"उसका पावन मन देखा है" के लिए बरेली के वरिष्ठ साहित्यकार
श्री शिवनाथ बिस्मिल जी द्वारा "नई लेखनी" के प्रवेशांक के लिए
गज़लें मंगवाई गईं थीं... उस अंक में कुछ ब्लोगर साथियों की भी
बहुत अच्छी गज़लें प्रकाशित हुई हैं
इसी सिलसिले में कही गयी ग़ज़ल के कुछ शेर
आपकी खिदमत में हाज़िर कर रहा हूँ.......
ग़ज़ल
हर पल है अड़चन , देखा है
ये जग इक बंधन देखा है
सुन्दर प्रेम-सपन देखा है
जीवन अभिनन्दन देखा है
अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है
दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
मेहनत और लगन का ही तो
दुनिया में वंदन देखा है
आस-निराश भरे पथ पर ही
जीवन परिचालन देखा है सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है
लागी नाहीं छूटे रामा
कर-कर लाख जतन देखा है
"दानिश" प्रेम-बिना जग सूना
है अनमोल कथन , देखा है
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52 comments:
इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है
बहुत खूबसूरत गज़ल ...
सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है...
वाह वाह वाह
दानिश साहब, यूं तो हर शेर अपने आप में उम्दा है, लेकिन ये शेर तो कमाल का है जनाब.
अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
Man me bas gayeen ye panktiyaan!
पहले तो "नई लेखनी" में ग़ज़ल प्रकाशित होने की मुबारकबाद क़ुबूल करें
अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
वाह ! इस फ़लसफ़ियाना शेर ने ग़ज़ल को एक अलग ही ख़ूबसूरती बख़्शी है
दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
हक़ीक़त से रू ब रू कराता शेर
सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ,तुझ-सा भी बन देखा है
बहुत ख़ूब !
ख़ूबसूरत ग़ज़ल !
हिंदी शब्दों का समावेश बहुत सुंदरता से किया गया है .
भाई दानिश जी आपकी गजल बहुत अच्छी है, वरना बिस्मिल जी ने तो 90 प्रतिशत रचनाकारों की रचना का हिन्दीकरण के नाम पर बाजा बजा दिया । उन्हे उर्दू के एक भी शब्द से परहेज है । हां, आपने भी गिरह नहीं लगाई । लेकिन जो गजल आपकी नई लेखनी में छपी है, वो भी तो ब्लॉग पर डालते फिर अंतर दिखता ना....
आस-निराश भरे पथ पर ही जीवन परिचालन देखा है
सीख न पाया तौर जफ़ा के हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है
बस सर जी , अब आके क्या कहे.. आपकी लेखनी में जीवन कि दर्शिनिकता समां चुकी है . सलाम आपको ..
मैंने भी कुछ लिखा है ..देखियेंगा .
विजय
ग़ज़ल प्यारी बन पड़ी है......जीवन के चंद एहसासों को समेट कर छोटी बहर में बड़ी बड़ी बातें कह डाली आपने......! ये शेर बहुत की सटीक हैं....!
अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है
बेहद सुन्दर, शानदार और उम्दा ग़ज़ल प्रस्तुत किया है आपने जो प्रशंग्सनीय है! बधाई!
अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
भाई जान...कमाल किया है आपने...छोटे छोटे लफ्ज़ और इतनी गहराई लिए हुए...वाह...इस निहायत खूबसूरत ग़ज़ल के लिए जितनी तारीफ़ करूँ कम ही लगेगी...हर शेर बहुत कारीगरी से तराशा गया है. आपका अंदाज़े बयां सबसे जुदा और दिलकश है.
नीरज
इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है ...
हिन्दी के आम शब्दों को लेकर लेखनी का जादू चलाया है आपने .... बहुत ही लाजवाब ग़ज़ल है ...
अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
खुद को पहचान पायें तो जन्म सफल हो जाए ।
दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
सांसारिक सच है ये भी ।
छोटी बहर में उम्दा ग़ज़ल ।
देर से आए पर बढ़िया ग़ज़ल लाये ।
अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
वाह क्या खूब कहा है.हर शेर उम्दा है.
इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है
दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
दानिश जी के छोटे तीर, दिल पर घाव करें गंभीर...
दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
बहुत सुन्दर.
waah, achchhi pankti hai. sundar ghazal ban gai bhaai. maine bhi likh lee hai. apne blog me post karoongaa. ek-do din baad..dekhiyegaa. aapke har sher pyare hain.
अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
सीख न पाया तौर जफा के
हाँ तुझ सा भी बन देखा है।
वाह बहुत खूब। हर शेर लाजवाब। बधाई खूबसूरत गज़ल के लिये
अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
Bohot achha !!! Mubarakbaad...
बस इतना ही कहना चाहूंगी किः-
वर्षा, बेहद उम्दा पाया
दानिश का लेखन देखा है
प्रेम बिना जग सूना... सच में अनमोल कथन है.
