Saturday, October 16, 2010

नमस्कार
पिछली रचना पोस्ट करने की तिथि देख कर, लगने ही लगा
कि दिन बहुत हो गए हैं,,, कुछ नया हो जाना चाहिए...
लेकिन,, जब पोटली में तलाश किया तो खाली-खाली-सी महसूस हुई
गीत याद आने लगा "जो मुराद बन के बरसे,वो दुआ कहाँ से लाऊँ..."
फिर, बैठे-बैठे,, जाने कब,,, कुछ आड़ी-तिरछी-सी रेखाएं खिंच गईं...
और ठान लिया...कि अब जो भी है , यही सुनाना/पढवाना है आपसब को .....
तो... लीजिये...हाज़िर है एक नज़्म ...





मैं कविता में.... मुझ में कविता




मैं , अक्सर ही
अपनी इक बेसुध-सी धुन में
कुछ लम्हों को साथ लिए, जब
अलबेली अनजानी ख़्वाबों की दुनिया में
ख़ुद अपनी ही खोज-ख़बर लेने जाता हूँ
तब, कुछ जानी-पहचानी यादों का जादू
मुझको अपने साथ बहा कर ले जाता है ...
लाख जतन कर लेने पर भी
कुछ पुरसोज़ ख़यालों को, जब,
लफ़्ज़ों से लबरेज़ लिबास नहीं मिल पाता
ज़हन में, पल-पल चुभते, तल्ख़ सवालों का जब
मरहम-सा माकूल, जवाब नहीं मिल पाता
ऐसे में मैं,,
ऐसे में मैं भूल के ख़ुद को
उसको याद किया करता हूँ
अनजानी आहट की राह तका करता हूँ
और अचानक
इक आमद होने लगती है
आड़े-तिरछे लफ़्ज़, लक़ीरें,
ख़ुशख़त-सी तहरीरों में ढलने लगते हैं
कुछ क़तरे, कुछ मुस्कानें, सब,
'इक कविता-सी' हो जाते हैं ...
फिर मैं, और मेरी ये कविता
इक दूजे से, देर तलक बातें करते हैं
काग़ज़ के टुकड़े पर फ़ैली...
वो, मेरे सीने पे सर रख, सो जाती है
मैं भी देर तलक उसको पढता रहता हूँ
हम दोनों ही खो जाते हैं...
मैं कविता में...
मुझ में कविता ....



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25 comments:

डॉ टी एस दराल said...

काग़ज़ के टुकड़े पर फ़ैली...
वो, मेरे सीने पे सर रख, सो जाती है

वाह मुफलिस जी । एक कवि की कविता के प्रति अभिव्यक्ति इससे बेहतर और क्या हो सकती है ।

Dorothy said...

कवि और कविता के धूपछांही संसार जिसमें आपस में आंख मिचौली खेलते खेलते एक दूसरे से मिलकर दोनों एक नया संसार रच देते है. दोनों के अंतर्संबंधों को बेहद कोमल अहसासों से सजा कर पेश करने का खूबसूरत अंदाज सराहनीय है. आभार.
सादर
डोरोथी.

इस्मत ज़ैदी said...

लाख जतन कर लेने पर भी
कुछ पुरसोज़ ख़यालों को, जब,
लफ़्ज़ों से लबरेज़ लिबास नहीं मिल पाता
ज़हन में, पल-पल चुभते, तल्ख़ सवालों का जब
मरहम-सा माकूल, जवाब नहीं मिल पाता

नज़्म इतनी ख़ूबसूरत है कि अल्फ़ाज़ साथ नहीं दे रहे हैं ,कवि कल्पना में ,विचारों में ,माहौल में खो कर कविता लिखता है ये तो मालूम था लेकिन इस इंतहा तक??? ये आज मालूम हुआ ,बहुत ख़ूब!

