पिछ्ला बहुत सारा वक़्त साहित्यिक पत्रिका 'सरस्वती-सुमन'
के ग़ज़ल विशेषांक की देख रेख में ही गुज़रा,,,
इस दौरान दोस्तों का सहयोग , शमूलियत और शिकायतें
सब साथ साथ रहे... विशेषांक, अपने पाठकों तक पहुँच रहा है
आप चाहें, तो डॉ आनंद सुमन सिंह (मुख्य सम्पादक) से
०९४१२०-०९००० पर संपर्क करके उसे हासिल कर सकते हैं।
आपकी खिदमत में एक ग़ज़ल ले कर हाज़िर हो रहा हूँ .....
ग़ज़ल
शिकायत भी, तकल्लुफ़ भी, बहाना भी
मुझे, मन्ज़ूर है उसका सताना भी
मुसलसल इम्तेहाँ , बेचैनियाँ पल-पल
न रास आया हमें दिल का लगाना भी
बिना मतलब मेरी तनक़ीद कर-कर के
मुझे वो चाहता है आज़माना भी
नयापन आज का, माना, ज़रूरी है
सुख़न में चाहिए लहजा पुराना भी
हमेशा हम निभाएं तौर दुनिया के ?
कभी सोचे तो आख़िर कुछ ज़माना भी
यक़ीनन, मैं उसे महसूस करता हूँ
कभी ज़ाहिर, कभी कुछ ग़ायबाना भी
हमेशा ज़िन्दगी से इश्क़ फ़रमाया
मिज़ाज अपना रहा कुछ शायराना भी
बुरा वक़्त आये, तो देना जवाब ऐसे
उदास आँखों से 'दानिश' मुस्कराना भी
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तकल्लुफ़=औपचारिकता
मुसलसल=लगातार, निरंतर
तनक़ीद=आलोचना, टीका-टिप्पणी
सुख़न=काव्य-प्रक्रिया, वार्ता
तौर=शैली, पद्वति
ज़ाहिर=स्पष्टत:, प्रकट
ग़ायबाना=अस्पष्ट, अनुपस्थित
मिज़ाज=स्वभाव
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33 comments:
मुसलसल इम्तेहाँ , बेचैनियाँ पल-पल
न रास आया हमें दिल का लगाना भी
आसान से अल्फ़ाज़ में कैफ़ियात की बहुत उम्दा अक्कासी की है शायर ने ,
नयापन आज का, माना, ज़रूरी है
सुख़न में चाहिए लहजा पुराना भी
बिल्कुल ज़रूरी है वर्ना ग़ज़ल का रवायती लब ओ लहजा ही ख़त्म हो जाएगा
बेहद ख़ूबसूरत मक़ता !
आदरणीय 'दानिश'जी
सस्नेहाभिवादन !
ग़ज़ल क्या है … हीरों का पैकेट है :)
…एक एक शे'र दमक रहा है किसे छांटा जाए कोट करने को ?
मैं जिस एंगल से देख रहा हूं, इन दो अश्'आर की चमक से कुछ ज़्यादा प्रभावित हूं-
हमेशा हम निभाएं तौर दुनिया के ?
कभी सोचे तो आख़िर कुछ ज़माना भी
दुनिया ओ दुनिया तेरा जवाब नहीं …
बहुत मेरे एहसास के क़रीब
हमेशा ज़िन्दगी से इश्क़ फ़रमाया
मिज़ाज अपना रहा कुछ आशिक़ाना भी
आहा ! गिरफ़्त में ले लिया इस शे'र ने
… इन्हें खो न दूं इसलिए अब एंगल बदल कर नहीं देखूंगा ।
… तो भूमिका के बारे में कह कर विदा लूं …
मुकाबिल क्या करें दानिश के आगे सब
सजा कर बेचते सामां पुराना भी
:) :) :)
हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
अब क्या कहें दानिश जी ! आपको तो सताया जाना भी मंज़ूर है ........जुबां खामोश है ....इन्तेहा कर दी आपने.......सर झुकाता हूँ ज़नाब !
बुरा वक़्त आये, तो देना जवाब ऐसे
उदास आँखों से 'दानिश' मुस्कराना भी
Kya baat hai!
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने ... और आज की ग़ज़ल की बात सबसे ज़रूरी बात जो आपने कही
नयापन आज का, माना, ज़रूरी है
सुख़न में चाहिए लहजा पुराना भी
वाह ..... एक बार रोक कर कुछ सोचने को कहता है ये शेर ....
