मन के भावों को शब्दों के हवाले किये जाने तक की
कशमकश में खुद से रुबरु होना तो तय होता ही है ,
अपने आस-पास को भी खुद तक ला पाने का काम
कर लेना भी लाज़िम होता रहे तो इक लय बनी रहती है
कुछ, जाने-पहचाने-से अश`आर, ग़ज़ल की शक्ल में
हाज़िर हैं ......
ग़ज़ल
रहे क़ायम, जहाँ में प्यार , प्यारे
फले - फूले ये कारोबार प्यारे
सुकून-औ-चैन की ही खुशबुएँ हों
सदा खिलता रहे गुलज़ार प्यारे
जियो खुद, और जीने दो सभी को
यही हो ज़िन्दगी का सार प्यारे
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे
शुऊर-ए-ज़िन्दगी फूलों से सीखो
करो तस्लीम हँस कर ख़ार प्यारे
लहू का रंग सबका एक-सा है कशमकश में खुद से रुबरु होना तो तय होता ही है ,
अपने आस-पास को भी खुद तक ला पाने का काम
कर लेना भी लाज़िम होता रहे तो इक लय बनी रहती है
कुछ, जाने-पहचाने-से अश`आर, ग़ज़ल की शक्ल में
हाज़िर हैं ......
ग़ज़ल
रहे क़ायम, जहाँ में प्यार , प्यारे
फले - फूले ये कारोबार प्यारे
सुकून-औ-चैन की ही खुशबुएँ हों
सदा खिलता रहे गुलज़ार प्यारे
जियो खुद, और जीने दो सभी को
यही हो ज़िन्दगी का सार प्यारे
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे
शुऊर-ए-ज़िन्दगी फूलों से सीखो
करो तस्लीम हँस कर ख़ार प्यारे
तो फिर आपस में क्यूँ तकरार प्यारे
महोब्बत की तड़प में भी मज़ा है
सुकूँ देता है ये आज़ार प्यारे
किसी को क्या पड़ी, सोचे किसी को
सभी अपने लिए बीमार, प्यारे
तुम्हें जी-भरके अपना प्यार देगी
करो तो, ज़िन्दगी से प्यार, प्यारे
यही है फलसफा-ए-इश्क़ , 'दानिश',
जो डूबा है, वही है पार, प्यारे
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गुलज़ार=बग़ीचा
शुऊरएज़िन्दगी= जीने का सलीक़ा
तस्लीम=स्वीकार
आज़ार= रोग
फलसफा=सिद्धांत, दर्शन
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38 comments:
तुम्हें जी-भरके अपना प्यार देगी
करो तो, ज़िन्दगी से प्यार, प्यारे
waah
jindagi ka falsafa payar hai payare,payar payar mai aapne payari si jaindgi ko alfaazo mai ji liya. payari si gazal!
सुन्दर भावाभिव्यक्ति ||
बधाई ||
खूबसूरत ग़ज़ल... हर शेर मुक्कमल...
जियो खुद, और जीने दो सभी को
यही हो ज़िन्दगी का सार प्यारे
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे
शुऊर-ए-ज़िन्दगी फूलों से सीखो
करो तस्लीम हँस कर ख़ार प्यारे
एक-एक शे’र में जबर्दस्त आकर्षण है। बहुत अच्छी लगी यह ग़ज़ल।
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे
शुऊर-ए-ज़िन्दगी फूलों से सीखो
करो तस्लीम हँस कर ख़ार प्यारे
दानिश जी ,
शिकायत बस दूसरों से ही रहती है ..इसे आपने बखूबी लिखा है ..सुन्दर गज़ल
दानिश जी ,
खूबसूरत ख्वाइशें!!!
खुश रहें,खुश रखें !
शुभकामनायें!
लहू का रंग सबका एक-सा है
तो फिर आपस में क्यूँ तकरार प्यारे --- काश इस क्यों का जवाब होता...!!
ग़ज़ल भी अच्छी और सन्देश भी अच्छा.
बधाई दानिश भाई.
aap to dil jeet lete hai huzoor ... aapki gazal ka kya kahna .. main to aap ke gazal me chipe bhaavo par fida hoon ....
bahot khub
तुम्हें जी-भरके अपना प्यार देगी
करो तो, ज़िन्दगी से प्यार, प्यारे ...
एक शेर को कोट कर रहा हूँ पर सच कहूँ तो सभी शेर इतने लाजवाब और कमाल के हैं ... की हर शेर पढ़ने के बाद लगता है क्या कह दिया है .. वो भी आसान से शब्दों में ...
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे
bilkul sahi kaha aapne.
हर एक शे'र खूबसूरत .
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे
यह तो कमाल का है .
प्रभावित करती अभिव्यक्ति ..... आभार !
इस खुबसूरत ग़ज़ल के लिए आपको सादर नमन...
(इस गुस्ताखी के लिए मुआफी की दरख्वास्त सहित)
"हकाइक-ए-हयात का बयान-ए-मुकम्मल
वसील-ए-इन्शिराहे क़ल्ब, ये अशआर प्यारे"
सादर...
इस खूबसरत ग़ज़ल और ज़ज्बे के लिए तहे दिल से बधाई ...काश ऐसा ही हो जाय...ज़िन्दगी चैन से जीने के तरीके सिखा रही है आप की ये ग़ज़ल...