और अचानक
इक आमद होने लगती है
आड़े-तिरछे लफ़्ज़, लक़ीरें,
ख़ुशख़त-सी तहरीरों में ढलने लगते हैं
कुछ क़तरे, कुछ मुस्कानें, सब,
'इक कविता-सी' हो जाते हैं ...
फिर मैं, और मेरी ये कविता
इक दूजे से, देर तलक बातें करते हैं

वाह!
आप की ये आड़ी तिरछी लकीरें बेहद पुरम’आनी होती हैं जिन की तारीफ़ ओ तौसीफ़ के लिये जिन अल्फ़ाज़ की ज़रूरत है वो मेरे कश्कोल में तो नहीं हैं ,लिहाज़ा बस
सुबहान अल्लाह पर ही इक्तेफ़ा करती हूं

वन्दना अवस्थी दुबे said...

लाख जतन कर लेने पर भी
कुछ पुरसोज़ ख़यालों को, जब,
लफ़्ज़ों से लबरेज़ लिबास नहीं मिल पाता
ज़हन में, पल-पल चुभते, तल्ख़ सवालों का जब
मरहम-सा माकूल, जवाब नहीं मिल पाता
ऐसे में मैं,,
ऐसे में मैं भूल के ख़ुद को
उसको याद किया करता हूँ
क्या बात है, मुफ़लिस साहब. कविता के प्रति इतना समर्पण!!! बहुत खूब.

manu said...

आजकल बड़ा सूखा है साहब...!

:)

ऐसे में एक अनजानी आहत की ओर देखना और आमद होना...कम से कम अपने लिए तो बड़ा सुहाना ख्याल है..
आप ही देखिये ना हुज़ूर....
सूखे में भी क्या गुल खिलाया है नज़्म का...!!
मरहम सा माकूल जवाब....वाह...!!..क्या बात कही है हुज़ूर...!!

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

कुछ क़तरे, कुछ मुस्कानें, सब,
'इक कविता-सी' हो जाते हैं ...
फिर मैं, और मेरी ये कविता
इक दूजे से, देर तलक बातें करते हैं
काग़ज़ के टुकड़े पर फ़ैली...
वो, मेरे सीने पे सर रख, सो जाती है
मैं भी देर तलक उसको पढता रहता हूँ
हम दोनों ही खो जाते हैं...
मैं कविता में...
कविता मुझ में ....

बहुत खूबसूरत, मुफ़लिस जी,
रचनाकार के मनोभाव को बेहतरीन अंदाज़ में पेश किया है आपने.

"अर्श" said...

इस आड़ी-तिरछी रेखा के क्या कहने .... बस गुन रहा हूँ नज़्म को ....


अर्श

उम्मतें said...

खाली खाली कहां वहां तो बहुत कुछ खूबसूरत सा छुपा हुआ लगता है जिसमें से थोडा सा आज बाहर

उस्ताद जी said...

6/10


बेहतरीन नज़्म
एहसासों की रवानगी कुछ ऐसी जो पढने वाले का दिल धड्काती भी है और महकाती भी है
रचना आम पाठक के लिए नहीं है इसलिए एक अंक कम दिए हैं :)

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

इक आमद होने लगती है
आड़े-तिरछे लफ़्ज़, लक़ीरें,
ख़ुशख़त-सी तहरीरों में ढलने लगते हैं
कुछ क़तरे, कुछ मुस्कानें, सब,
'इक कविता-सी' हो जाते हैं ...

क्या बात है ... बस बिलकुल ऐसे ही तो कविता बनती है ...

Kailash Sharma said...

मैं , अक्सर ही
अपनी इक बेसुध-सी धुन में
कुछ लम्हों को साथ लिए, जब
अलबेली अनजानी ख़्वाबों की दुनिया में
ख़ुद अपनी ही खोज-ख़बर लेने जाता हूँ
तब, कुछ जानी-पहचानी यादों का जादू
मुझको अपने साथ बहा कर ले जाता है ...

