Wednesday, November 3, 2010

खूबसूरत रंगों , चमकती रौशनियों , और महकते रिश्तों का त्यौहार
'दीपावली' पहुंचा है,,, हर तरफ ख़ुशियों की फुहार बरस रही है
घर-बाज़ार, गली-कूचे सजे संवरे से नज़र आते हैं,,,
सब मन-भावन है .... लेकिन कुछ मन.... जो उदास हैं,,,
किन्ही
कारणों से मजबूर हैं,,,किसी छोटे या बड़े दुःख में घिरे हैं,,,,
आओ ... इस दीपावली पर उन सब के लिये भी ढेरों ढेरों दुआएं मांगें...
लीजिये, एक नज़्म हाज़िर है .......





चलो , कुछ उनके लिये भी चिराग़ रौशन हों .....



ये रौशनी, ये चमक, ये चहल-पहल हर सू
कि हर तरफ ही गुलो-ख़ुशबुओं के साये हैं
ज़मीं का रंग अलग ही तरह से निखरा है
कि आसमान तलक रंगो-नूर छाये हैं

ख़ुशी से झूम उठेंगे खिले-खिले चेहरे
जलेंगे दीप हर इक सिम्त शादमानी के
करेंगी रक्स ये रंगीनियाँ फ़ज़ाओं में
सितारे गीत सुनाएंगे रात-रानी के

मगर , इक ऐसा भी कोना है, जो अँधेरा है
जहाँ है दीप की आहट, न रौशनी का सुराग़
कुछ-एक ऐसे भी अरमान हैं, जो मुर्दा हैं
जहाँ हमेशा है उम्मीद, इक जलेगा चिराग़

कुछ ऐसे लोग, जो बेबस हैं , कुछ परेशाँ हैं
उदासियों के, या मजबूरियों के मारे हैं
दुखों का बोझ, बुरा वक़्त, खेल क़िस्मत का,
किसी कमी की वजह से जो ख़ुद से हारे हैं

चलो , कि उनके घरों में भी रौशनी झलके
चलो , ये सोचें कि अब प्यार हो, तो सबके लिये
चलो , कुछ उनके लिये भी चराग़ रौशन हों
चलो , दियों का ये त्यौहार हो, तो सबके
लिये

'दानिश' भारती


----------------------------------------------

हर इक सिम्त = हर तरफ , चहुँ और
शादमानी = खुशियाँ , उल्लास
रक्स (raqs) = नृत्य, नाच

----------------------------------------------

आप सब को दीपावली की ढेरों शुभकामनाएँ
_________________________________

31 comments:

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

कुछ ऐसे लोग, जो बेबस हैं , कुछ परेशाँ हैं
उदासियों के, या मजबूरियों के मारे हैं
दुखों का बोझ, बुरा वक़्त, खेल क़िस्मत का,
किसी कमी की वजह से जो ख़ुद से हारे हैं...

बहुत अच्छी नज़्म है मुफ़लिस जी...
त्यौहार की सार्थकता इसी में है कि अपनी खुशियां सभी के साथ बांटी जाएं...
दीपावली की शुभकामनाएं.

डॉ टी एस दराल said...

जो किसी वज़ह से खुशियों से महरूम हैं , उनके लिए भी दीप जलाएं ।
नज़्म का भाव बहुत बढ़िया है मुफलिस जी ।
ख़ुशी मनाने वालों को भी ध्यान रखना चाहिए कि कहीं कोई रोगी जिंदगी से लड़ रहा है ।

डॉ टी एस दराल said...

दीपावली की शुभकामनायें ।

उम्मतें said...

ओह बहुत खूबसूरत और नेक इरादे ! ऐसा ही हो ! आमीन !

ZEAL said...

.

बेहतरीन रचना, सुन्दर भाव !

.

रश्मि प्रभा... said...

दीपावली की शुभकामनाएं.

"अर्श" said...

आप बुरा ना मने तो एक बात कहूँ , ये नज़्म पढ़ते हुए ऐसा लगा मुझे की मैं अहमद फ़राज़ साहब को पढ़ रहा हूँ ... जिस मुकाम की बात आपने की है जिस ऊँचाइयों पर ले जाकर वो कमाल का है ... दिवाली की ढेरो बधाईयाँ और शुभकामनाएं ...

अर्श

इस्मत ज़ैदी said...

