Saturday, January 24, 2009

"बस ये चुप-सी लगी है...नही, उदास नही....
"खामोशी के किन्ही लम्हों में बैठे-बैठे ये प्यारा गीत अचानक ही होंटो पर आ गया फिर सोच में यूँ उभरा कि खामोशी की तो कोई मुद्दत नही होती...जब आती है तो घने कोहरे की तरह ज़हनो-दिल को ढके रहती है....कुछ पल, कुछ लम्हें, कुछ रोज़....लेकिन अन्दर ही अन्दर इक उधेड़ -बुन तो रहती ही है...कभी दिल में उठी ख्वाहिशों को दिमाग हकीक़त का आइना दिखा कर चुप करवा देता है, तो कभी दिमाग की ज़िद के आगे दिल की बेबसी साफ़ नज़र आती है.......ऐसे में खामोश रहना जरुरत भी बन जाता है, और मजबूरी भी.........खैर छोडिए...! चलिए कुछ बातें करते हैं...इसी खामोशी की बातें.....आप सब अदब-नवाज़ दोस्तों की खिदमत में एक ग़ज़ल लेकर हाज़िर हूँ....उम्मीद भी है और भरोसा भी....कि आप सराहेंगे भी और कमियाँ भी बतायेंगे ......बस खामोश नही रहेंगे......वादा...?!?
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ग़ज़ल

हर नफ़स में छिपी है खामोशी
रूह तक जा बसी है खामोशी

ज़िन्दगी की तवील राहों में
हर क़दम पर बिछी है खामोशी

मैं तो लफ्जों की भीड़ में गुम हूँ
औ` मुझे ढूँढती है खामोशी

हो गया हूँ क़रीबतर ख़ुद से
जब से मुझको मिली है खामोशी

बात दिल की पहुँच गई दिल तक
काम कुछ कर गई है खामोशी

राज़े - दिल अब इसी से कहता हूँ
दोस्त बन कर मिली है खामोशी

आरिफ़ाना कलाम होता है
जब कभी बोलती है खामोशी

वक़्त पर काम आ गई आख़िर
dekh कितनी भली है खामोशी

हर घड़ी इम्तेहान लेती है
मुझ में क्या ढूँढती है खामोशी

दिन की उलझन से रूठ कर 'दानिश'
रात - भर जागती है खामोशी

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नफ़स=साँस तवील=लम्बी
आरिफाना कलाम=ईश्वरीय वाणी
खामोशी में ख के नीचे बिंदी पढ़ें ,
आठवें शेर में (देख) हिन्दी में ही पढ़ें ,
ठीक आता ही नही था
तकलीफ़ के लिए मुआफ़ीचाहता हूँ
---मुफलिस---
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46 comments:

Dr. Amar Jyoti said...

बहुत,बहुत,बहुत ही ख़ूब! हर शेर लाजवाब है।
बधाई।

रश्मि प्रभा... said...

मुझे ढूँढती है खामोशी ..........
khaamoshi bhi mukhar ho uthi har shakl me,bahut badhiyaa

हरकीरत ' हीर' said...

वाह- वाह...! जनाब इसी खामोशी का तो इन्‍तजार था ...! आपकी खामोशी ने दिल को सुकून दिया... ये शे'र तो बहुत पसंद आया-राज़े - दिल अब इसी से कहता हूँ
दोस्त बन कर मिली है खामोशी
...चलो आज की रात तो अच्‍छी कट जायेगी इस खामोशी के साथ...हाँ आपकी सरस्‍वती सुमन
मिली कमाल का लिखा आपने गज़ल के बारे में ....सलाम है आपको...!

Vinay said...

दिल के बहुत क़रीब रही आपकी यह ग़ज़ल, बेहद ख़ूबसूरत...

---आपका हार्दिक स्वागत है
गुलाबी कोंपलें

निर्मला कपिला said...

ho gaya kareebtar tujh se jab se-----bahut hi sach kaha hai bahut badiya likhte hain aap bdhaai

manu said...

