नमस्कार
इस बार फिर वक़्त के इस बड़े फासले को मैं मिटा नहीं पाया
पता नहीं कैसे, दूरियों और मजबूरियों में इक अजब-सा रिश्ता पनप उठता है
इस बीच आप सब मित्रों को पढ़ते रहना तो होता ही रहा
लीजिये... एक ग़ज़ल आपकी खिदमत में हाज़िर करता हूँ
ग़ज़ल
ख़ुशी में , ख़ुशी से गुज़र हो गई
नहीं ग़म , अगर आँख तर हो गई
किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई
उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई
ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'
बशर, दायरों में ही बँटता गया
नज़र , हर नज़र , कम-नज़र हो गई
बस इक आरज़ू थी , बस इक इंतज़ार
हयात इस क़दर मुख़्तसर हो गई
भुला दूँ उसे, जब ये मांगी दुआ
न फ़रियाद क्यूँ बे-असर हो गई
कभी कुछ दिलासे , कभी कुछ भरम
बस ऐसे ही 'दानिश' बसर हो गई
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आँख तर = भीगी हुई आँखें
हयात = ज़िंदगी
मुख़्तसर = संक्षिप्त , (यहाँ) सिमट चुकी
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50 comments:
bahut khoob ...
बस इक आरज़ू थी , बस इक इंतज़ार
हयात इस क़दर मुख़्तसर हो गई
बहुत खूब ! बेहतरीन ग़ज़ल
आदरणीय दानिश साहब
सादर सस्नेहाभिवादन !
नेट भ्रमण करते हुए कई बार आपके यहां नई ग़ज़ल की तलब में आ कर कई बार निराश लौटने के बाद आज अचानक आपके यहां पहुंच कर हार्दिक प्रसन्नता है …
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है भाईजी
मत्ला और हुस्ने-मत्ला ग़ज़ब हैं -
ख़ुशी में , ख़ुशी से गुज़र हो गई
नहीं ग़म , अगर आँख तर हो गई
किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई
किस किस शे'र की तारीफ़ न करूं … समस्या यह होती है आपके यहां हर बार …
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई
यही देखने को मिल रहा है सब जगह … ब्लॉगजगत भी इसकी गिरफ़्त में आ गया है …:)
बशर दायरों में ही बँटता गया
नज़र , हर नज़र , कम-नज़र हो गई
आह ! हक़ीक़त से भरे तमाम अश्'आर लाजवाब ! आज का दिन सार्थक अब हुआ … शुक्रिया !
* श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *
साथ ही…
*नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !*
नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!
चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाई शुभ संदेश !
संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बशर दायरों में ही बँटता गया
नज़र , हर नज़र , कम-नज़र हो गई
वाह , वाह !
ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'
बहुत खूब लिखा है मुफलिस जी ।
रामनवमी की बधाई ।
वाह बहुत सुंदर
ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'
बहुत खूब...
किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई
उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई
ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'
Kya gazab alfaaz hain! Nihayat khoobsoorat gazal!
किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई
उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई
ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'
Kya gazab alfaaz hain! Nihayat khoobsoorat gazal!
आप की ग़ज़लों की शुरुआत तम्हीद से ही हो जाती है
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई
वाक़ई यही हालात हैं ,शरीफ़ इन्सान बेवक़ूफ़ों की सफ़ में खड़ा नज़र आता है
भुला दूँ उसे, जब ये मांगी दुआ
न फ़रियाद क्यूँ बे-असर हो गई
एक उम्मीद के टूटने का एहसास बड़े ही बा असर तरीक़े से बयान किया गया है
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद क़ुबूल करें
उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई.......वाह दानिश भाई! छोटी बहर की बहुत खूबसूरत ग़ज़ल. एक पर एक शेर...बहुत खूब!
------देवेन्द्र गौतम
उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई.......वाह दानिश भाई! छोटी बहर की बहुत खूबसूरत ग़ज़ल. एक पर एक शेर...बहुत खूब!
------देवेन्द्र गौतम
दानिश जी ,
बहुत खूबसूरत गज़ल है ...हर शेर अलग रंग में ..
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई
इसी हुनर वालों का बोलबाला है ...बहुत खूब
एक अच्छी गजल पढवाने का शुक्रिया।
............
ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
लिंग से पत्थर उठाने का हठयोग।
किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई
बहुत खूबसूरत!
वाह !
सभी शेर एक से बढ़ कर एक.
हुस्ने-मत्ला बड़ी सादगी और खूबसूरती के साथ निकल कर आया है.
किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई
वाह.
बशर, दायरों में ही बँटता गया
नज़र , हर नज़र , कम-नज़र हो गई
वाह.. हर शेर बेशकीमती... उम्दा... खुबसूरत ग़ज़ल...
सादर...
man ke dhagoo mai shabdo ke motion ko bade saleeke se piroya hai aapne,payari si gazal.
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई ..
Awesome !
.
बशर, दायरों में ही बँटता गया
नज़र , हर नज़र , कम-नज़र हो गई
हर शेर गहरे भाव लिए है ....आपका आभार
बेहतरीन!
मेरी पसंद..
बस इक आरज़ू थी , बस इक इंतज़ार
हयात इस क़दर मुख़्तसर हो गई
दानिश जी,
देर से पहुंचा हूँ,पर दरुस्त पहुंचा.
बहुत खूब ग़ज़ल.
