इस बार स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर कुछ बहुत ही
अच्छी और स्तरीय रचनाएं / ग़ज़लें पढने को मिलीं ...
आपने सीमित ज्ञान और व्यस्तताओं के कारण
मैं समय रहते आपसे कुछ सांझा ना कर पाया...
eक कविता जो कभी पहले लिखी थी और कल यहाँ
"बाल-भवन" में संपन्न हुए स्वतंत्रता-दिवस समारोह में
वहाँ रह रहे अनाथ बच्चों दुआरा समूह-गीत की तरह गाई गयी
उसी को आप भी दोहरा लीजिये .......
पुण्य धरा की आरती
अपनी पुण्य धरा पर, हैं बलिहारी हम सब भारती
मन आशा के दीप जला कर , नित्य उतारें आरती
हिम-आलय का ताज अनूठा, माथे का सम्मान है
बहते जल की धाराओं की भी, अपनी इक शान है
खेतों की माटी की ख़ुशबू , जीवन की पहचान है
इन सब की सुन्दरता, देखो, सब के मन को तारती
मन आशा के दीप जला कर नित्य उतारें आरती....
वन-जंगल , हरियाली , रक्षा करते हैं परिवेश की
मौसम की करवट से, आभा निखरे इसके वेश की
कुदरत के अनगिनत अनुपम स्रोत, धरोहर देश की
जलवायु की शीतलता , धरती का रूप सँवारती
मन आशा के दीप जला कर नित्य उतारें आरती ....
अपनी धरती माँ से हम को, तन-मन-धन से प्यार हो
सारे जग की शान बनें हम , ये सपना साकार हो
इसकी गोदी में ही जीना-मरना , सब स्वीकार हो
माँ भी अपने सब बच्चों को पल-पल देख, दुलारती
मन आशा के दीप जला कर नित्य उतारें आरती
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30 comments:
बहुत बढ़िया ।
स्वतंत्रता दिवस की ६३ वीं varshganth की हार्दिक शुभकामनायें ।
अपनी धरती माँ से हम को, तन-मन-धन से प्यार हो
सारे जग की शान बनें हम , ये सपना साकार हो
इसकी गोदी में ही जीना-मरना , सब स्वीकार हो
माँ भी अपने सब बच्चों को पल-पल देख, दुलारती
मन आशा के दीप जला कर नित्य उतारें आरती
एक सशक्त ,समृद्ध ,संपूर्ण और संतुलित रचना
सच धरती मां से सब कुछ मिलता है हमें लेकिन मनुष्य से बड़ा कृतघ्न कोई जीव नहीं होता जब्कि मां का इतना प्यार पाने के पश्चात होना वो चाहिए जो इन पंक्तियों से विदित है
सुंदर रचना के लिये बधाई
देशभक्ति से परिपूर्ण रचना प्रस्तुत करने के लिए आभार....
कुछ अपनी रचना भी पोस्ट कीजिए ना...
देश भक्ति से ओत-प्रोत सुन्दर गीत. शुभकामनाएं.
Jai Ho Muflis ji....ghazal padhne aayi thee..:))
मुफ़लिस जी
कुछ अपनी रचना भी पोस्ट कीजिए ना...
पंक्ति में....
कुछ अपनी...
नई रचना भी पोस्ट कीजिए ना...
लिखा था
पता नहीं ये ’नई’ शब्द कैसे छूट गया?
aap jo padhvayen usmen aanand aayega hi. achchhee rachana. unbachchon ko dher sara pyar jinhonne kal ise gaya.
bahut sundar!
देश प्रेम के रंग मे सराबोर सुन्दर रचना। असल मे आज कल ऐसी रचनायें बहुत कम पढने को मिलती हैं।। निशब्द हूँ। आपको भी स्वतन्त्रता दिवस की शुभकामनायें।
behad sundar rachana.
अपनी धरती माँ से हम को, तन-मन-धन से प्यार हो
सारे जग की शान बनें हम , ये सपना साकार हो
इसकी गोदी में ही जीना-मरना , सब स्वीकार हो
माँ भी अपने सब बच्चों को पल-पल देख, दुलारती
मन आशा के दीप जला कर नित्य उतारें आरती
माँ के प्रेम में डूबा रचा सुंदर प्यारा गीत ....
गज़लें सारी की सारी संकलन के लिए छुपा रखी हैं .....?
स्वाधीनता दिवस की शुभकामनाओं के साथ इस रचना लिए आपको बधाई.
रचना की तारीफ़ मेरे बस की नहीं क्योंकि एक मुस्तनद शायर की तारीफ़ के लिए अल्फाज़ का इन्तिखाब भी बहुत मुश्किल काम होता है.
इस रचना में जितनी कामनाएँ आपने कीं, हम सब की यही कामना है. लेकिन आज पेड़ काटे जा रहे हैं, वन खत्म हो चुके हैं, प्रेम से-बीते जमाने की चीज़ हो चुका है.