सादर
वाह वा दानिश जी,
आप की ग़ज़ल का हमेशा इंतज़ार रहता है,
बेहद खूबसूरत मतला कहा है............मज़ा आ गया
"नयापन आज का, माना, ज़रूरी है..............." वाह वा
ये शेर "हमेशा हम निभाएं तौर दुनिया के.........", "बिना मतलब मेरी तनक़ीद कर-कर के..........." बहुत खूब निभाए हैं.
लाजवाब ग़ज़ल.
जदीदियत के साथ रवायती अंदाज़ की बड़ी खूबसूरती से पैरवी की है आपने.
नयापन आज का, माना, ज़रूरी है
सुख़न में चाहिए लहजा पुराना भी
इस शेर के तो कहने ही क्या . वाह वाह .
ग़ज़ल गाने में अच्छी लग रही है,
हमें आता है थोड़ा गुनगुनाना भी.
नयापन आज का, माना, ज़रूरी है
सुख़न में चाहिए लहजा पुराना भी
सहमत हैं हम भी ।
हमेशा ज़िन्दगी से इश्क़ फ़रमाया
मिज़ाज अपना रहा कुछ आशिक़ाना भी
वाह वाह , क्या बात है ।
राजेन्द्र जी की टिप्पणी भी कम शायराना नही ।
ओये होए .....!!
कहाँ से निकालें हैं मुफलिस जी ये हीरे ....
आज तो आप सचमुच दानिश हो गए .....
शिकायत भी , तकल्लुफ़ भी , बहाना भी
मुझे, मन्ज़ूर है उसका सताना भी
बल्ले -बल्ले .....??????
मुसलसल इम्तेहाँ , बेचैनियाँ पल-पल
न रास आया हमें दिल का लगाना भी
इम्तेहनों से डरते हैं ....?
ये बेचैनियाँ बड़ा सुकून देती हैं ...
बिना मतलब मेरी तनक़ीद कर-कर के
मुझे वो चाहता है आज़माना भी
क्या बात है ....
सारे शे'र बिलकुल मूड में लिखे हैं लगता है .....
बाकी पर फिर आती हूँ .....
लाजवाब!
ऐसा लगा कि मेरे दिल की बात आप ने बयान कर दी.
मुसलसल इम्तेहाँ , बेचैनियाँ पल-पल
न रास आया हमें दिल का लगाना भी
वाह ..वाह क्या बात है .बढ़िया ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .
दानिश साहब। बहुत खुब। एक शेर मेरा भी.........
निभाइये हर एक से प्यार का रिश्ता
आपके दर्द में काम आएगा ये जमाना भी।
priya danish ji
sadar namskar ,
sundar samnvay shabdon ka ,vicharon ka ,ahsas ka ,budhimatta ka . pahali bar padha ,maulik rachna ke liye bahut -2 abhar .
मुसलसल इम्तेहाँ , बेचैनियाँ पल-पल
न रास आया हमें दिल का लगाना भी
bas aur kuch nahi kahna sarkaar ..... bahut din hue huzoor, ek nazar idhar bhi daal diya karo..
Behatarin,khubsurat ghazal.
Har sher lajawab.
सबसे पहले तो मतले की क़ामयाबी के लिए ढेरो बधाईयाँ क़ुबूल फरमाएं ! और शे'र यक़ीनन मैं उसे महसूस ... वाह वाह कह उठा .. और मक्ते के लिए भी खास तौर से बधाई आपको ...
पत्रिका के लिए मैं कल कॉल करता हूँ डा. साब को !
अर्श
आप के लिखने का अंदाज़ बेहद उम्दा है...लिखने की तालीम नही मुझे...लेकिन सोहबते असर से फायदा जरुर होगा।
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल.
उस्तादों की तारीफ़ करें भी तो कैसे .
बहुत खूबसूरत -सुभान अल्लाह !
मुसलसल इम्तेहाँ , बेचैनियाँ पल-पल
न रास आया हमें दिल का लगाना भी
पहले तो मतला पढ कर मज़ा आगया
हमेशा हम निभाएं तौर दुनिया के ?