दो शेर की तो ख़ास तौर पर दाद दूंगा.
किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई
उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई
shandaar tatha jaandar prastuti !
Badhai sweekar karen !
Wah Wah!! Daanish Sahab,
बस इक आरज़ू थी , बस इक इंतज़ार
हयात इस क़दर मुख़्तसर हो गई
Khoobsoorat!!
उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई
बहुत खूब. शानदार ग़ज़ल. बधाई.
:)
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल साहिब...
कुछ शे'र तो ऐसे लगे जैसे हमारे लिए कहे गए हों...
बस इक आरज़ू थी , बस इक इंतज़ार
हयात इस क़दर मुख़्तसर हो गई
भुला दूँ उसे, जब ये मांगी दुआ
न फ़रियाद क्यूँ बे-असर हो गई
बहुत होशियारी से कहे गए शे'र...
भुला दूँ उसे, जब ये मांगी दुआ न फ़रियाद क्यूँ बे-असर हो गई ......
शायद होशियारी नहीं...मासूमियत कहा जाए..
किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई
वाह बहुत खूब
ख़ुशी में , ख़ुशी से गुज़र हो गई
नहीं ग़म , अगर आँख तर हो गई
दिल से निकले हुये भाव बहुत गहरे अर्थ लिये हुये।
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई
आज की हालत पर पुख्ता शेर \
वैसे पूरी गज़ल ही लाजवाब है किस किस शेर की तारीफ करूँ। बधाई और शुभकामनायें।
.
किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई ...
Beautiful expression.
.
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई
wah..wah...
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद|
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई ...
Kamaal ki gazal hai ye Daanish saahab .... har sher samaaj ko aaina dikha raha hai ... kurbaan hun aapke is beparwa andaaz par ...
आज आपकी टिप्पणी के जरिये पहली बार आपके ब्लॉग तक पहुची .. बहुत ही अच्छा लिखते है आप ...एक गज़ल पढ़ने के बाद लग रहा है कि पिछली सारी रचनाए अब पढना ही पड़ेगा ...आभार
sir, guru,gurudev, huzoor, etc etc
ham to aapki har gazal ke talabgaar hai , aur jitna aapse pyaar karte hai , utna hi aapki gazlo se pyaar karte hai ..
aage kya kahe , hamesha ki tarah har sher apni kahani khud kah raha hai ...
badhayi
मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html
खूबसूरत ग़ज़ल दानिश जी| आप के अशआर बहुत कुछ बयान करते हैं| बधाई हो|
वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही बढ़िया है मगर ये शेर तो दिल को छू गए.....
किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई
ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'
Very beautiful :)
आज सिर्फ पढ़े जा रही हूँ कमेन्ट देने कल आउंगी ......
बहुत ही खूबसूरत गज़ल हुई है .एक एक शेर अर्थपूर्ण.
achhi h....
उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई
बस अपनी ही तो खबर नहीं रहती .....:)
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई
लाजवाब .....!!
ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'
सहर पुल्लिंग नहीं ....?
या कोई ख़ास वजह .....?
बशर, दायरों में ही बँटता गया
नज़र , हर नज़र , कम-नज़र हो गई
वाह 'नज़र' का खूबसूरत प्रयोग .....
बस इक आरज़ू थी , बस इक इंतज़ार
हयात इस क़दर मुख़्तसर हो गई
दुआ है ये इन्तजार बना रहे .....
भुला दूँ उसे, जब ये मांगी दुआ
न फ़रियाद क्यूँ बे-असर हो गई
हा ...हा .रब्ब भी जानता का कौन सी अर्जी मानने लायक है ....
कभी कुछ दिलासे , कभी कुछ भरम
बस ऐसे ही 'दानिश' बसर हो गई
ये दिलासे और भ्रम अगर न रहे तोज़िन्दगी और कठिन न हो जाये ....
इन्हें बनाये रखना चाहिए ...क्यों ....?
मरते हुए मरीज़ को कि 'तुम ठीक हो जाओगे'..
उसकी तड़प को थोड़ा कम कर देता है ....
@ दूरियों और मजबूरियों में इक अजब-सा रिश्ता पनप उठता है...
फिर भी आप का आना और दूरियाँ मिटा जाना सुखद एहसास है ....
wah wah . kya kahne.. har ek line.. behtarin hai.
Vaakai! har-ek sher lajavab..
bahut achchi lagi apki kavita par ap apni identity kyon reveal nahi karate yeh bat kuch achchi nahi lagti
वैसे हर पंक्ति लाजवाब है !
किसी की नजर हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुजर हो गई !
बहुत सुंदर पंक्तियाँ है
वाकई अच्छी गजल !
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई
wah wah...bahut khoob Dannish.
बहुत खूब .... , शुभकामनायें आपको !
भाई दानिश जी सुंदर गज़ल आपने कही है बधाई और शुभकामनाएं |
"उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई "
खूबसूरत.....!
बस.....!!
भाई दानिश जी बेमिसाल और अद्भुत प्रस्तुति बधाई और शुभकामनाएं |
भुला दूँ उसे, जब ये मांगी दुआ
न फ़रियाद क्यूँ बे-असर हो गई!!!!!!!!!!!!!
"चाहता तो था ,मैं भी आना यहाँ ,
बस झिझक को मिटाने में देर हो गई"|
खुश रहिये दानिश जी ,
अशोक सलूजा .
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