फिर भी यह रचना एक आशा तो जगाती है. आज़ादी की सालगिरह के दिन हम यह कामना तो कर ही सकते हैं.
हिम-आलय का ताज अनूठा, माथे का सम्मान है
बहते जल की धाराओं की भी, अपनी इक शान है
खेतों की माटी की ख़ुशबू , जीवन की पहचान है
waah kitna sunder bimab..
अपनी धरती माँ से हम को, तन-मन-धन से प्यार हो
सारे जग की शान बनें हम , ये सपना साकार हो
इसकी गोदी में ही जीना-मरना , सब स्वीकार हो..
बहुत सुन्दर पंक्तियाँ! देशभक्ति पर आपने बहुत ही ख़ूबसूरत और भावपूर्ण रचना प्रस्तुत किया है! दिल को छू गयी आपकी ये शानदार रचना!
अपनी धरती माँ से हम को, तन-मन-धन से प्यार हो
सारे जग की शान बनें हम , ये सपना साकार हो ..
आपने अपनी कलाम के अनुरूप ही सार्थक रचना लिखी है ... ये भारत भूमि महान बने ऐसी सबकी कामना हो और सब इसके लिए काम करें ... जननी जनम भूमि स्वर्ग से महान है ....
पढ़ा तो ऐसा प्रतीत हुआ जैसे बच्चा हूँ बचपन की हिंदी पाठ्य पुष्तक से हिंदी कविता पढ़ रहा हूँ और उसी तरह झूम रहा था जैसे बचपन में बच्चे कविता पथ करते झूमते हैं ... हलाकि आपकी छंद मुक्त कविताओं का पुराना प्रशंसक रहा हूँ मगर इस कविता ने जिस मुकाम पर पहुँचाया अनुभुतीओं को शब्द नहीं कि कह पाऊं .......
आपका
अर्श
अपनी धरती माँ से हम को, तन-मन-धन से प्यार हो
सारे जग की शान बनें हम , ये सपना साकार हो
इसकी गोदी में ही जीना-मरना , सब स्वीकार हो
- यह अभिलाषा पूरी हो, यही आशा की जा सकती है.
देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ देश भक्ति से ओत प्रोत गहरे भाव और व्यथा सहेजे हुए ये प्रस्तुति भावुक कर गई
अर्श कि तरह पढ़ते पढ़ते कंधे आगे पीछे झूलने लगे हैं...
वैसे ही जैसे बचपन में स्कूली किताब में से कोई कविता पाठ करते हुए झूलते थे...
आओ बच्चो तुम्हें दिखायें की बह्र पर पढ़ा तो और भी आनंद आया...
वन-जंगल , हरियाली , रक्षा करते हैं परिवेश की
मौसम की करवट से, आभा निखरे इसके वेश की
कुदरत के अनगिनत अनुपम स्रोत, धरोहर देश की
जलवायु की शीतलता , धरती का रूप सँवारती
मन आशा के दीप जला कर नित्य उतारें आरती ....
सर्वत जी ने सही कहा... कि वन काफी कुछ कट चुका है....
मगर काफी कुछ बचा भी हुआ है.....
और हाँ...
कुछ अपनी रचना भी पोस्ट कीजिए ना...
@ शाहिद साहिब...अगर आप अगला कमेन्ट ना करते तो हम तो सोचते ही रह जाते...
:)
खूबसूरत रचना....क्या खूबसूरती से मादरे वतन का वर्णन किया है दोस्त
रक्षाबंधन पर हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
WAAH WAAH WAAH
DESHBHAKTI SE OATPRET YE GAZAL AAPKI SHAANDAR GAZALKAARI KA BEHATREEN NAMUMNA HAI ..BADHAI BADHAI
VIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
इस रचना लिए आपको बधाई......
स्वतंत्रता दिवस की बधाई.......देर से .....
सारे जग की शान बनें हम , ये सपना साकार हो
इसकी गोदी में ही जीना-मरना , सब स्वीकार हो
सुंदर पंक्तियाँ!
वन-जंगल , हरियाली , रक्षा करते हैं परिवेश की
मौसम की करवट से, आभा निखरे इसके वेश की
कुदरत के अनगिनत अनुपम स्रोत, धरोहर देश की
जलवायु की शीतलता , धरती का रूप सँवारती
मन आशा के दीप जला कर नित्य उतारें आरती ...
bahut hi shaandaar ,badhai ,jai hind ,mera bharat mahan .
bahut sundar rachna..
भावभीना गीत, बधाई.
सच में पूज्य है माँ.
इतनी कि आरती उतारी जा सके...
आपके लेखन के भावों में खो सी जाती हूँ.
और फिर स्वतंत्रता दिवस के दिन ही देशभक्ति क्यूँ?
ये तो मुसलसल ज़ज्बा है.
(देर से आने का अच्छा एक्सक्यूज़ है) :)
huzooooor....
आपको जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें.....!!
bahut sunder rachna.....
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