तरही के मिसरे पर कही गई इस ग़ज़ल की क्या क्या खूबियाँ गिनाई जाएँ| खास कर 'परिचालन' वाला काफिया तो 'उफ़ युम्मा' टाइप है सर जी| जय हो|
छोटी बहर, तरही का मिसरा, और मिसरा ए सानी में अपनी बात कहने के लिए फक्त ८ [या ९ गिन लो] मात्रा - ये सब खाने का काम नहीं होता|
दानिश जी मुबारकबाद इस विशिष्ट प्रस्तुति के लिए|
सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है
ghazal mein sabse pahle is kambakht she'r ne dhyaan aisaa kheenchaa hai ki ...kyaa kahein...
सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है
kya kahein bas...
apne dil ki baat hai..aapki kalam se nikali hai...
अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है... वाह, बहुत ही गहरी सोच है
बहुत सुन्दर शेर हैं...
कुछ प्रश्न,कुछ जिन्दगी के एहसास..
छोटे-छोटे लफ्ज़ अपने में
सारी गहराई को समेटे हुए हैं...!!
जौहरी की तराशा है आपने अपने शेरों को...!!
दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
सीख न पाया तौर जफ़ा के
हाँ , तुझ-सा भी बन देखा है.
bahut khoob
आदरणीय दानिश जी
अदब सहित आदाब !
सादर सस्नेहाभिवादन !
"नई लेखनी" का सौभाग्य है, जो ऐसा नायाब हीरा उनके पहले अंक के माध्यम से ही पाठकों तक पहुंचा …
बहुत शानदार आप हमेशा लिखते हैं …
लागी नाहीं छूटे रामा
कर-कर लाख जतन देखा है
"दानिश" प्रेम-बिना जग सूना
है अनमोल कथन , देखा है
बहुत ख़ूब!
मनोज अबोध जी की बात के जवाब का हमें भी इंतज़ार रहेगा ।
… साथ ही नई लेखनी का पता भेज पाएं तो मेह्रबानी होगी।
हार्दिक बधाई और शुभकामनाओं सहित आपका ही
- राजेन्द्र स्वर्णकार
वाह ... बहुत ही खूबसूरत शब्दों का संगम ।
bahut khubsurat rachna....comment ke lie dhnybad...likhte rahie aap,padhte rahenge hum,..uhi ek safar pe sang chalete rahenge hum....
इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है
दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
bahut khub.....sach mei arth purn gazal...
अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है..
बहुत सुन्दर गज़ल..हरेक शेर लाज़वाब..
har sher laajawab....
antim sabse achha laga....prem bin dab sunaa hai.......
bahut sundar rachna
"दानिश" प्रेम-बिना जग सूना है अनमोल कथन देखा है|
बहुत सुन्दर रचना, दानिश जी!
सुंदर ...हृदयस्पर्शी रचना !
आपकी उत्साह भरी टिप्पणी और हौसला अफजाही के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
“लागी नाहीं छूटे रामा
कर-कर लाख जतन देखा है”
वाह सर... बहुत खूबसूरत....आनंद आ गया....
सादर....
वाह ... बहुत खूब ।
बड़े दिनों बाद आपकी कोई नई ग़ज़ल देखने को मिल रही है| मोहक काफ़िये और सुंदर हिन्दी का मिश्रण ग़ज़ल को लुभावना बना रहे हैं|
"अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं/जब जब मन-दरपन देखा है "...बहुत ही प्यारा सा शेर!!!
अनसुलझे कुछ प्रश्न मिले हैं
जब जब मन-दरपन देखा है
दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है
....छोटी बहर में बड़े शेर.....ज़ुबान पर चढ़ जानेवाले... बहुत खूब...मुबारक हो!
-----देवेंद्र गौतम
खूबसूरत गज़ल .........आभार !
बहुत सुन्दर रचना, दानिश जी!
मेरी हार्दिक शुभ कामनाएं आपके साथ हैं !!
इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है ...
puri ghazal behtareen aur har sher apne aap me jaise samandar hai.
Nai lekhani me prakashan ke liye badhai sweekarein.
--Mayank
दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है...
टिप्पणी क्या होती है ...???
दिल की सुनो !और गुनगुनाते जाओ |
खुश रहो!
अशोक सलूजा !
bahut achchhe sher
हिंदी काफियों ने एक अलग फ्लेवर दिया है ग़ज़ल को,
"इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है".
वाह वा, बेहद उम्दा शेर है. हासिल-ए-ग़ज़ल शेर है.
शुक्रिया ज़नाब आपका .ग़ज़ल ने मन मोह लिया .
बहुत खूबसूरत गज़ल| धन्यवाद|
इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है
सार्थक शेर,ज़बान पर ठहरने लायक.
बहुत खूब.
हर पल है अड़चन, देखा है
ये जग इक बंधन देखा है
सुन्दर प्रेम-सपन देखा है
जीवन अभिनन्दन देखा है
इस दुनिया की, दिल वालों से
रहती है अनबन , देखा है
दिल बँट जाने से ही अक्सर
बँटता घर-आँगन देखा है.
यह ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी।
बहुत नाज़ुक और प्यारी सी गज़ल..बहुत सुंदर.
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