सूर्य देव के दीदार भी नहीं हो पा रहे हैं,, और सुबह शाम की
धुंद और घने कोहरे से हाथ को हाथ सुझाई नहीं देता
बस हैं तो जगह-जगह छोटे-बड़े अलाव,, थोड़ी-थोड़ी मूंगफली,,
गुड वाली गचक...और आपके लिए... ग़ज़ल के कुछ शेर.... !!
ग़ज़ल
ज़रा-ज़रा-सी बात पे वो झूट बोलता तो है
उसी का एतबार बार-बार कर लिया तो है
फ़ज़ा-फ़ज़ा महक गयी, समाँ बहक गया तो है
क़रीब आके, गुनगुना के, उसने कुछ कहा तो है
भला नहीं, बुरा सही, ख़याल में उसी के हूँ
शिकायतों में ही सही मुझे वो सोचता तो है
घिरी हैं जो भँवर में, वो भी पार होंगीं कश्तियाँ
यक़ीन-ए-नाख़ुदा नहीं , नवाज़िश-ए-ख़ुदा तो है
गया जहाँ कहीं भी वो, भुला सका न घर कभी
तलाश-ए-रोज़गार में वो दर-ब-दर फिरा तो है
सिमट चुका है आज हर बशर बस अपने आप में
कि जज़्ब-ए-दुआ-ओ-ख़ैर आज घट गया तो है
ख़ला तलाशने की आज हो रही हैं कोशिशें
हयात-ए-बदगुमान का सुराग़-सा मिला तो है
अदब-शनास, रुशनास 'दानिश'-ए-अज़ीम तू
ख़ुदा भला करे तेरा , तू ख़ुद से आशना तो है
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फ़ज़ा=वातावरण/चौतरफा
यक़ीन-ए-नाख़ुदा=नाविक का भरोसा
नवाज़िश-ए-खुदा=भगवान् कि कृपा
ख़ला=अन्तरिक्ष
हयात-ए-बदगुमान=संदिग्ध जीवन/जीवन के आसार
जज़्ब-ए-दुआ-ओ-ख़ैर=भलाई और नेकी की भावनाएं
अदब-शनास=साहित्य का ज्ञाता
रुशनास=परिचित/वाक़िफ़
अज़ीम=महान
आशना=परिचित
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28 comments:
यक़ीन-ए-नाख़ुदा नहीं , नवाज़िश-ए-ख़ुदा तो है
बेहद खुबसूरत गजल है।
घिरी हैं जो भँवर में, वो भी पार होंगीं कश्तियाँ
यक़ीन-ए-नाख़ुदा नहीं , नवाज़िश-ए-ख़ुदा तो है
गया जहाँ कहीं भी वो, भुला सका न घर कभी
तलाश-ए-रोज़गार में वो दर-ब-दर फिरा तो है
Wah! Kya gazab likha hai!
email dwaara praapt
muhatarmaa Ismat zaidi ki tippanee..
भला नहीं, बुरा सही, ख़याल में उसी के हूँ
शिकायतों में ही सही मुझे वो सोचता तो है
बहुत उम्दा !!
गया जहाँ कहीं भी वो, भुला सका न घर कभी तलाश-ए-रोज़गार में वो दर-ब-दर फिरा तो है
वाक़ई आसान नहीं घर को भुला पाना ,,बल्कि मुम्किन ही नहीं है
घिरी हैं जो भँवर में, वो भी पार होंगीं कश्तियाँ
यक़ीन-ए-नाख़ुदा नहीं , नवाज़िश-ए-ख़ुदा तो है
ख़ुदा की नवाज़िशात के बग़ैर तो ज़िंदगी में कुछ मुमकिन ही कहाँ है
भला नहीं, बुरा सही, ख़याल में उसी के हूँ
शिकायतों में ही सही मुझे वो सोचता तो है
घिरी हैं जो भँवर में, वो भी पार होंगीं कश्तियाँ
यक़ीन-ए-नाख़ुदा नहीं , नवाज़िश-ए-ख़ुदा तो है
bhai danish jawab nahin in ashaaron ka..bahut khoob.
भला नहीं, बुरा सही, ख़याल में उसी के हूँ
शिकायतों में ही सही मुझे वो सोचता तो है
वाह वाह , बहुत सुन्दर ।
सर्दी का भी मज़ा आ गया ।
बढ़िया पेशकश ।
खूबसूरत ग़ज़ल...
bhavo ki bahut hi sundar abhivykti....
behtarin rachana
बेहतरीन प्रस्तुति
कल 11/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है, उम्र भर इस सोच में थे हम ... !
धन्यवाद!
बहुत ही बढ़िया सर!
सादर
वाह!!!
बेहद खूबसूरत गज़ल.
शब्दों के प्रवाह ने खुदबखुद तरन्नुम में बांध दिया.
