Sunday, May 8, 2011

पहले से दिए गए निर्धारित वाक्य (तरही मिसरा)
"उसका पावन मन देखा है" के लिए बरेली के वरिष्ठ साहित्यकार
श्री शिवनाथ बिस्मिल जी द्वारा "नई लेखनी" के प्रवेशांक के लिए
गज़लें मंगवाई गईं थीं... उस अंक में कुछ ब्लोगर साथियों की भी
बहुत अच्छी गज़लें प्रकाशित हुई हैं
इसी सिलसिले में कही गयी ग़ज़ल के कुछ शेर
आपकी खिदमत में हाज़िर कर रहा हूँ.......



ग़ज़ल


हर पल है अड़चन , देखा है
ये जग इक बंधन देखा है

सुन्दर प्रेम-सपन देखा है
जीवन अभिनन्दन देखा है

अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है

इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है

दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है

मेहनत और लगन का ही तो
दुनिया में वंदन देखा है

आस-निराश भरे पथ पर ही
जीवन परिचालन देखा है

सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है

लागी नाहीं छूटे रामा
कर-कर लाख जतन देखा है

"दानिश" प्रेम-बिना जग सूना
है अनमोल कथन , देखा है


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52 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है

बहुत खूबसूरत गज़ल ...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है...
वाह वाह वाह
दानिश साहब, यूं तो हर शेर अपने आप में उम्दा है, लेकिन ये शेर तो कमाल का है जनाब.

kshama said...

अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
Man me bas gayeen ye panktiyaan!

इस्मत ज़ैदी said...

पहले तो "नई लेखनी" में ग़ज़ल प्रकाशित होने की मुबारकबाद क़ुबूल करें

अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
वाह ! इस फ़लसफ़ियाना शेर ने ग़ज़ल को एक अलग ही ख़ूबसूरती बख़्शी है

दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
हक़ीक़त से रू ब रू कराता शेर

सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ,तुझ-सा भी बन देखा है
बहुत ख़ूब !
ख़ूबसूरत ग़ज़ल !
हिंदी शब्दों का समावेश बहुत सुंदरता से किया गया है .

मनोज अबोध said...

भाई दानिश जी आपकी गजल बहुत अच्‍छी है, वरना बिस्मिल जी ने तो 90 प्रतिशत रचनाकारों की रचना का हिन्‍दीकरण के नाम पर बाजा बजा दिया । उन्‍हे उर्दू के एक भी शब्‍द से परहेज है । हां, आपने भी गिरह नहीं लगाई । लेकिन जो गजल आपकी नई लेखनी में छपी है, वो भी तो ब्‍लॉग पर डालते फिर अंतर दिखता ना....

vijay kumar sappatti said...

आस-निराश भरे पथ पर ही जीवन परिचालन देखा है
सीख न पाया तौर जफ़ा के हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है

बस सर जी , अब आके क्या कहे.. आपकी लेखनी में जीवन कि दर्शिनिकता समां चुकी है . सलाम आपको ..

मैंने भी कुछ लिखा है ..देखियेंगा .

विजय

Pawan Kumar said...

ग़ज़ल प्यारी बन पड़ी है......जीवन के चंद एहसासों को समेट कर छोटी बहर में बड़ी बड़ी बातें कह डाली आपने......! ये शेर बहुत की सटीक हैं....!
अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है

दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है

सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है

Urmi said...

बेहद सुन्दर, शानदार और उम्दा ग़ज़ल प्रस्तुत किया है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!

नीरज गोस्वामी said...

अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है

भाई जान...कमाल किया है आपने...छोटे छोटे लफ्ज़ और इतनी गहराई लिए हुए...वाह...इस निहायत खूबसूरत ग़ज़ल के लिए जितनी तारीफ़ करूँ कम ही लगेगी...हर शेर बहुत कारीगरी से तराशा गया है. आपका अंदाज़े बयां सबसे जुदा और दिलकश है.
नीरज

दिगम्बर नासवा said...

इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है ...
हिन्दी के आम शब्दों को लेकर लेखनी का जादू चलाया है आपने .... बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल है ...

डॉ टी एस दराल said...

अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
खुद को पहचान पायें तो जन्म सफल हो जाए ।

दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
सांसारिक सच है ये भी ।

छोटी बहर में उम्दा ग़ज़ल ।
देर से आए पर बढ़िया ग़ज़ल लाये ।

shikha varshney said...

अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
वाह क्या खूब कहा है.हर शेर उम्दा है.

Vaanbhatt said...

इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है

दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है

दानिश जी के छोटे तीर, दिल पर घाव करें गंभीर...

वन्दना अवस्थी दुबे said...

दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
बहुत सुन्दर.

girish pankaj said...

waah, achchhi pankti hai. sundar ghazal ban gai bhaai. maine bhi likh lee hai. apne blog me post karoongaa. ek-do din baad..dekhiyegaa. aapke har sher pyare hain.

निर्मला कपिला said...

अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है

दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है

सीख न पाया तौर जफा के
हाँ तुझ सा भी बन देखा है।
वाह बहुत खूब। हर शेर लाजवाब। बधाई खूबसूरत गज़ल के लिये

Vishal said...

अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
Bohot achha !!! Mubarakbaad...

Dr Varsha Singh said...

बस इतना ही कहना चाहूंगी किः-

वर्षा, बेहद उम्दा पाया
दानिश का लेखन देखा है

मीनाक्षी said...

प्रेम बिना जग सूना... सच में अनमोल कथन है.

www.navincchaturvedi.blogspot.com said...

