहा है...
वाह...वाह...वाह.
प्रणाम सर
बहुत प्यारी नज़्म हुई है. अभी कुछ दिन पहले राय सर से बात हो रही थी तो वे कह रहे थे कि मैं मनुष्य तब हूं जब मेरे अन्दर ऐसी चेतना हो कि कोई अंजान आदमी भी मुझे रात के दो बजे बुलाये और मैं उठकर उसकी मदद के लिए दौड़ पड़ूंु.
बहुत अच्छे ढंग से काव्य में उतारा है आपने.
सर मेरे ब्लाग का यू0आर0एल0 बदल गया है-
http://kabhi-to.blogspot.com
खूबसूरत नज़्म .....!
Bahot khoob. suchchi ibadat yahee hai. Aapki ye rachna behad pasand aaee.
दो तीन बार आ चुके हैं...
जितना वक़्त नज़्म में लगता है...उससे ज़्यादा दर्पण के इन पांच पांच किलो के तीन कमेंट्स को पढने में..
भाई साहब ने पिछली पोस्ट वाला कमेन्ट यहाँ छाप रखा है..
नज़्म पर बात किसी और ज़रिये से करेंगे साहब...
हाँ,
ये जरूर है कि नज़्म के पीछे एक गहरी सांस है...
दो तीन बार आ चुके हैं...
जितना वक़्त नज़्म में लगता है...उससे ज़्यादा दर्पण के इन पांच पांच किलो के तीन कमेंट्स को पढने में..
भाई साहब ने पिछली पोस्ट वाला कमेन्ट यहाँ छाप रखा है..
नज़्म पर बात किसी और ज़रिये से करेंगे साहब...
हाँ,
ये जरूर है कि नज़्म के पीछे एक गहरी सांस है...
bahut hi sarthak rachna.itana to hame jaroor karna chahiye ki hamkuchh palo ke liye hi sahi apne saath-saathaur sabhi ke liye ishwar se prarthana kar
saken.
poonam
bahut hi sarthak rachna.itana to hame jaroor karna chahiye ki hamkuchh palo ke liye hi sahi apne saath-saathaur sabhi ke liye ishwar se prarthana kar
saken.
poonam
बहुत ही सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है! उम्दा प्रस्तुती!
bahut achhi aur manmohak aur sundar rachna..
muflish ji
namaskar [ ek dost ka apne dost ke liye , ek shishya ka apne guru ke liye aur ek insaan ka apne hi jaise dusare insaan ke liye ]
aap soch rahe honge ki ye kya baat hai bhai .. kal se main aapki is nazm ko kayi baar padh chuka hoon ....
let me tell you sir , that , is tarah ki bhaavnao ka ek insaan me hona apne aap me us insaan ki sabse badi identity hai ..
hab sab ek rat-race me lage hue hai aur is race me se chand lamhe kisi ke liye agar dua bhi maang le to us khuda ki khudayi me hamara ek chota sa drop honga . insaniyat ka .
aapki is badat ke aage duniya ki saari ibadate choti hai ...
aapki is ibadat ko salaam , aapki lekhni ko salaam aur mera ye waada raha muflish ji , ki is zindagi me agar main aap se ruburu na mil paaya to mujhe lagenga ki maine kuch na kiya ...
mujhe intzaar hai us pal ka jab hum dono mile aur baithe aur baat kare ..kuch is duniya ki , kuch us duniya ki , kuch mohabbat ki aur kuch aapke is ibadat ki ..
ameen
aapka
vijay
ati sunder.
Sachchi ibadat waqayi yahi hai ..
Muflis ji bahut gahri nazm hai
मित्रता दिवस की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ!
bahut khub...kamal kiya
सुंदर भावपूर्ण गीत..बढ़िया लगी...आपको बहुत बहुत बधाई
अपना भला चाहते-चाहते
दूसरों का भी भला मांगते रहना ....
ye bilku sahi bat kahi aane aisa to kiya hi ja sakta ha ..bahut khub.bahut2 badhai...
अब आप सूफी कलाम की जानिब गामज़न हैं. बहुत अच्छी दुआइया अंदाज़ में कही गयी नज्म, काश ऐसा मुमकिन होता हम सभी लिए.
हम अपना और सिर्फ अपना सोचते हैं. दूसरों का भला न हो, चाहे हमारा कितना ही नुकसान क्यों न हो जाए, हमारी तो पूरी कोशिश यही होती है.
काश, आप की नज्म में जो दुआ है वह सब तक पहुंचे.
ख़ुदा से
अपने लिए की गयी बंदगी के नेक पलों में
किसी और के लिए भी दुआएं करते रहना
अपना भला चाहते-चाहते
दूसरों का भी भला मांगते रहना ...
- सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः
पंकज मल्लिक के इस गीत की खूब याद दिलायी आपने। हमारा भी पसंदीदा है...
नज़्म की सादगी ’मुफ़लिस’ नाम को जीती है। सच्ची इबादत इसके सिवा सचमुच और है ही क्या।
Talab kiya jo khuda ne mujhko
Bata chahta hai kya
Zubaan se phir nikal gaya
Duniya mein shaanti
Badhkar aage haath thaam liya phir kissi mehrbaan ne
Thokar kha baithet they pather kissi per fenkte huye
Apko padh kar achha lagta hai aur kuchh likhne ka man bhi hota hai
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