जनाब, आपसे बहुत बहुत बेहतर हम लोग जानते हैं के आपके लिखे की तारीफ़ ही हो सकती है सिर्फ़ .........कमी निकलने का आपकी ग़ज़ल में क्या काम...पर बड़प्पन आपका के कैसे लिख देते हैं के कोई कमी हो तो बताएं.................

" इस ग़ज़ल में जो नुक्ताचीनी हो,
तो ग़ज़ल से भली है खामोशी"

आपकी खामोशी में बस मजा ही आ gayaa ............

Puneet Sahalot said...

bahut hi sunder abhivyakti...
"राज़े - दिल अब इसी से कहता हूँ
दोस्त बन कर मिली है खामोशी

आरिफ़ाना कलाम होता है
जब कभी बोलती है खामोशी "

गौतम राजऋषि said...

पहले तो आपने हेमंत साब की गुंजती आवाज की याद दिला कर मन को प्रफ़्फ़ुलित कर दिया और फिर इस नायाब गज़ल को सुना कर रही-सही कसर पूरी कर दी...."मैं तो लफ्जों की भीड़ में गुम हूं..’ कहने वाले इस शायअर के अंदाज़े-बयां को सलाम
अपनी उस अदनी सी गज़ल पे आपकी विनम्र टिप्पणी का इशारा समझ गया हूं,गलती सुधार कर पुनः लगा रहा हूं...
मेरे ख्याल से दूसरी बार की गयी टिप्पणी हरकिरत मैम के लिये था न कि मेरी गज़ल के लिये..

योगेन्द्र मौदगिल said...

बेहतरीन शे'र कहे हैं आपने.... वाह वाह...

द्विजेन्द्र ‘द्विज’ said...

मुझे मनु जी ने आपके blog के बारे में बताया.


बहुत ख़ूबसूरत क़लाम है आपका.

बहुत बहुत शुक्रिया

बहुत ही
ख़ूबसूरत
तर्ज़े-बयाँ के लिए.


हो गया हूँ क़रीबतर ख़ुद से
जब से मुझको मिली है खामोशी

बात दिल की पहुँच गई दिल तक
काम कुछ कर गई है खामोशी

राज़े - दिल अब इसी से कहता हूँ
दोस्त बन कर मिली है खामोशी
द्विजेन्द्र द्विज

www.dwijendradwij.blogspot.com

Sanjeev Mishra said...

राज़े - दिल अब इसी से कहता हूँ
दोस्त बन कर मिली है खामोशी .

bahut hi sundar . muqammal ghazal.
shukriya. mubaraqbaad.

Meenakshi Kandwal said...

"हो गया हूँ क़रीबतर ख़ुद से
जब से मुझको मिली है खामोशी"
मुझे ऐसा लगता है कि एक लेखक की लेखनी कामयाब तब होती है, जब पाठक उसकी सोच को अपनी ज़िदंगी से जुड़ा महसूस करता है। कुछ ऐसा ही मुझे इन पंक्तियों को पढ़कर लगा। ख़ामोश रहना सुक़ून देता है...और मुझे मेरे और करीब ले आता है।

vimi said...

....ho gayaa hun karibtar khud se
jab se mujhko mili hai khamoshi....

behad khoob kaha apne.

अमिताभ श्रीवास्तव said...

khamosi apne ap me bahut kuchh kah deti he , upar se aapne ise shabdo me utar kar bkhoobi se pryog kiya, achcha laga..ek behtar rachna padne ko mili,

hem pandey said...

हो गया हूँ क़रीबतर ख़ुद से
जब से मुझको मिली है खामोशी

बात दिल की पहुँच गई दिल तक
काम कुछ कर गई है खामोशी

राज़े - दिल अब इसी से कहता हूँ
दोस्त बन कर मिली है खामोशी '

-बहुत खूब.

Smart Indian said...

क्या बात है, आपने तो इस खामोशी को जुबां दे डाली!