मगर , इक ऐसा भी कोना है, जो अँधेरा है
जहाँ है दीप की आहट, न रौशनी का सुराग़
कुछ-एक ऐसे भी अरमान हैं, जो मुर्दा हैं
जहाँ हमेशा है उम्मीद, इक जलेगा चिराग़

बहुत ख़ूब!जी हां ये उम्मीद हमेशा क़ायम है कि इक न इक दिन चराग़ ज़रूर जलेगा

कुछ ऐसे लोग, जो बेबस हैं , कुछ परेशाँ हैं
उदासियों के, या मजबूरियों के मारे है
दुखों का बोझ, बुरा वक़्त, खेल क़िस्मत का,
किसी कमी की वजह से जो ख़ुद से हारे हैं

यक़ीनन अस्ल दीवाली वही होगी जब धरा पर किसी कोने में भी अंधेरा बाक़ी न हो

बहुत ख़ूबसूरत नज़्म है ,मुबारक हो

vijay kumar sappatti said...

hats off to you sir,
mera salaam kabul kariye.

vijay

हरकीरत ' हीर' said...
This comment has been removed by the author.
हरकीरत ' हीर' said...

लेकिन कुछ मन.... जो उदास हैं,,,
किन्ही कारणों से मजबूर हैं,,,किसी छोटे या बड़े दुःख में घिरे हैं,,,,
आओ ... इस दीपावली पर उन सब के लिये भी ढेरों ढेरों दुआएं मांगें......

रब्ब उस हर शख्स को खुशियाँ इजाद करे जो इस पाक दुआ में यहाँ शामिल हुआ है .....

चलो , कि उनके घरों में भी रौशनी झलके
चलो , ये सोचें कि अब प्यार हो, तो सबके लिये
चलो , कुछ उनके लिये भी चराग़ रौशन हों
चलो , दियों का ये त्यौहार हो, तो सबके लिये

दुआ है रब्ब उन घरों को भी इस दिवाली में जिया दे ..
हर सिम्त रेफाकत की शमा फरोजां रहे ....

सिर्फ खंजर ही नहीं हाथों में सबके लिए दुआ चाहिए
अय खुदा तेरे दर से बस मोहब्बत का इक दीया चाहिए ....

Alpana Verma said...

मगर , इक ऐसा भी कोना है, जो अँधेरा है
जहाँ है दीप की आहट, न रौशनी का सुराग़
कुछ-एक ऐसे भी अरमान हैं, जो मुर्दा हैं
जहाँ हमेशा है उम्मीद, इक जलेगा चिराग़
बेहतरीन नज़्म -
-----इस दीपावली पर उन सब के लिये हम सभी ढेरों ढेरों दुआएं मांगें..
दिवाली सभी के लिए शुभ हो ऐसी मंगल कामनाएं हैं.

VARUN GAGNEJA said...

SIR, AAPKI YEH NAZM AAP KE KOMAL MAN KA PRATIBIMB HAI. IS KE ILAWA KUCH AUR KEHNA YA LIKHNA BEMAANI HO YA NA HO LEKIN AAP KE EHSAAS SE BADH KAR NAHI HOGA.

KEEP IT UP
AAPKO BHI DEEPAWALI KI HARDIK SHUBHKAMNAYEIN

Shabad shabad said...

दीपावली के इस पावन पर्व पर आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनायें....

Dorothy said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.

इस ज्योति पर्व का उजास
जगमगाता रहे आप में जीवन भर
दीपमालिका की अनगिन पांती
आलोकित करे पथ आपका पल पल
मंगलमय कल्याणकारी हो आगामी वर्ष
सुख समृद्धि शांति उल्लास की
आशीष वृष्टि करे आप पर, आपके प्रियजनों पर

आपको सपरिवार दीपावली की बहुत बहुत शुभकामनाएं.
सादर
डोरोथी.

Dr.Ajmal Khan said...

ख़ुशी से झूम उठेंगे खिले-खिले चेहरे
जलेंगे दीप हर इक सिम्त शादमानी के
करेंगी रक्स ये रंगीनियाँ फ़िज़ाओं में
सितारे गीत सुनाएंगे रात-रानी के

बेहतरीन रचना, सुन्दर भाव..

दीपावली की शुभकामनाएं.......

manu said...

हुजूरे आला....

दिवाली की इस नायाब नज़्म को पढ़ते वक़्त लगा जैसे 'दानिश भारती' ने मुझ 'मुफलिस' के ही लिए ये दुआएं लिखी हैं....
आम आदमी को त्यौहार कैसे मुंह चिढा कर चले जाते हैं न अब ...!!हर चीज में विलासिता कैसी घर कर चुकी है...

रात घंटों तक छत पर तनहा खड़े इस आग के त्यौहार को सोचते ही रहे और मोहल्ले के बच्चों को...जिनमें हमारे भी तीनों शामिल थे..से कितना कहते रहे हम कि बड़े वाले पटाखे कहीं और जाकर चलाओ...

खैर..

नीरज गोस्वामी said...
This comment has been removed by the author.
नीरज गोस्वामी said...

