और कागज़ के किन्हीं टुकड़ों पर लिखी रह गईं कुछ तहरीरें
अचानक आवाज़ देने लगतीं हैं...बिसरी यादों पर भले ही
कोई बस न चल पाए,, लेकिन कुछ लिखतें तो क़ाबू में आ ही
जाती हैं... एक पुरानी ग़ज़ल, जिसके कुछ शेर आप पहले भी
पढ़ चुके होंगे,,, कुछ तरमीम /संशोधन के बाद फिर से आपसे
साँझा कर रहा हूँ... ... ... ...
ग़ज़ल
हर मुखौटे के तले एक मुखौटा निकला
अब तो हर शख्स के चेहरे ही पे चेहरा निकला
आज़माईश तो ग़लत- फ़हमी बढ़ा देती है
इम्तिहानों का तो कुछ और नतीजा निकला
दिल तलक जाने का रस्ता भी तो निकला दिल से
वो शिकायत तो फ़क़त एक बहाना निकला
कोई सरहद न कभी रोक सकी रिश्तों को
ख़ुशबुओं पर, न कभी कोई भी पहरा निकला
रोज़ सड़कों पे गरजती हुई दहशत-गर्दी
रोज़, हर रोज़ शराफ़त का जनाज़ा निकला
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
यूँ तो काँधों पे वो इक भीड़ लिये फिरता है
ग़ौर से देखा, तो हर शख्स ही तनहा निकला
रंग कोई है ज़माने का, न दुनियादारी
लोग सब हँसते हैं, 'दानिश' तू भला क्या निकला
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41 comments:
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
बहुत खूब ....आपका हर शेर बहुत उम्दा है ....
जिन्दगी के वैसे भी रंग हज़ार है ..जिसे कोई नहीं समझ पाया है
कोई सरहद न कभी रोक सकी रिश्तों को
ख़ुशबुओं पर, न कभी कोई भी पहरा निकला
waah
यूँ तो काँधों पे वो इक भीड़ लिये फिरता है
ग़ौर से देखा, तो हर शख्स ही तनहा निकला
बहुत खूब !...लाज़वाब गज़ल...हरेक शेर बहुत उम्दा और दिल को छू जाता है...
हर मुखौटे के तले एक मुखौटा निकला
अब तो हर शख्स के चेहरे ही पे चेहरा निकला
.....क्या खूब मतला कहा है दानिश भाई! यही इस दौर की हकीकत है.
कोई सरहद न कभी रोक सकी रिश्तों को
ख़ुशबुओं पर, न कभी कोई भी पहरा निकला
.....बिलकुल सही बात है.
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
.....आज हर खुद्दार और संवेदनशील इंसान को जिंदगी से यही शिकायत है. जिंदगी उम्र भर सिर्फ सब्र का इम्तहान लेती है. जो मानवीय संवेदना से मुक्त हैं उनका कभी कोई इम्तहान नहीं होता. किस-किस शेर का जिक्र करूं. हर शेर पुरअसर...ग़ज़ल लाजवाब...मुबारक हो...!
---देवेंद्र गौतम
क्या बात है। शानदार गजल। किस किस शेर की तारीफ करू । हर शेर लाजवाब है।
तू दिल से कहे 'दानिश' मैं दिल से सुनूं
अगली सहर के लिये ,मैं शब् में सितारे गिनूँ|
बहुत खूब !
खुश रहें|
अशोक सलूजा |
दिल तलक जाने का रस्ता भी तो निकला दिल से
वो शिकायत तो फ़क़त एक बहाना निकला...
बेहतरीन ग़ज़ल...वाह वाह
अगर अपने लिए खास चुनना हो तो ये शेर लाजवाब रहेगा.
कोई सरहद न कभी रोक सकी रिश्तों को
ख़ुशबुओं पर, न कभी कोई भी पहरा निकला
बहुत लाजवाब ... कमाल का शेर है इस बेहतरीन ग़ज़ल का .. आपका अंदाज़ हमेशा ही दिल में उतार जाता है ...
कोई सरहद न कभी रोक सकी रिश्तों को
ख़ुशबुओं पर, न कभी कोई भी पहरा निकला--
बेहद खूबसूरत भाव ...
