Tuesday, April 12, 2011

नमस्कार
इस बार फिर वक़्त के इस बड़े फासले को मैं मिटा नहीं पाया
पता नहीं कैसे, दूरियों और मजबूरियों में इक अजब-सा रिश्ता पनप उठता है
इस बीच आप सब मित्रों को पढ़ते रहना तो होता ही रहा
लीजिये... एक ग़ज़ल आपकी खिदमत में हाज़िर करता हूँ


ग़ज़ल


ख़ुशी में , ख़ुशी से गुज़र हो गई
नहीं ग़म , अगर आँख तर हो गई

किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई

उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई

शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई

ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'

बशर, दायरों में ही बँटता गया
नज़र , हर नज़र , कम-नज़र हो गई

बस इक आरज़ू थी , बस इक इंतज़ार
हयात इस क़दर मुख़्तसर हो गई

भुला दूँ उसे, जब ये मांगी दुआ
न फ़रियाद क्यूँ बे-असर हो गई

कभी कुछ दिलासे , कभी कुछ भरम
बस ऐसे ही 'दानिश' बसर हो गई


-------------------------------------------------------
आँख तर = भीगी हुई आँखें
हयात = ज़िंदगी
मुख़्तसर = संक्षिप्त , (यहाँ) सिमट चुकी
-------------------------------------------------------

50 comments:

Shahid Ansari said...

bahut khoob ...

Manish Kumar said...

बस इक आरज़ू थी , बस इक इंतज़ार
हयात इस क़दर मुख़्तसर हो गई

बहुत खूब ! बेहतरीन ग़ज़ल

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय दानिश साहब
सादर सस्नेहाभिवादन !

नेट भ्रमण करते हुए कई बार आपके यहां नई ग़ज़ल की तलब में आ कर कई बार निराश लौटने के बाद आज अचानक आपके यहां पहुंच कर हार्दिक प्रसन्नता है …

बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल है भाईजी

मत्ला और हुस्ने-मत्ला ग़ज़ब हैं -
ख़ुशी में , ख़ुशी से गुज़र हो गई
नहीं ग़म , अगर आँख तर हो गई

किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई


किस किस शे'र की तारीफ़ न करूं … समस्या यह होती है आपके यहां हर बार …

शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई

यही देखने को मिल रहा है सब जगह … ब्लॉगजगत भी इसकी गिरफ़्त में आ गया है …:)

बशर दायरों में ही बँटता गया
नज़र , हर नज़र , कम-नज़र हो गई

आह ! हक़ीक़त से भरे तमाम अश्'आर लाजवाब ! आज का दिन सार्थक अब हुआ … शुक्रिया !

* श्रीरामनवमी की शुभकामनाएं ! *


साथ ही…

*नव संवत्सर की हार्दिक बधाई और मंगलकामनाएं !*

नव संवत् का रवि नवल, दे स्नेहिल संस्पर्श !
पल प्रतिपल हो हर्षमय, पथ पथ पर उत्कर्ष !!

चैत्र शुक्ल शुभ प्रतिपदा, लाई शुभ संदेश !
संवत् मंगलमय ! रहे नित नव सुख उन्मेष !!


- राजेन्द्र स्वर्णकार

डॉ टी एस दराल said...

बशर दायरों में ही बँटता गया
नज़र , हर नज़र , कम-नज़र हो गई

वाह , वाह !

ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'

बहुत खूब लिखा है मुफलिस जी ।
रामनवमी की बधाई ।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून said...

वाह बहुत सुंदर

मीनाक्षी said...

ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'
बहुत खूब...

kshama said...

किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई

उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई

शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई

ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'
Kya gazab alfaaz hain! Nihayat khoobsoorat gazal!

kshama said...

किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई

उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई

शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई

ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'
Kya gazab alfaaz hain! Nihayat khoobsoorat gazal!

इस्मत ज़ैदी said...

आप की ग़ज़लों की शुरुआत तम्हीद से ही हो जाती है
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई

वाक़ई यही हालात हैं ,शरीफ़ इन्सान बेवक़ूफ़ों की सफ़ में खड़ा नज़र आता है

भुला दूँ उसे, जब ये मांगी दुआ
न फ़रियाद क्यूँ बे-असर हो गई

एक उम्मीद के टूटने का एहसास बड़े ही बा असर तरीक़े से बयान किया गया है

ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद क़ुबूल करें

devendra gautam said...

उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई

शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई.......वाह दानिश भाई! छोटी बहर की बहुत खूबसूरत ग़ज़ल. एक पर एक शेर...बहुत खूब!
------देवेन्द्र गौतम

devendra gautam said...

उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई

शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई.......वाह दानिश भाई! छोटी बहर की बहुत खूबसूरत ग़ज़ल. एक पर एक शेर...बहुत खूब!
------देवेन्द्र गौतम

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

दानिश जी ,

बहुत खूबसूरत गज़ल है ...हर शेर अलग रंग में ..


शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई

इसी हुनर वालों का बोलबाला है ...बहुत खूब

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

एक अच्‍छी गजल पढवाने का शुक्रिया।

............
ब्‍लॉगिंग को प्रोत्‍साहन चाहिए?
लिंग से पत्‍थर उठाने का हठयोग।

Smart Indian said...

किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई
बहुत खूबसूरत!

उम्मतें said...

वाह !

Kunwar Kusumesh said...

सभी शेर एक से बढ़ कर एक.
हुस्ने-मत्ला बड़ी सादगी और खूबसूरती के साथ निकल कर आया है.

किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई

वाह.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

बशर, दायरों में ही बँटता गया
नज़र , हर नज़र , कम-नज़र हो गई

वाह.. हर शेर बेशकीमती... उम्दा... खुबसूरत ग़ज़ल...
सादर...

Vaishnavi said...

man ke dhagoo mai shabdo ke motion ko bade saleeke se piroya hai aapne,payari si gazal.

ZEAL said...

शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई ..

Awesome !

.

केवल राम said...

बशर, दायरों में ही बँटता गया
नज़र , हर नज़र , कम-नज़र हो गई

हर शेर गहरे भाव लिए है ....आपका आभार

Parasmani said...

बेहतरीन!
मेरी पसंद..
बस इक आरज़ू थी , बस इक इंतज़ार
हयात इस क़दर मुख़्तसर हो गई

विशाल said...

दानिश जी,
देर से पहुंचा हूँ,पर दरुस्त पहुंचा.
बहुत खूब ग़ज़ल.
दो शेर की तो ख़ास तौर पर दाद दूंगा.

किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई

उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई

aarkay said...

shandaar tatha jaandar prastuti !
Badhai sweekar karen !

Vishal said...

Wah Wah!! Daanish Sahab,
बस इक आरज़ू थी , बस इक इंतज़ार
हयात इस क़दर मुख़्तसर हो गई
Khoobsoorat!!

वन्दना अवस्थी दुबे said...

उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई
बहुत खूब. शानदार ग़ज़ल. बधाई.

manu said...

:)

बहुत खूबसूरत ग़ज़ल साहिब...

कुछ शे'र तो ऐसे लगे जैसे हमारे लिए कहे गए हों...

बस इक आरज़ू थी , बस इक इंतज़ार
हयात इस क़दर मुख़्तसर हो गई

भुला दूँ उसे, जब ये मांगी दुआ
न फ़रियाद क्यूँ बे-असर हो गई

बहुत होशियारी से कहे गए शे'र...


भुला दूँ उसे, जब ये मांगी दुआ न फ़रियाद क्यूँ बे-असर हो गई ......
शायद होशियारी नहीं...मासूमियत कहा जाए..

निर्मला कपिला said...

किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई
वाह बहुत खूब
ख़ुशी में , ख़ुशी से गुज़र हो गई
नहीं ग़म , अगर आँख तर हो गई
दिल से निकले हुये भाव बहुत गहरे अर्थ लिये हुये।

शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई
आज की हालत पर पुख्ता शेर \
वैसे पूरी गज़ल ही लाजवाब है किस किस शेर की तारीफ करूँ। बधाई और शुभकामनायें।

ZEAL said...

.

किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई ...

Beautiful expression.

.

Vaanbhatt said...

शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई

wah..wah...

Patali-The-Village said...

ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद|

दिगम्बर नासवा said...

शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई ...

Kamaal ki gazal hai ye Daanish saahab .... har sher samaaj ko aaina dikha raha hai ... kurbaan hun aapke is beparwa andaaz par ...

स्वाति said...