तरही के मिसरे पर कही गई इस ग़ज़ल की क्या क्या खूबियाँ गिनाई जाएँ| खास कर 'परिचालन' वाला काफिया तो 'उफ़ युम्मा' टाइप है सर जी| जय हो|

छोटी बहर, तरही का मिसरा, और मिसरा ए सानी में अपनी बात कहने के लिए फक्त ८ [या ९ गिन लो] मात्रा - ये सब खाने का काम नहीं होता|

दानिश जी मुबारकबाद इस विशिष्ट प्रस्तुति के लिए|

manu said...

सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है




ghazal mein sabse pahle is kambakht she'r ne dhyaan aisaa kheenchaa hai ki ...kyaa kahein...



सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है

kya kahein bas...
apne dil ki baat hai..aapki kalam se nikali hai...

Anonymous said...

अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है... वाह, बहुत ही गहरी सोच है

***Punam*** said...

बहुत सुन्दर शेर हैं...
कुछ प्रश्न,कुछ जिन्दगी के एहसास..
छोटे-छोटे लफ्ज़ अपने में
सारी गहराई को समेटे हुए हैं...!!
जौहरी की तराशा है आपने अपने शेरों को...!!

ज्योति सिंह said...

दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है.
bahut khoob

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...

आदरणीय दानिश जी
अदब सहित आदाब !
सादर सस्नेहाभिवादन !

"नई लेखनी" का सौभाग्य है, जो ऐसा नायाब हीरा उनके पहले अंक के माध्यम से ही पाठकों तक पहुंचा …

बहुत शानदार आप हमेशा लिखते हैं …
लागी नाहीं छूटे रामा
कर-कर लाख जतन देखा है

"दानिश" प्रेम-बिना जग सूना
है अनमोल कथन , देखा है

बहुत ख़ूब!

मनोज अबोध जी की बात के जवाब का हमें भी इंतज़ार रहेगा ।
… साथ ही नई लेखनी का पता भेज पाएं तो मेह्रबानी होगी।


हार्दिक बधाई और शुभकामनाओं सहित आपका ही
- राजेन्द्र स्वर्णकार

सदा said...

वाह ... बहुत ही खूबसूरत शब्‍दों का संगम ।

Arti Raj... said...

bahut khubsurat rachna....comment ke lie dhnybad...likhte rahie aap,padhte rahenge hum,..uhi ek safar pe sang chalete rahenge hum....

Anju (Anu) Chaudhary said...

इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है


दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है

bahut khub.....sach mei arth purn gazal...

Kailash Sharma said...

अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है..

बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर लाज़वाब..

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

har sher laajawab....
antim sabse achha laga....prem bin dab sunaa hai.......

Dr Kiran Mishra said...
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Dr Kiran Mishra said...
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Dr Kiran Mishra said...

bahut sundar rachna

Smart Indian said...

"दानिश" प्रेम-बिना जग सूना है अनमोल कथन देखा है|

बहुत सुन्दर रचना, दानिश जी!

Shabad shabad said...

सुंदर ...हृदयस्पर्शी रचना !

Urmi said...

आपकी उत्साह भरी टिप्पणी और हौसला अफजाही के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

“लागी नाहीं छूटे रामा
कर-कर लाख जतन देखा है”
वाह सर... बहुत खूबसूरत....आनंद आ गया....
सादर....

todaythoughts said...

वाह ... बहुत खूब ।

गौतम राजऋषि said...

बड़े दिनों बाद आपकी कोई नई ग़ज़ल देखने को मिल रही है| मोहक काफ़िये और सुंदर हिन्दी का मिश्रण ग़ज़ल को लुभावना बना रहे हैं|

"अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं/जब जब मन-दरपन देखा है "...बहुत ही प्यारा सा शेर!!!

devendra gautam said...

अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है

दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है

....छोटी बहर में बड़े शेर.....ज़ुबान पर चढ़ जानेवाले... बहुत खूब...मुबारक हो!
-----देवेंद्र गौतम

निवेदिता श्रीवास्तव said...

खूबसूरत गज़ल .........आभार !

मदन शर्मा said...

बहुत सुन्दर रचना, दानिश जी!
मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं आपके साथ हैं !!

Anonymous said...

इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है ...

puri ghazal behtareen aur har sher apne aap me jaise samandar hai.
Nai lekhani me prakashan ke liye badhai sweekarein.

--Mayank

अशोक सलूजा said...

दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है...

टिप्पणी क्या होती है ...???
दिल की सुनो !और गुनगुनाते जाओ |
खुश रहो!
अशोक सलूजा !

BrijmohanShrivastava said...

bahut achchhe sher

Ankit said...

हिंदी काफियों ने एक अलग फ्लेवर दिया है ग़ज़ल को,
"इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है".
वाह वा, बेहद उम्दा शेर है. हासिल-ए-ग़ज़ल शेर है.

virendra sharma said...

शुक्रिया ज़नाब आपका .ग़ज़ल ने मन मोह लिया .

Patali-The-Village said...

बहुत खूबसूरत गज़ल| धन्यवाद|

Kunwar Kusumesh said...

इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है

सार्थक शेर,ज़बान पर ठहरने लायक.

sharda monga (aroma) said...

बहुत खूब.

हर पल है अड़चन, देखा है
ये जग इक बंधन देखा है
सुन्दर प्रेम-सपन देखा है
जीवन अभिनन्दन देखा है
इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है
दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है.

मनोज कुमार said...

यह ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी।

Rajeev Bharol said...

बहुत नाज़ुक और प्यारी सी गज़ल..बहुत सुंदर.