भला नहीं, बुरा सही, ख़याल में उसी के हूँ
शिकायतों में ही सही मुझे वो सोचता तो है
वाह! वाज! सर. बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल....
सादर बधाई.
भला नहीं,बुरा सही,खयाल में उसी के हूँ,
शिकायतों में ही सही मुझे वो सोचता तो है।
प्यार से न देखे हर्ज है नहीं मुझे,
घृणा से ही सही मगर वो देखता तो है।।
गया जहाँ कहीं भी वो, भुला सका न घर कभी
तलाश-ए-रोज़गार में वो दर-ब-दर फिरा तो है
बेहतरीन गज़ल का यह शेर बहुत पसंद आया क्योंकि इस पीड़ा को हम भी भोग रहे हैं.
फ़ज़ा-फ़ज़ा महक गयी, समाँ बहक गया तो है
क़रीब आके, गुनगुना के, उसने कुछ कहा तो है
भला नहीं, बुरा सही, ख़याल में उसी के हूँ
शिकायतों में ही सही मुझे वो सोचता तो है
घिरी हैं जो भँवर में, वो भी पार होंगीं कश्तियाँ
यक़ीन-ए-नाख़ुदा नहीं , नवाज़िश-ए-ख़ुदा तो है
कसम से रश्क होता है शायर पर जब उसकी ऐसी शायरी पढता हूँ...सुभान अल्लाह...कहन में रवानी ऐसी के बस पढ़ते जाओ पढ़ते जाओ पढ़ते जाओ और फिर उसके साथ साथ बहते जाओ बहते जाओ बहते जाओ...आनंद नहीं जनाब परमानंद मिलता है आपकी शायरी से. किसी एक शेर को कोट करता हूँ तो दूसरा गुर्रा कर पूछता है क्या मैं कम हूँ? इतने सारे बब्बर शेर एक ही ग़ज़ल में...ये ऐसा करिश्मा है जो सिर्फ और सिर्फ आप ही कर सकते हैं...नए साल में अपनी शायरी से पढने वालों को यूँ ही नवाजते रहें ये ही दुआ कर रहा हूँ.
नीरज
khubsurat gazal....
भला नहीं, बुरा सही, ख़याल में उसी के हूँ
शिकायतों में ही सही मुझे वो सोचता तो है
इस शे'र के लिये अब कुछ कहना बाकी है क्या ?
अर्श
बहुत भला सा लगा। कुछ पंक्तियाँ तो शायद हर पाठक को अपनी सी ही लगेंगी।
बेहद खुबसूरत गजल है। मकर संक्रांति की शुभकामनाएँ|
भला नहीं, बुरा सही, ख़याल में उसी के हूँ
शिकायतों में ही सही मुझे वो सोचता तो है
sundar ......
ख़ला तलाशने की आज हो रही हैं कोशिशें
हयात-ए-बदगुमान का सुराग़-सा मिला तो है
बहुत खूब
हर शेर खास रंगत लिए.
Daanish ji
फ़ज़ा-फ़ज़ा महक गयी, समाँ बहक गया तो है
क़रीब आके, गुनगुना के, उसने कुछ कहा तो है
घिरी हैं जो भँवर में, वो भी पार होंगीं कश्तियाँ
यक़ीन-ए-नाख़ुदा नहीं , नवाज़िश-ए-ख़ुदा तो है
ख़ला तलाशने की आज हो रही हैं कोशिशें
हयात-ए-बदगुमान का सुराग़-सा मिला तो है
वाह क्या ख्याल बुने हैं...... ख्यालों को क्या परवाज़ दी है.
Dear Blogger,
I am BJP-SAD Candidate from Ludhiana West for Punjab Assembly Election for which polling will be held on January 30, 2012.
I request you to link to my blog at www.rajinderbhandari.blogspot.com
Kindly vote and support me. I request you to use your expertise with computer and internet to promote my messages to reach the voters.
I apologize if you consider my message as an intrusion.
Prof Rajinder Bhandari
भला नहीं, बुरा सही, खयाल में उसी के हूँ
शिकायतों में ही सही मुझे वो सोचता तो है
बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल।
कृपया इसे भी पढ़े
क्या यही गणतंत्र है
One of your best...
My favorite...
घिरी हैं जो भँवर में, वो भी पार होंगीं कश्तियाँ
यक़ीन-ए-नाख़ुदा नहीं , नवाज़िश-ए-ख़ुदा तो है
बेहतरीन प्रस्तुति........... बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल
है......यह शेर बहुत पसंद आया ......
भला नहीं, बुरा सही, ख़याल में उसी के हूँ
शिकायतों में ही सही मुझे वो सोचता तो है
बधाई !
http://punjabivehda.wordpress.com
घिरी हैं जो भँवर में, वो भी पार होंगीं कश्तियाँ
यक़ीन-ए-नाख़ुदा नहीं , नवाज़िश-ए-ख़ुदा तो है
khoobsoort sher
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