आज आपकी टिप्पणी के जरिये पहली बार आपके ब्लॉग तक पहुची .. बहुत ही अच्छा लिखते है आप ...एक गज़ल पढ़ने के बाद लग रहा है कि पिछली सारी रचनाए अब पढना ही पड़ेगा ...आभार

vijay kumar sappatti said...

sir, guru,gurudev, huzoor, etc etc

ham to aapki har gazal ke talabgaar hai , aur jitna aapse pyaar karte hai , utna hi aapki gazlo se pyaar karte hai ..

aage kya kahe , hamesha ki tarah har sher apni kahani khud kah raha hai ...

badhayi

मेरी नयी कविता " परायो के घर " पर आप का स्वागत है .
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/04/blog-post_24.html

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

खूबसूरत ग़ज़ल दानिश जी| आप के अशआर बहुत कुछ बयान करते हैं| बधाई हो|

Pawan Kumar said...

वैसे तो पूरी ग़ज़ल ही बढ़िया है मगर ये शेर तो दिल को छू गए.....

किसी की नज़र हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुज़र हो गई
शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई


ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'

monali said...

Very beautiful :)

हरकीरत ' हीर' said...

आज सिर्फ पढ़े जा रही हूँ कमेन्ट देने कल आउंगी ......

shikha varshney said...

बहुत ही खूबसूरत गज़ल हुई है .एक एक शेर अर्थपूर्ण.

VIVEK VK JAIN said...

achhi h....

हरकीरत ' हीर' said...

उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई

बस अपनी ही तो खबर नहीं रहती .....:)

शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई

लाजवाब .....!!
ग़म ए यार मेहमाँ हुआ रात-भर
'ज़रा आँख झपकी, सहर हो गई'
सहर पुल्लिंग नहीं ....?
या कोई ख़ास वजह .....?
बशर, दायरों में ही बँटता गया
नज़र , हर नज़र , कम-नज़र हो गई

वाह 'नज़र' का खूबसूरत प्रयोग .....
बस इक आरज़ू थी , बस इक इंतज़ार
हयात इस क़दर मुख़्तसर हो गई

दुआ है ये इन्तजार बना रहे .....
भुला दूँ उसे, जब ये मांगी दुआ
न फ़रियाद क्यूँ बे-असर हो गई

हा ...हा .रब्ब भी जानता का कौन सी अर्जी मानने लायक है ....
कभी कुछ दिलासे , कभी कुछ भरम
बस ऐसे ही 'दानिश' बसर हो गई

ये दिलासे और भ्रम अगर न रहे तोज़िन्दगी और कठिन न हो जाये ....
इन्हें बनाये रखना चाहिए ...क्यों ....?
मरते हुए मरीज़ को कि 'तुम ठीक हो जाओगे'..
उसकी तड़प को थोड़ा कम कर देता है ....


@ दूरियों और मजबूरियों में इक अजब-सा रिश्ता पनप उठता है...
फिर भी आप का आना और दूरियाँ मिटा जाना सुखद एहसास है ....

SAHITYIKA said...

wah wah . kya kahne.. har ek line.. behtarin hai.

Amrita Tanmay said...

Vaakai! har-ek sher lajavab..

Prof.kamala Astro-Fengshui Vastu and Metaphysics said...

bahut achchi lagi apki kavita par ap apni identity kyon reveal nahi karate yeh bat kuch achchi nahi lagti

Suman said...

वैसे हर पंक्ति लाजवाब है !
किसी की नजर हमसफ़र हो गई
बड़ी खुशनुमा रहगुजर हो गई !
बहुत सुंदर पंक्तियाँ है
वाकई अच्छी गजल !

Vijuy Ronjan said...

शराफ़त तो है इक कमी आजकल
मगर जालसाज़ी, हुनर हो गई
wah wah...bahut khoob Dannish.

Satish Saxena said...

बहुत खूब .... , शुभकामनायें आपको !

जयकृष्ण राय तुषार said...

भाई दानिश जी सुंदर गज़ल आपने कही है बधाई और शुभकामनाएं |

***Punam*** said...

"उसे ही मिले ज़िंदगी के निशाँ
ख़ुद अपनी जिसे कुछ ख़बर हो गई "


खूबसूरत.....!
बस.....!!

जयकृष्ण राय तुषार said...

भाई दानिश जी बेमिसाल और अद्भुत प्रस्तुति बधाई और शुभकामनाएं |

अशोक सलूजा said...

भुला दूँ उसे, जब ये मांगी दुआ
न फ़रियाद क्यूँ बे-असर हो गई!!!!!!!!!!!!!

"चाहता तो था ,मैं भी आना यहाँ ,
बस झिझक को मिटाने में देर हो गई"|

खुश रहिये दानिश जी ,
अशोक सलूजा .