नमस्कार !
आने में कुछ देर हो गई .....वजह जो भी रही हो, अब जो भी कहूँगा
वो एक बहाना ही लगेगा .......
सब से बड़ा दुश्मन ये कंप्यूटर जिसमे 'हिन्दी में काम'
इसी की मर्ज़ी से ही हो पाता है ।
खैर ! एक ग़ज़ल ले कर हाज़िर हूँ .......
आपकी टिप्पणियाँ हमेशा-हमेशा "प्रेरणा" और "प्रोत्साहन" देती रहेंगी ,
इस का विश्वास है मुझे । . . . . . . .
ग़ज़ल
नाम जब भी आ गया उसका ज़बां पर
फिर कहाँ क़ाबू रहा अश्के - रवां पर
आज भी उस मोड़ पर तनहा खडा हूँ
साथ छोड़ा था मेरा तूने जहाँ पर
वक़्त ने मुझ से सवाल ऐसे किए हैं
एक ख़ामोशी लरज़ती है ज़बां पर
माँगना सब के लिए दिल से दुआएं
कौन जाने , कौन मिल जाए कहाँ पर
दर-हकीक़त दर्द से रिश्ता निभाया
कर लिया दिल ने यकीं जब भी गुमां पर
बर्क़ ! तू लहरा ! ज़रा तो रौशनी दे
क्यूँ नज़र रहती तेरी है आशियाँ पर
कामयाबी अब उसे मिल कर रहेगी
वो नज़र रक्खे हुए है आसमाँ पर
बागबाँ करते हैं ख़ुद कलियों का सौदा
वक़्त कैसा आ पड़ा है गुलसितां पर
मैकशी भी अब दगा देने लगी है
ये सितम इक और जाने-नातवाँ पर
बे-अदब , बे-रब्त , कोई सरफिरा है
तब्सिरा उनका है मेरी दास्ताँ पर
आज फिर इक शख्स सूली पर चढ़ेगा
हैं ख़फ़ा कुछ लोग 'दानिश' के बयाँ पर
-----------------------------------------------
अश्के-रवां= बहते आंसू
बर्क़= आसमानी बिजली
मैकशी=sharaab pina
dagaa=dhokha
जाने-नातवाँ= कमज़ोरजान
बे-अदब=अशिष्ट
बे-रब्त=बे-तुका
तब्सिरा=टिप्पणी
दास्ताँ=कहानी
गुमां=शंका
___________________________________
35 comments:
बे-अदब , बे-रब्त , कोई सरफिरा है
तब्सिरा उनका है मेरी दास्ताँ पर
khub kaha hai aapne... dhero badhaaee...
arsh
कामयाबी अब उसे मिल कर रहेगी
वो नज़र रक्खे हुए है आसमाँ पर
बागबाँ करते हैं ख़ुद कलियों का सौदा
वक़्त कैसा आ पड़ा है गुलसितां पर
behtreen.....
badhai......
आज भी उस मोड़ पर तनहा खडा हूँ
साथ छोड़ा था मेरा तूने जहाँ पर .....accha...?? oye hoye .....!
tadey mai keha Muflish ji tanha tanha kyon rehde ne...?????
"आज भी उस मोड़ पर तनहा खडा हूँ
साथ छोड़ा था मेरा तूने जहाँ पर"
मन की गहराइयों तक उतर जाने वाली गज़ल.. खूबसूरत गज़ल हम तक लाने के लिए शुक्रिया!!
आज भी उस मोड़ पर तनहा खडा हूँ
साथ छोड़ा था मेरा तूने जहाँ पर
मुफलिस जी,
मैनू ते नहीं कह रहे,,,,,ओ जी तुस्सी वापस घर तो पहुँच गए हो न जी,
या दिल्ली के बस अड्डे से ही पोस्ट कर दी है,,,,,
बे-अदब , बे-रब्त , कोई सरफिरा है
तब्सिरा उनका है मेरी दास्ताँ पर
लाजवाब शेर ,
इतना लाजवाब के मुझे अआपकी पिछली ग़ज़ल के सभी पचास कमेंट दोबारा पढने को मजबूर कर दिया,,,,,
बेमिसाल,,,,
बे-रब्त सरफिरा है तो फिर जाने दिजीये ,
दीजै ना कुछ ध्यान, किसी badjaban पर
Bahut khub...eak se badhakar eak...bahut sari badhai...
mana der hui aane mein,par kafi durust aaye hain ...
har chhand bejod hai
I liked these ashaar a lot. Congrats, very umda composition!