कोई सरहद न कभी रोक सकी रिश्तों को
ख़ुशबुओं पर, न कभी कोई भी पहरा निकला..bahut khoob.ek ek sher laajabab hai.aap mere blog par aaye bahut bahut shukriya.aap bahut achcha lkhte hain.follow kar rahi hoon.yese hi milte rahiye.shubhkamnaayen.
कोई सरहद न कभी रोक सकी रिश्तों को
ख़ुशबुओं पर, न कभी कोई भी पहरा निकला
अदब के ख़ज़ाने का एक और दुर ए नायाब !
बहुत ख़ूब !
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
यूँ तो काँधों पे वो इक भीड़ लिये फिरता है
ग़ौर से देखा, तो हर शख्स ही तनहा निकला
ज़िन्दगी की जानिब इंसानी सोच को उजागर करते हुए ये अश'आर
अपने वजूद को मनवाने में कामयाब हैं
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए आप मुबारकबाद के हक़दार हैं
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला....
बड़ी खूबसूरत गज़ल कही है दानिश जी, हर शेर उम्दा हैं...
सादर...
ग़ज़ल को साझा करने का का बहुत बहुत शुक्रिया. पूरी ग़ज़ल बेहतरीन है. कथ्य के हिसाब से एकदम दुरुस्त...!! ये दो शेर मुझे बहुत अच्छे लगे.
कोई सरहद न कभी रोक सकी रिश्तों को
ख़ुशबुओं पर, न कभी कोई भी पहरा निकला
यूँ तो काँधों पे वो इक भीड़ लिये फिरता है
ग़ौर से देखा, तो हर शख्स ही तनहा निकला
सभी शेर अति सुन्दर ।
लेकिन ये तो बहुत पसंद आए ।
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
यूँ तो काँधों पे वो इक भीड़ लिये फिरता है
ग़ौर से देखा, तो हर शख्स ही तनहा निकला
रोज़ सड़कों पे गरजती हुई दहशत-गर्दी
रोज़, हर रोज़ शराफ़त का जनाज़ा निकला
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
यूँ तो काँधों पे वो इक भीड़ लिये फिरता है
ग़ौर से देखा, तो हर शख्स ही तनहा निकला
बाउजी कसम से आज आपको गले लगाने को दिल कर रहा है...इन अशआरों ने तो लूट लिया है हमें...आप कभी कभी क्या लिख जाते हैं...उफ़...आप को नहीं मालूम. जान ले लेते हैं हुज़ूर...कमाल करते हैं आप.
नीरज
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला...
बेहतरीन ग़ज़ल...
कोई सरहद न कभी रोक …………….
तू सितम करने में माहिर................
ग़ौर से देखा, तो हर..................
रंग कोई है ज़माने का, न दुनियादारी
लोग सब हँसते हैं, 'दानिश' तू भला क्या निकला
दानिश जी, बहुत बहुत आभार जो आप ने हमारी खैर खबर ली| भाई जी यहाँ कुछ परिंदे ऐसे भी हैं जो आप की आमद की बाट जोहते रहते हैं| नीरज भाई ने तो पुलिंदा खोल ही दिया है, भाई क्या तारीफ करें – वाह वाह वाह| मक़्ते में झण्डा फहरा दिया आपने| आज के इंसान के कई सारे रंगों को तार तार करती हुई खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई भाई जी|
कोई सरहद न कभी रोक सकी रिश्तों को
ख़ुशबुओं पर, न कभी कोई भी पहरा निकला
vaah!
वाह वा, बहुत खूब ग़ज़ल कही है, आपकी कलम की जादूगरी है कि लफ्ज़ शेरों में ढलकर एक अलग ही जादू कर रहे हैं. यूँ तो हर एक शेर बेहतरीन है मगर कुछ शेर जिन्हें बारहां पढ़े जा रहा हूँ वो, यूँ हैं.
आज़माईश तो ग़लत- फ़हमी बढ़ा देती है
इम्तिहानों का तो कुछ और नतीजा निकला
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
दिन मुकम्मल हो गया.
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
BAHOOT KHOOB. ALL THE COUPLETS ARE REPRESENTING THE DIFFERENT ANGLES OF PERCEPTION...ONE MAY CHOOSE ONE OF HIS KIND..MUBARAKBAAD QABOOL FARMAYEIN HUZUR
रोज़ सड़कों पे गरजती हुई दहशत-गर्दी
रोज़, हर रोज़ शराफ़त का जनाज़ा निकला
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
behtareen ashaar...