वह खूब..कविता के सफर की बहुत सुन्दर बानगी..जानी पहचानी यादें का जादू जब बहा कर लेजाता है तभी तो एक खूबसूरत नज़्म उतरती है कागज़ पर...बहुत सुन्दर... बधाई

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

. एक कवि जब कविता में खो जाता है तो एक बेहतरीन कविता निकलती है.. उम्दा ..
बहुत कोमलता से इन कविता में खोने के अहसासों का वर्णन किया है .. दशहरा की शुभकामनायें.

ZEAL said...

.

और अचानक
इक आमद होने लगती है
आड़े-तिरछे लफ़्ज़, लक़ीरें,
ख़ुशख़त-सी तहरीरों में ढलने लगते हैं...

यही आमद तो जिंदगी का सार हैं। सुन्दर नज़्म।

.

Ankit said...

नमस्कार मुफलिस जी,

आड़े-तिरछे लफ़्ज़, लक़ीरें,
ख़ुशख़त-सी तहरीरों में ढलने लगते हैं
कुछ क़तरे, कुछ मुस्कानें, सब,
'इक कविता-सी' हो जाते हैं ...

वाह-वा क्या कहने, बेहद खूबसूरत नज़्म है.
आपका जवाब नहीं.

Arun said...

Namsate!

Kavita per badi arth bhari kavita. Ek kavi ke man ki baichaini.


Muhjse mera nahin meri kavita ka haal puchho
So rahi abhi thaki thaki, mere seene per

Kaisa vasal hai yeh. shabdon se bahaar ki baat...


Main jo mehsoos karta hoon kavita mein likhta hoon
Jo kavita ko mehsoos karta hoon, kaho kahaan likhoon

Samay aapko jaldi jaldi mila kare to achha lagega

aisa na ho ki

Jab tak matlab samay nahin tha
Jab samay hua to matlab nahin raha

Coral said...

सुन्दर रचना !

रचना दीक्षित said...

वाह !!!बहुत खूबसूरत, बेहतरीन अंदाज़,सुन्दर पोस्ट

नीरज गोस्वामी said...

मैं और मेरी तन्हाई अक्सर बातें करते हैं...आपने तन्हि की जगह कविता को अपना साथी बनाया है जो उस से भी आगे का कदम है...सुभान अल्लाह...क्या सोच है...क्या अलफ़ाज़ हैं...क्या अंदाज़े बयां है...
मुफलिस जी आप जब लिखते हैं लाजवाब के देते हैं...और इस बार कुछ ज्यादा ही किया है...
आपकी कलम को सलाम

नीरज
अपना इ-मेल आ.इ.डी भेज दें मेहरबानी होगी...

Asha Joglekar said...

Wah, main kawita men kawita muzmen hum dono hee kho jate hain. shabd wakaee aankh micholi khelate hain humare sath aur ekaek kuch aadi tirachi laine kuch tasweeren ubharne lagatee hain. Kitsni dsvhvhi bst kis khoobsut=rati se kahee hai.

Asha Joglekar said...

Please
Kitsni dsvhvhi bst kis khoobsut=rati
kee jagah
kitani sachchi bat kitani khoobsurati se
padhen.

हरकीरत ' हीर' said...

कोई अनजानी सी आहट....
कुछ मुस्कानों के कतरे
कुछ लफ्ज़, लकीरें
देर तलक सीने पर सोते तो हैं ....

निर्मला कपिला said...

मैं कविता में...
मुझ में कविता ...
शायद इसी लिये आप इतना अच्छा लिख पाते हैं। आपकी हर रचना गहरे मे कहीं दिल के आखिरी तहखाने मे उतर कर संवेदनायें तलाश करती हैं\ भावमय रचना के लिये बधाई।

अर्चना तिवारी said...

ब्लॉग पर आने का शुक्रिया...आपकी कविता पसंद आई

Shabad shabad said...

बहुत अच्छी कविता...
कई बार पढ़ी !!

स्वप्निल तिवारी said...

nazm hai shaandaar ..... aajaad nazm hote hue lay poori tarah sadhi hui ...ehsaas umda hain ....aapko pahli dafa padha ..ab padhta rahunga ...:)