वक़्त ने मुझ से सवाल ऐसे किए हैं
एक ख़ामोशी लरज़ती है ज़बां पर
माँगना सब के लिए दिल से दुआएं
कौन जाने , कौन मिल जाए कहाँ पर
दर-हकीक़त दर्द से रिश्ता निभाया
कर लिया दिल ने यकीं जब भी गुमां पर
बर्क़ ! तू लहरा ! ज़रा तो रौशनी दे
क्यूँ नज़र रहती तेरी है आशियाँ पर
मैकशी भी अब दगा देने लगी है
ये सितम इक और जाने-नातवाँ पर
बे-अदब , बे-रब्त , कोई सरफिरा है
तब्सिरा उनका है मेरी दास्ताँ पर
RC
jai ho ustaad ji ki
आज भी उस मोड़ पर तनहा खडा हूँ
साथ छोड़ा था मेरा तूने जहाँ पर
iske baad bhi kuch kahna baaki hai kya sir ji
der saari badhai aapko itni achi gazal ke liye
कामयाबी अब उसे मिल कर रहेगी
वो नज़र रक्खे हुए है आसमाँ पर
कामयाबी के रूप में कहीं जमीं पर पड़े पत्थर की ठोकर तो नहीं. अरे भाई मंजिल आसमां की ठीक है पर नज़रें तो चारों ओर रहनी चाहिए.
बागबाँ करते हैं ख़ुद कलियों का सौदा
वक़्त कैसा आ पड़ा है गुलसितां पर
अरे भाई कलियों का ही नहीं फूलों तक को भी नहीं छोड़ते अब तो.
कुल मिला कर ग़ज़ल शानदार है
चन्द्र मोहन गुप्त
अब हम जैसे नाचीज़ किस मुँह से दाद दें मुफ़लिस जी इस बेमिसाल गज़ल पर....बिजलियों को चेतावनी देने वाला ये शायर "बर्क़ ! तू लहरा ! ज़रा तो रौशनी दे / क्यूँ नज़र रहती तेरी है आशियाँ पर" मेरे एक-दो अदने से शेरों की तारीफ़ कर देता है तो मैं सातवें आसमान पर क्यूँ न घूमूँ भला?
और इस मक्ते पर तो "आज फिर इक शख्स सूली पर चढ़ेगा/हैं ख़फ़ा कुछ लोग 'मुफलिस' के बयाँ पर" चचा ग़ालिब भी कबर में वाह-वाह कर रहे हैं।
अभी हाल-फिलहाल ही में पढ़ा आपका एक और शेर याद आया "न रस्मो-राह आपस में न पहली सी मुहब्बत है/नई तहज़ीब पर मुफ़लिस करे अब तब्सिरा कैसा"
हमारी खुशनसीबी है सर कि आपका वरद-हस्त हम पर बना हुआ है...
wah wah.....
chaliyea ek ek karke shuru kiya jaiye....
नाम जब भी आ गया उसका ज़बां पर
फिर कहाँ क़ाबू रहा अश्के - रवां पर
aur ye dekhiyea:
आज भी उस मोड़ पर तनहा खडा हूँ
साथ छोड़ा था मेरा तूने जहाँ पर
(jahan se tum mod mud gaye the wo mod ab bhi wahin pade hain...)
वक़्त ने मुझ से सवाल ऐसे किए हैं
एक ख़ामोशी लरज़ती है ज़बां पर
muflis sir wqut apne aap mein kainchi ki zaban hain...
ya yun kahein kainchi bhi hai aur zaban bhi, apki zaban to kaat deta hai aur apna bloe jata hai.....
...waise apke ek guru ki bhi yaad ho aaie wo bhi to wqut ki tarah hai (aap samaj gaye honge...)
:)
माँगना सब के लिए दिल से दुआएं
कौन जाने , कौन मिल जाए कहाँ पर
haan ispe to tax bhi nahi hai....
:)
कामयाबी अब उसे मिल कर रहेगी
वो नज़र रक्खे हुए है आसमाँ पर
(sar se zayada unchi ho ye nazar aasman bhi to sar ko jhukaiye)
मैकशी भी अब दगा देने लगी है
ये सितम इक और जाने-नातवाँ पर
( brand change karke dekhein , kya pata kuch fayada ho :) )
आज फिर इक शख्स सूली पर चढ़ेगा
हैं ख़फ़ा कुछ लोग 'मुफलिस' के बयाँ पर
(ghazal ki sabse acchi line)
mein to ashriyachakit hoon hamesha ki tarah.....
...na jane kya baat hai ki ap kog itna accha kaise likh lete hai....
..agar koi ghutti ya ark ho to humein bhi bataiyen...
..."rooh afza nazm" !!!!! wakai!!
apki blogs main comments karne ka isliyea man nahi karta kyunki shabd kosh 'anant' nahi hai....
lekin apki ghazal ke dimention....
...aayam.....
anant !! paralokik !!!
