Monday, January 19, 2015

ग़ज़ल / GHAZAL


कोई सूरत निकालिये साहिब
ख़ुद को दुनिया में ढालिये साहिब

अस्ल चेहरा छिपा रहे जिसमें
इक नक़ाब ऐसा डालिये साहिब

'वाह' कह कर निभाइए  सबसे
यूँ न कमियाँ निकालिये साहिब

ख़्वाब कोई तो फल ही जाएगा
ख़्वाहिशें ख़ूब पालिए साहिब

मैकदे में भी आपसी झगड़े
छोड़िये, ख़ाक डालिये साहिब

ये ज़बां कौन अब समझता है
आँसुओं को सँभालिए साहिब

जो हक़ीक़त बयां न कर पाए
वो क़लम तोड़ डालिये साहिब

क्या उसूल और क़ाइदा कैसा
काम अपना निकालिये साहिब

मुस्कुराहट में भी नमी, "दानिश"
बात हँस कर न टालिए साहिब  

4 comments:

Vaanbhatt said...

लाजवाब शेर...सुन्दर ग़ज़ल...

Vandana Ramasingh said...

ये ज़बां कौन अब समझता है
आँसुओं को सँभालिए साहिब

बहुत बढ़िया ग़ज़ल

Kailash Sharma said...

क्या उसूल और क़ाइदा कैसा
काम अपना निकालिये साहिब
,,,वाह..सभी अशआर बहुत उम्दा और यथार्थ को आइना दिखाते हुए...बहुत सुन्दर ग़ज़ल..

Unknown said...

lambi si qataar me kabse khadaa tha,
hamari taraf bhi nigaah daaliye sahib !!!

- maza aa gaya .... aap kaise hain sir? Bhot dinon ne baad blog par aaya aur abhi bhi wohi rang hai aapka :)...

Regards