चलो , कि उनके घरों में भी रौशनी झलके
चलो , ये सोचें कि अब प्यार हो, तो सबके लिये
चलो , कुछ उनके लिये भी चराग़ रौशन हों
चलो , दियों का ये त्यौहार हो, तो सबके लिये

क्या लिख दिया है आपने भाई जान...कलेजा मुंह को आ गया है...गला रुंध सा गया है, आँखें छलक गयीं हैं...आज के इस दौर में जब सब सिर्फ अपने ही बारे में सोचते हैं दूसरों के बारे में इस तरह सोचने वाला आप जैसा कोई मुफलिस ही हो सकता है...तारीफ़ के लफ़्ज़ों में इतनी तासीर नहीं के वो दिल में इस नज़्म को पढ़ कर उठते हुए ज़ज्बात को हूबहू पेश कर सकें...
मुरीद तो पहले से थे हम आपके अब तो दीवाने हो गए...
दीवाली की शुभकामनाएं.

नीरज

Kunwar Kusumesh said...

नज़्म के ज़रिये आपने उन्हें याद किया जो किसी मुसीबत या परेशानी वश दीवाली जोश व ख़ुशी से नहीं मना पा रहे हैं.आपकी ये सोंच सराहनीय है,वरना लोगों को आजकल अपनी ख़ुशी के आगे दूसरों का दुःख याद कहाँ रहता है.नज़्म बेहतरीन है.

कुँवर कुसुमेश

Asha Joglekar said...

Aise sab logon ke liye jalayen ek chirag hum ummeed ka.
Behad khoobsoorat peshkash.

Urmi said...

आपको एवं आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
बहुत ही सुन्दर और शानदार रचना ! बधाई!

दिगम्बर नासवा said...

मुफ़लिस जी... कमाल के भाव हैं इस नज़्म में ... आपका लिखा तो वैसे भी हमेशा दिल में उतर जाता है .. इस दीपावली में भी आपका सन्देश दिल में उतरता है .. आपको और परिवार को दीपावली की मंगल कामनाएं ..

Anonymous said...

चलो , कि उनके घरों में भी रौशनी झलके
चलो , ये सोचें कि अब प्यार हो, तो सबके लिये !!
ऐसे उद्दात्त विचारों के लिए आपको बधाई !!!

Pawan Kumar said...

दीपावली पर आपने अपने मुक्तकों से क्या खूब रूशनी बिखेरी है......वाह वाह.....
ये रौशनी, ये चमक, ये चहल-पहल हर सू
कि हर तरफ ही गुलो-ख़ुशबुओं के साये हैं
ज़मीं का रंग अलग ही तरह से निखरा है
कि आसमान तलक रंगो-नूर छाये हैं

Ria Sharma said...

Khud ke liye jiye to kya jiye..

Bahut hee umda sooch ke saath likha aapne .

Prakash Parv ka ye nazrana !

रचना दीक्षित said...

चलो , कि उनके घरों में भी रौशनी झलके
चलो , ये सोचें कि अब प्यार हो, तो सबके लिये
चलो , कुछ उनके लिये भी चराग़ रौशन हों
चलो , दियों का ये त्यौहार हो, तो सबके लिये

बहुत खूब बात कही है दीपों के जरिये

निर्मला कपिला said...

मुफ्लिस जी मै भी कितनी नालायक हूँ आपकी पोस्ट देख नही पाती। ब्लागलिस्ट मे आपकी पोस्ट अपडेट नही होती थी एस लिये वहाँ से हटा दी। दोबारा डालती हूँ। आपने मेल सबस्क्रिप्शन का आपशन भी नही लगा रखा। आपकी रचना ,गज़ल पढना तो मेरे लिये वरदान होता है बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
अब इसी नज़्म मे कितनी संवेदनायें हैं मन बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है।
कुछ ऐसे लोग, जो बेबस हैं , कुछ परेशाँ हैं
उदासियों के, या मजबूरियों के मारे हैं
दुखों का बोझ, बुरा वक़्त, खेल क़िस्मत का,
किसी कमी की वजह से जो ख़ुद से हारे हैं
लाजवाब शुभकामनायें।

Arun said...

Namastey

apki rachna padh ke jo likha bhej raha hoon..


Aao shikwe jala dein is mausam e sardi mein hum
Garmayein haath, rishton ki garmi mein hum
Roshan karein chiraag, phir kissi manzil ke liye
Aao ki mohabbat ka wohi nagma phir gungunayein hum
Mehsoo karein khud ko insaan phir se, dil dhadkayein
Kissi muflis ke liye do waqt ki guzar jutayein hum
Akele akele jab se huye hein, kho ke reh gaye hein
Ab do na rahein 'saahb' aao phir se ek ho jayein hum

Namastey

shikha varshney said...

मगर , इक ऐसा भी कोना है, जो अँधेरा है
जहाँ है दीप की आहट, न रौशनी का सुराग़
कुछ-एक ऐसे भी अरमान हैं, जो मुर्दा हैं
जहाँ हमेशा है उम्मीद, इक जलेगा चिराग़

निराशा में आशा जगाती खूबसूरत नज़्म.

Nisha said...

aapki rachna se sachchi dua nikalti hai.. aapko bhi shubhkaamnaayen.