बहुत सुंदर लाज़वाब गज़ल विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
जो दिल ने कहा ,लिखा वहाँ
पढिये, आप के लिये;मैंने यहाँ:-
http://ashokakela.blogspot.com/2011/05/blog-post_1808.html
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
Wah Danish jee kamal kee gajal aur ye sher to sirmor hai.
dkmuflis@gmail.com
रोज़ सड़कों पे गरजती हुई दहशत-गर्दी
रोज़, हर रोज़ शराफ़त का जनाज़ा निकला
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
लाज़वाब गज़ल...आपकी लेखनी में जादू है आपकी गज़लें मन को छूने में कामयाब रहती हैं |
बधाई और शुभकामनाएं |
दिल तलक जाने का रस्ता भी तो निकला दिल से
वो शिकायत तो फ़क़त एक बहाना निकला...
:)
ye she'r kaise bhool sakte hain bhalaa....?
itane saalon baad bhi ham ise yoon hi dil se lagaaye hain
un khoobsoorat dinon ki yaadgaar hai ye she'r...
matlaa padhne ke baad dhadakte dil se is she'r tak pahunche the....
:)
shukra hai ..
ki ismein koi tabdili nahin hui hai.....
शानदार गजल........
लेकिन ये तो बहुत पसंद आए........
कोई सरहद न कभी रोक सकी रिश्तों को
ख़ुशबुओं पर, न कभी कोई भी पहरा निकला
यूँ तो काँधों पे वो इक भीड़ लिये फिरता है
ग़ौर से देखा, तो हर शख्स ही तनहा निकला...
मुबारकबाद !
Liked it a lot...my favorite...
आज़माईश तो ग़लत- फ़हमी बढ़ा देती है
इम्तिहानों का तो कुछ और नतीजा निकला
बहुत खूब! सब शेर एक से बढ़कर एक हैं!
ये वाले कुछ ख़ास लगे!
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
यूँ तो काँधों पे वो इक भीड़ लिये फिरता है
ग़ौर से देखा, तो हर शख्स ही तनहा निकला
यह हर व्यक्ति डबल रौल में ही नजर आता है।खूबसूरत बात ।आजमाईश ---
परखना मत परखने से कोई अपना नहीं रहता ।
किसी भी आइने में देर तक चेहरा नहीं रहता
दानिश जी,
बड़ी खूबसूरत गज़ल है
कोई सरहद न कभी रोक सकी रिश्तों को
ख़ुशबुओं पर, न कभी कोई भी पहरा निकला--
लाज़वाब ....बेहद खूबसूरत भाव!
दिल तलक जाने का रस्ता भी तो निकला दिल से
वो शिकायत तो फ़क़त एक बहाना निकला'
........
कोई सरहद न कभी रोक सकी रिश्तों को
ख़ुशबुओं पर, न कभी कोई भी पहरा निकला
बहुत खूब !क्या बात कही है !!
....बेहतरीन ग़ज़ल.......
रोज़ सड़कों पे गरजती हुई दहशत-गर्दी
रोज़, हर रोज़ शराफ़त का जनाज़ा निकला
bahut umda gazal
बेहतरीन ग़ज़ल दानिश साहब हमने पूरी नोट कर ली है .
ati sundar....
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला.
वाह! बहुत खूब कहा है !
...
शानदार ग़ज़ल.
बहुत ही खूबसूरत गज़ल है. मतले से लेकर आखिरी शेर तक एक एक शेर उम्दा.
तू सितम करने में माहिर, मैं सितम सहने में
ज़िन्दगी ! तुझसे तो रिश्ता मेरा गहरा निकला
लाजवाब!!
र मुखौटे के तले एक मुखौटा निकला
अब तो हर शख्स के चेहरे ही पे चेहरा निकला
'
MUKHOTO KI AAD ME HI LOG ZINDAGI JEE DAALTE HAIN....
SUNDER AUR SAARTHAK ABHIVYAKTI....
हर मुखौटे के तले एक मुखौटा निकला
अब तो हर शख्स के चेहरे ही पे चेहरा निकला
हर शेर लाजवाब है....!
मुबारक हो...!!
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