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी said...

वाह!

Jimmy said...

bouth he aacha pos kiyaa


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www.discobhangra.com

Straight Bend said...

हो गया हूँ क़रीबतर ख़ुद से
जब से मुझको मिली है खामोशी

Straight Bend said...

Pehli tippani ke baad phir Ghazal per nazar daali. Dobara padhi. Ghazal achchi hai magar kuchh ajeeb si bhi baat lag rahi thi. Doosri baar padhi .. aapka sandes bhi padha Ghazal ke oopar .. "khamosh nahin rehna hai" :).

Sare ashaar achche lage .. achchi bhaavnaein hain. Magar le-de kar har Sh'er kuchh ek si hi baat keh raha hai.

Pata nahin jo mujhe laga kisi aur ko bhi laga ho ...
khair!

God bless
RC

amitabhpriyadarshi said...

Bandhu, jindgi to bas khamoshee aur
mukhar hone ka nam hai. ye na hon to hum na hon, aap na hon, hamari-apki baten na hon, phir ye kavitayen na hon, ye gazal na ho. tab phir kya bachega jindgee men.
Na bhai khamoshi achhi hai, udasee bhi.
bhoot achhi panktiyaan hain.

मैं तो लफ्जों की भीड़ में गुम हूँ
औ` मुझे ढूँढती है खामोशी

vijay kumar sappatti said...

aadarniya muflis ji

is baar bahut sundar rachana..

मैं तो लफ्जों की भीड़ में गुम हूँ
औ` मुझे ढूँढती है खामोशी

वक़्त पर काम आ गई आख़िर
dekh कितनी भली है खामोशी

kya baat hai ji , in lines mein to aapne kamaal kar diya hai .

mujhe meri poem yaad aa gayi ..

aapko aur aapki lekhni ko badhai..
yun hi likhe , aur hamesha likhe , apna waradhast mere upar rakhe..

aapka
vijay

अभिषेक मिश्र said...

मैं तो लफ्जों की भीड़ में गुम हूँ
औ` मुझे ढूँढती है खामोशी
बात दिल की पहुँच गई दिल तक
काम कुछ कर गई है खामोशी
खूब लिखा है आपने.

Prem Farukhabadi said...

MUFLIS saab,

हो गया हूँ क़रीबतर ख़ुद से
जब से मुझको मिली है खामोशी
Bahut achchha likha hai aapne. badhaai ho.

अवाम said...

बहुत ही सुंदर ग़ज़ल है आपकी.
शुभ बसंत पंचमी
टिप्पणी के लिए धन्यवाद
आगे भी इसी तरह के सहयोग का आकांक्षी.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

वाह जी वाह --
खुदा का करम,
यूँ ही बना रहे ...
- लावण्या

Unknown said...
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कंचन सिंह चौहान said...

गया हूँ क़रीबतर ख़ुद से
जब से मुझको मिली है खामोशी

बात दिल की पहुँच गई दिल तक
काम कुछ कर गई है खामोशी

राज़े - दिल अब इसी से कहता हूँ
दोस्त बन कर मिली है खामोशी

वाक़ई कभी इस ब्लॉग पर तरफ ध्यान नही गया पता नही क्यों ....??? लेकिन अब गया है तो ध्यान हट नही रहा है।

आपको व्यक्तिगत रूप से मेल करना चाह रही थी, अपने ब्लॉग की टिप्पणी के लिये...! इतनी पवित्र शुभकामनाएं पा कर मैं तो अभिभूत हूँ....!

विधुल्लता said...

mera dili pasandidaa geet ...gajal ki baat kal...badhai

विधुल्लता said...
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दर्पण साह said...

Hope this link will be of great help:
http://www.google.com/transliterate/indic#

Aapse baat karke accha laga. Bahut accha. Ravita banaiye rakhiega .Manu ji ka bhi dhanvyaad. Unki vajah se do accher logon se mil paya (ek unse ek apse...)