नीरज
अच्छा सन्देश देती..........सुन्दर ग़ज़ल
हर शेर अर्थपूर्ण
हमेशा की तरह एक शानदार रचना। बेहतरीन गजल। आभार।
खूबसूरत रचना। अपनी दुआ में हमें भी शामिल समझिये।
"हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे"
...इस शेर के अंदाज़े-बयां के क्या कहने दानिश साब!!! नमन!
कल आपका कॉल छूट गया, जिसका अफसोस है...आज रात बात होगी|
आप से ऐसी ही खूबसूरत गज़लों की उम्मीद है रहती है दानिश भाई| मजा आ गया इसे पढ़ कर| ये मिसरे दिल के काफी क़रीब लगे:-
कभी खुद से भी हो दो चार प्यारे ............
सुकूँ देता है ये आज़ार प्यारे ……
करो तो ज़िंदगी को प्यार प्यारे............
और मकते की तो बात ही निराली रही ............... जो डूबा है, वही है पार प्यारे|
मजा आ गया| कल आप से हुई बात के मुताबिक अपनी पिछली दो गज़लों की लिंक यहीं दे रहा हूँ|
नवरस ग़ज़ल - हाथ में आटा लिए जो गुनगुनाये ज़िंदगी
ग़ज़ल: जब वो खुद को तलाश लें, खुद में
कुण्डलिया छन्द - सरोकारों के सौदे
जियो खुद, और जीने दो सभी को
यही हो ज़िन्दगी का सार प्यारे
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे
शुऊर-ए-ज़िन्दगी फूलों से सीखो
करो तस्लीम हँस कर ख़ार प्यारे
लहू का रंग सबका एक-सा है
तो फिर आपस में क्यूँ तकरार प्यारे
अच्छे शेर, कामयाब ग़ज़ल...ढेरों दाद क़ुबूल करें
---देवेंद्र गौतम
जियो खुद, और जीने दो सभी को
यही हो ज़िन्दगी का सार प्यारे
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे
लहू का रंग सबका एक-सा है
तो फिर आपस में क्यूँ तकरार प्यारे
बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल ,,ये बातें ,ये नसाएह अगर हम समझ सकें और इन पर अमल भी कर सकें तो दुनिया का एक अलग ही चेहरा नज़र आएगा ख़ूबसूरत और पुरकशिश
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे
शुऊर-ए-ज़िन्दगी फूलों से सीखो
करो तस्लीम हँस कर ख़ार प्यारे
लाजवाब!!!!
बहुत अच्छी ग़ज़ल।
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे
kyaa hee khoobsoorat sher hai!
hazaar_haa daad!
आमीन
अगर ये फलसफा समज़ में आ जाये और याद भी रहे तो बेडा पार हो जाए..."दानिश" जी ...
दानिश जी,
प्रभावित करती खूबसूरत ग़ज़ल
जियो खुद, और जीने दो सभी को
यही हो ज़िन्दगी का सार प्यारे...
शुभकामनायें!
दानिश जी,
प्रभावित करती खूबसूरत ग़ज़ल
जियो खुद, और जीने दो सभी को
यही हो ज़िन्दगी का सार प्यारे...
शुभकामनायें!
वाह. बहुत प्यारी गज़ल है. खूबसूरत मतला और एक से बढ़ कर एक शेर..
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे.. वाह.
दाद कबूल फरमाएं.
बहुत खूब....एक एक शेर सन्देश देता हुआ... काश कुछ अमल कर लें हम.....
बहुत खूब....एक एक शेर सन्देश देता हुआ... काश कुछ अमल कर लें हम.....
dk जी , आपने तो गागर में सागर भर दिया ! विशेष कर :
" यही है फलसफा-ए-इश्क़ , 'दानिश',
जो डूबा है, वही है पार, प्यारे "
सब बातों का निचोड़ है !
बधाई !
जो डूबा है, वही है पार, प्यारे
bahut badhiya
Khusrau darya prem ka, ulti wa ki dhaar,
Jo utra so doob gaya, jo dooba so paar.
जियो खुद, और जीने दो सभी को
यही हो ज़िन्दगी का सार प्यारे
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे
दानिश जी बहुत ही खूबसूरत गज़ल शारे शेर कमाल के हैं चुनना मुश्किल था ।
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे
वाह दानिश साहब, वैसे तो ग़ज़ल का हर शेर बहुत अच्छा है, लेकिन यह शेर हासिले-ग़ज़ल है.
हमेशा ही ज़माने से शिकायत ?
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार, प्यारे
----
तुम्हें जी-भरके अपना प्यार देगी
करो तो, ज़िन्दगी से प्यार, प्यारे
क्या कहने! बहुत खूब..रोशनी बिखरते हुए ये सभी अश`आर बहुत पसंद आये.
आप किकही यह बात --मन के भावों को शब्दों के हवाले किये जाने तक की कशमकश में खुद से रुबरु होना तो तय होता ही है--बहुत सही लगी.इसे एक शायर ही समझ सकता है.
बहुत उम्दा शेर कहें हैं, मुहब्बत की तड़प में भी मज़ा है......, किसी को क्या पड़ी, सोचे किसी को.....
इस शेर के तो कहने ही क्या.....
हमेशा ही ज़माने से शिकायत
कभी ख़ुद से भी हो दो-चार,प्यारे
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