एक तुम ,
कि समाये हो जो
शब्द - शब्द की रूह में
सोच के विशाल दायरों में
कल्पना की अथाह उड़ान में
देख पाने की आखिरी मंज़िल तक
स्पर्श की सीमाओं से आज़ाद
महसूस कर पाने की अनुपम परिभाषा में
आकाश के असीम विस्तार में
आदि से अंत तक
अनहद नाद की पावन गूँज में ,
तो फिर .........!!
मिल पाना कैसा .........?
बिछड़ जाना कैसा .......?
11 comments:
आपकी हिन्दी भी दिलकश
और उर्दू भी हसीं,
देख जाते हो हमें भी
शुक्रिया ऐ हमनशीं...
एक तुम ,
कि समाये हो जो
शब्द - शब्द की रूह में
सोच के विशाल दायरों में
कल्पना की अथाह उड़ान में
देख पाने की आखिरी मंज़िल तक
स्पर्श की सीमाओं से आज़ाद
महसूस कर पाने की अनुपम परिभाषा में
आकाश के असीम विस्तार में
आदि से अंत तक
अनहद नाद की पावन गूँज में ,
तो फिर ........!!
मिल पाना कैसा ............?
बिछड़ जाना कैसा .......? wah jwab nahi Muflish ji aapka...agli bar Gazal ka intjar rahega...!
Dear Muflis ,
मैं आज ही tour से लौटा हूँ , और पहली दस्तक आपके ब्लॉग पर दे रहा हूँ .
आपकी कविता पढ़कर मन कहीं खो गया .... specially ये वाली lines
देख पाने की आखिरी मंज़िल तक......
और
तो फिर .........!!
मिल पाना कैसा .........?
बिछड़ जाना कैसा .......?
.....
विरह और मिलन की अनुभूति और उस अनुभूति की गूँज ...मन को कहीं ऐसी जगह ले जाती है ,जहाँ बस आप और आपका मन हो....
आपकी इस कविता के लिए मेरे पास शब्द नही है ...बस इतना ही कहना चाहूँगा की , मैं शांत हो चुका हूँ और बस कुछ नही.....
Vijay
Indeed a great write! just awesome...
...देख पाने की आखिरी मंज़िल तक
स्पर्श की सीमाओं से आज़ाद...
yaar ,
main aapki in lines ke sammohan se nikal nahi paa raha hoon ..
मिल पाना कैसा .......?
बिछड़ जाना कैसा ......?
kya ye sirf priytam ke liye hai
ya ye prabhu ki bhakti ke liye bhi hai
jab hum zindagi se hataash ho jaaten hai ,to kya hum in lines tak nahi pahunchte aur prabhu ki aur dekhte hai ..
vijay
Bahut achcha likha hai aapne.
kya sachche prem ko koi paribhashit kr paya hai..? ye to "maiN" se "tu" tak ka safar hai...jb maiN nhi rehta, bs tu hi tu ho jata hai..
apna martbaa chhor ke prem ko wo rutbaa, wo maan, wo nazariyaa dena hota hai k sb eeshwareey lagne lge
sb shaashvat ho jaye...
mehsoos kr pane ki anupam paribhasha mei... phir ??
mil pana kaisa......
bichhar jana kaisa..
---MUFLIS---
bahut shukriyaa.......
kabhi bhi zyaadaa kahne lagoon to ese hi samjhaa diya kijeeye........
koi bhi bahas ho..ek shakhsiyat esi hi chaahiye hoti hai.....jo dono pakshon ko bheetar tak samjhe aue wo hi kahe jo aapne kahaa........
aapke samaksh manu ka naman..
वाह! कविता की आखिरी पक्तिंयों को क्या नज़रिया दिया है। किसी प्रिय के लिए हो या ख़ुदा की इबादत के लिए हो.... बहुत खूबसूरत एहसास है।
प्यार को अधूरा मानने वालो के लिए संपूर्णता का एहसास है।
महसूस कर पाने की अनुपम परिभाषा में
आकाश के असीम विस्तार में
आदि से अंत तक
अनहद नाद की पावन गूँज में ,
" maire antrmn tk kahen gehrai tk ye shabd kahin apne chap chod chle hain...."
regards
Bahut Khub Janaab
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