राजीव करूणानिधि said...

बधाई, सुंदर ग़ज़ल पढाने को. क्या आप कविता भी करते है दोस्त?

दर्पण साह said...
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दर्पण साह said...

aur jahan tak apke blog ka sawal hai...
jaisa ki maina aapse kaha tha ki maine aapka poora blog padha hai. maine ise phir se padha (kahin koi cheez, halki si hi sahi, choot to nahi gayi.) aur main pehle hi poora blog pi gaya tha, gat gat karke. aur apni purani kavitaoon mein aapko mere 'pud-chinh' mil jayange.
---------------allaha hafiz-----------

@ rajieev ji, kaash hum log blog ko poora padhne ki aadat dal lein.... :(

sandhyagupta said...

'Khamoshi' tod kar kehna hi pada - Bahut khub.

Rajnish said...

wah janab wah bahut khoob.
Har sher mazadaar tha.

ilesh said...

बहुत खूब...उम्दा पेशकश..सलाम...

अभिन्न said...

आदरणीय मुफलिस जी सबसे पहले ब्लॉग पर पधारने का शुक्रिया,मुझ से जो बन पड़ा उसे पढ़ कर सराहने के लिए आपका आभारी हूँ ,आपने मेरी रचनाओं को पढ़ा और हौसला बढाया ,मै आपका आभारी हूँ आपके बलोग पर आया तो अपने आप को एक अलग ही दुनिया में पाया आपकी कई रचनाये पढ़ डाली ,एक एक रचना पर कमेन्ट बाद में दूंगा.
प्रस्तुत ग़ज़ल बहुत ही ज्यादा पसंद आई खास कर ये शेर
मैं तो लफ्जों की भीड़ में गुम हूँ
औ` मुझे ढूँढती है खामोशी
मुफलिस साहेब
आपका तखल्लुस मुफलिस जरुर
है परन्तु जो खजाना आप दुनिया को बाँट रहे हो उससे आपका नाम बिल्कुल भी मेल नही खाता ,अब तो आना जाना लगा रहेगा ,लिखते रहें और खूब लिखते रहें

गौतम राजऋषि said...

मोबाईल पर गुंजती आपकी आवाज का जिक्र करने बस चला आया था इधर....और फिर कुछ पुराने पोस्ट भी पढ़ गया

Science Bloggers Association said...

हर नफ़स में छिपी है खामोशी
रूह तक जा बसी है खामोशी

ज़िन्दगी की तवील राहों में
हर क़दम पर बिछी है खामोशी

मैं तो लफ्जों की भीड़ में गुम हूँ
औ` मुझे ढूँढती है खामोशी

आरिफ़ाना कलाम होता है
जब कभी बोलती है खामोशी

बहुत ही प्यारे शेर कहे हैं, मुबारकबाद कुबूल फरमाएँ।

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" said...

वाह्! भाई मुफलिस जी, क्या खूब लिखा है.
हर शेर उम्दा.......लाजवाब........
बधाई स्वीकारें............
आशा करता हूं कि भविष्य में भी आपसे सम्पर्क बना रहेगा.

Poonam Misra said...

बहुत बढ़िया.मैं तय नहीं कर पा रही हूँ की कौन सा शेर सबसे ज़्यादा पसंद आया.सभी दिल को छू गए.

Unknown said...

सर जी,

मैं चुप हूं !

:)

- आदर व प्यार सहित

Dr.Bhawna Kunwar said...

बात दिल की पहुँच गई दिल तक
काम कुछ कर गई है खामोशी

Khamoshi par aapki ye gazal man ko bahut bhai bahut2 badhai...

Urmi said...

आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
बहुत खूब लिखा है आपने! लाजवाब!

Satish Bedaag said...

Bahut khoob muflis sahab,bahut khoob!
'Aarifana' hota ja raha hai kalaam.
Mubarakbad !
आरिफ़ाना कलाम होता है
जब कभी बोलती है खामोशी