बाप रे बाप....आप तो जैसे नाम के ही मुफलिस हो.....बाकी जो-जो आप लिखते रहते हो.....वो तो किसी सेठ का अहसास ही कराता है....उपरवाला आप पर शब्दों की ऐसी ही बरसा बरसाता रहे.....और आप जैसे जहीन लोगों से हम भी कुछ कुच्छ हमेशा सीखते ही रहें,.....!!
आज फिर इक शख्स सूली पर चढ़ेगा
हैं ख़फ़ा कुछ लोग 'मुफलिस' के बयाँ पर
बहुत खूब मुफलिस भाई
क्या लिखते हैं आप.......हर शेर अलग अलग andaaj का, लाजवाब है
आपने कहा "देर लगी आने मैं......पर मैं kahunga "shukr है आप आये तो"
varna इतनी खूबसूरत गज़ल kahan से padhte
भई मुफलिस जी, हरकीरत जी की टिप्पणी को ही हमारी टिप्पणी समझा जाए.......
'कामयाबी अब उसे मिल कर रहेगी
वो नज़र रक्खे हुए है आसमाँ पर'
- सकारात्मक सोच.
'बेअदब, बेरब्त…'
बहुत ख़ूब!
बधाई।
आज भी उस मोड़ पर तनहा खडा हूँ
साथ छोड़ा था मेरा तूने जहाँ पर
bahut khoob
बर्क़ ! तू लहरा ! ज़रा तो रौशनी दे
क्यूँ नज़र रहती तेरी है आशियाँ पर
हुजूर की महफिल में देर से आने की मुआफी चाहता हूँ...आपने जब ग़ज़ल पोस्ट की तब तक होली का रंग जो चढा हुआ था आँखों पर इसलिए नज़र ही नहीं आयी...उम्मीद है आप मेरी इस गुस्ताखी को नज़र अंदाज़ कर देंगे...दरअसल नुक्सान मुझे ही हुआ जो इतनी खूबसूरत ग़ज़ल से इतने दिनों तक दूर रहा..हर शेर तालियाँ बजाने को मजबूर करता है...और जो ऊपर मैंने लिखा है वो तो जनाब मुद्दत तक साथ रहेगा...बहुत बहुत बधाई आपको इस नायाब ग़ज़ल के पेश करने पर...
नीरज
very nice .... need to learn from u ... thanks for your comments...
wakt ne ....zabaaan par!
zidagi to hai hi aisi -
beautiful expression of such a delicate emotion
बे-अदब , बे-रब्त , कोई सरफिरा है
तब्सिरा उनका है मेरी दास्ताँ पर
जी सही फरमाया आपने .
सोच समझ कर तब्सिरा कर रहे हैँ .
मैने भी कहीँ सुना था:--
वाकिफ हैँ उनसे और एक उनकी ज़फा से हम
फिर भी खुदा से मांग रहे हैँ उन्ही को हम
kamyabee ab use milkar rahegee......
vo nazar rakhe huye hai aasman par.
kya kah gaye hain aap.....
log to shayad aasmanon me soonapan hee pate hain .
aapkee tarz-e-bayan ka kaayal hoon.-raj
काफी दिनों के बाद ये गजल पढ़ने को मिला । गजल का हर मतला बढ़िया है शुरूआत काफी अच्छी लगी धन्यवाद
बागबाँ करते हैं ख़ुद कलियों का सौदा
वक़्त कैसा आ पड़ा है गुलसितां पर
bahut khub....badhaaee
नाम जब भी आ गया उसका ज़बां पर
फिर कहाँ क़ाबू रहा अश्के - रवां पर
bahut khub....umda hai
आज फिर इक शख्स सूली पर चढ़ेगा..., खूब, बधाई स्वीकारें ।
hi......ur blog is full of good stuffs.it is a pleasure to go through ur blog...
by the way, which typing tool are u using for typing in Hindi...? recently i was searching for the user friendly Indian language typing tool and found ... " quillpad " do u use the same...?
heard that it is much more superior than the Google's indic transliteration...!?
expressing our views in our own mother tongue is a great feeling...save, protect,popularize and communicate in our own mother tongue...
try this, www.quillpad.in
Jai..HO....
blog par pahali baar aaya hoo... bahut achcha laga ... post achchi hai
मुफलिस जी आपकी ग़ज़लें उफ्फ्फ्फ्फ क्या कहर ढाती हैं। आपके ख़्याल इस तरह सज-धज कर आते हैं, उफ्फ्फ्फ्फ्फ, मेरे ख़्याल ऐसे क्यों नहीं है ईर्ष्या हो रही है।
ek se badhkar ek lajawaab sher, sabhi tareef ke kabil. bahut mubaarak.
wonderful....umda gazal
app ka matla accha laga
सच कहा आपने..... कैसी कैसी बंदिशों में पल रहा है आदमीजल रहा है , क्यूं निरंतर जल रहा है आदमी
awesome composition...
Post a Comment