कभी सोचे तो आख़िर कुछ ज़माना भी
वाह क्या बात है
नयापन आज का, माना, ज़रूरी है
सुख़न में चाहिए लहजा पुराना भी
अपनी बात इतने सुन्दर ढंग से कहना कोई आप से सीखे । मै भी आज ही पत्रिका के लिये फोन करती हूँ। शुभकामनायें।
हमेशा ज़िन्दगी से इश्क़ फ़रमाया
मिज़ाज अपना रहा कुछ शायराना भी
बुरा वक़्त आये, तो देना जवाब ऐसे
उदास आँखों से 'दानिश' मुस्कराना भी ..
हर शेर नगीना है आपका .. हर बयाँ जुदा है ...
बहुत कुछ सीकने को होता है आपकी गजलों में .. आसान शब्दों से खेलना और कुछ बुनना आपकी फितरत है ..
यक़ीनन, मैं उसे महसूस करता हूँ
कभी ज़ाहिर, कभी कुछ ग़ायबाना भी
हूँ......हूँ.....
हमेशा ज़िन्दगी से इश्क़ फ़रमाया
मिज़ाज अपना रहा कुछ शायराना भी
जी इस बार तो कुछ दिख रहा है .....
बुरा वक़्त आये, तो देना जवाब ऐसे
उदास आँखों से 'दानिश' मुस्कराना भी
सुभानाल्लाह .....
ये है मुफलिसी अंदाज़ .....
बुरा वक़्त आये, तो देना जवाब ऐसे
उदास आँखों से 'दानिश' मुस्कराना भी
यही जीवन है...दिल को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
अरे, वाह ! वाह!! क्या ग़ज़ल है, सर..वाह वाह!!
हमेशा हम निभाएं तौर दुनिया के ?
कभी सोचे तो आख़िर कुछ ज़माना भी
इस शेर पर तो उफ़्फ़्फ़-हाय वाली नौबत आ गयी।
यक़ीनन, मैं उसे महसूस करता हूँ
कभी ज़ाहिर, कभी कुछ ग़ायबाना भी
...और ये तो कातिलाना! कुछ लोगों का कत्ल करने की खातिर लिये जा रहा हूं संग अपने।
यक़ीनन, मैं उसे महसूस करता हूँ
कभी ज़ाहिर, कभी कुछ ग़ायबाना भी
na hone main bhee hone ka ahsaas
....gazab !!
"शिकायत भी, तकल्लुफ़ भी, बहाना भी/ मुझे, मन्ज़ूर है उसका सताना भी" | बहुत सुन्दर है अंदाज -ए-बयां आपका . मेरी बधाई स्वीकारें- अवनीश सिंह चौहान
नयापन आज का, माना, ज़रूरी है
सुख़न में चाहिए लहजा पुराना भी
bilkul sach.....!!!!! us lehze bina bhi kya sukhan.
bohot bohot khoobsurat ghazal....behad umdaa....
नयापन आज का, माना, ज़रूरी है
सुख़न में चाहिए लहजा पुराना भी
क्या बात है ... बहुत खूब !
यक़ीनन, मैं उसे महसूस करता हूँ
कभी ज़ाहिर, कभी कुछ ग़ायबाना भी
मालूम है कि ये हमारे लिए नहीं लिखा गया है...मगर यहाँ आकर ...जैसे डान की खोयी याद दाश्त वापस आ गयी है...अपने गैंग को ( दर्पण की कमी खल रही है )
देख कर जी कर रहा है जाने क्या से क्या लिख दें...क्या से क्या लुटा डालें....
हालांकि इन दिनों कमेन्ट करने के लिए मना किया हुआ है हमें ..हमारे डॉक्टर ने...
:)
हमेशा हम निभाएं तौर दुनिया के ?
कभी सोचे तो आख़िर कुछ ज़माना भी
कमाल लिखते हैं आप...आपका कलाम पढना एक अनुभव से गुजरने जैसा है...सुभान अल्लाह...
नीरज
खुबसूरत....
"नयापन आज का, माना, ज़रूरी है
सुख़न में चाहिए लहजा पुराना भी"
वाह... सभी अशआर कमाल हैं...
आभार....
शिकायत भी, तकल्लुफ़ भी, बहाना भी
मुझे., मन्ज़ूर है उसका सताना भी.हमेशा ज़िन्दगी से इश्क़ फ़रमाया
मिज़ाज अपना रहा कुछ शायराना भी
bhut sunadar................
bhut acchha likhte hai aap...dil ko chhu gai aapki gajal...
jaahir hai......behtareen
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