पल-पल , छिन-छिन सरकते सरकते जाने कब
बड़े लम्हों में तब्दील हो जाते हैं ... अहसास तब होता है
जब यूँ लगने लगता है कि वक़्त का एक बड़ा हिस्सा
आने वाले वक़्त के एक और हिस्से को सामने लाने के लिये
हमसे विदा ले चुका है .... लीजिये एक ग़ज़ल हाज़िर करता हूँ ।
ग़ज़ल
माना , कि मुश्किलें हैं , रहे-ख़ारदार में
बदलेगा वक़्त , गुल भी खिलेंगे बहार में
यादों में तेरी , फिर भी , उलझना पसंद है
उलझी तो है हयात, ग़म-ए-रोज़गार में
इंसान को न जाने है ख़ुद पर ग़ुरूर क्यूँ
है ज़िन्दगी , न मौत ही जब इख़्तियार में
मानो , तो सब है बस में , न मानो, तो कुछ नहीं
इतना-सा ही तो फ़र्क़ है बस जीत-हार में
चाहत , यक़ीन , फ़र्ज़ , वफ़ा , प्यार , दोस्ती
कल रात कह गया था मैं, क्या-क्या, ख़ुमार में
नफ़रत के ज़ोर पर तो किसी को न कुछ मिला
पा लेता है बशर तो, ख़ुदा को भी प्यार में
तय की गई थीं जिन पे घरों की हिफाज़तें
शामिल रहे थे लोग वही , लूट-मार में
और आज़माओ मुझको अभी , मेरी हसरतो
बाक़ी बहुत जगह है दिल-ए-दाग़दार में
"दानिश" अब उनसे कह दो, न आएँ वो आज भी
मिलने लगा है मुझको सुकूँ, इन्तज़ार में
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रहे-खारदार = कंटीली राह
हयात = ज़िन्दगी
ग़म ए रोज़गार = दुनियावी उलझने/कामकाज की चिंता
इख्तियार में = बस में/क़ाबू में
दिल ए दागदार = क़ुसूरवार/बदनाम दिल
सुकूँ = आनंद
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29 comments:
वाह दानिश जी, क्या बात है. बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल है. ये पंक्तियाँ मन पर बैठ गईं-
चाहत, यक़ीन, फ़र्ज़, वफ़ा, प्यार, दोस्ती
कल रात कह गया था मैं, क्या-क्या, ख़ुमार में
बहुत ख़ूब.
एक प्रभावशाली ग़ज़ल....
वाह , मुफलिस जी। देर से आते हो पर दुरुस्त आते हो ।
यादों में तेरी , फिर भी , उलझना पसंद है
उलझी तो है हयात, ग़म-ए-रोज़गार में
सभी के दिल की बात कह दी ।
दानिश" अब उनसे कह दो, न आएँ वो आज भी
मिलने लगा है मुझको सुकूँ, इन्तज़ार में
बहुत रूमानी ।
सुन्दर ग़ज़ल के लिए बधाई ।
बहुत उम्दा वजनदार शायरी है ...
बधाई.
इंसान को न जाने है ख़ुद पर ग़ुरूर क्यूँ
है ज़िन्दगी , न मौत ही जब इख़्तियार में
मानो , तो सब है बस में , न मानो, तो कुछ नहीं
इतना-सा ही तो फ़र्क़ है बस जीत-हार में
Waise pooree gazal behtareen hai,lekin uprokt panktiyan khaas hee achhee lageen!
यादों में तेरी , फिर भी , उलझना पसंद है
उलझी तो है हयात, ग़म-ए-रोज़गार में
यादों में तेरी , फिर भी , उलझना पसंद है
उलझी तो है हयात, ग़म-ए-रोज़गार में
"दानिश" अब उनसे कह दो, न आएँ वो आज भी
मिलने लगा है मुझको सुकूँ, इन्तज़ार में
वाह वाह ! दानिश जी........
मतले से लेकर मकते तक क्या समा बाँधा है! बहुत ही खूबसूरत अशआर हैं सब.
बहुत खूब दानिश जी,'..
शानदार रूमानी गजल के लिये..बधाई ''
मेरे पोस्ट में आने के लिये आभार,...
बहुत खूब !
comments received from
Sh Ashok Saluja ji...
through gmail
दानिश भाई जी ,
नमस्कार !
दानिश भाई जी , अभी -अभी टिप्पणी करके गया था ,गायब हो गई न जाने क्यों?
आप की गज़ल का एक-एक शे'र मुकम्मल और शानदार है हमेशा की तरह ...
क्या बात है ...
"दानिश" अब उनसे कह दो, न आएँ वो आज भी
मिलने लगा है मुझको सुकूँ, इन्तज़ार में
खुश रहें |
ये तीसरी टिप्पणी है ,आप की पोस्ट पर दिखाई देती है ,थोड़ी देर बाद गायब हो जाती है ..?
इस लिए अब इ-मेल कर रहा हूँ|
इंसान को न जाने है ख़ुद पर ग़ुरूर क्यूँ
है ज़िन्दगी , न मौत ही जब इख़्तियार में
वाह!
बेहद प्रभावशाली ग़ज़ल!
क्या ही रवानी है सर ग़ज़ल के अशारों में...
बार बार पढने को जी चाह रहा है...
बहुत उम्दा...
सादर....
दानिश भाई! कहाँ है भाई आज कल ? मुद्दत हो गई आप के दर्शन किए! भाई कभी पधारिए ठाले-बैठे पर भी।
हर बार की तरह इस बार भी क़माल की ग़ज़ल पेश की है आपने। बहुत बहुत बधाई।
बेहद खूबसूरत गजल।
सादर
इंसान को न जाने है ख़ुद पर ग़ुरूर क्यूँ
है ज़िन्दगी , न मौत ही जब इख़्तियार में
sach me bhai shri jab ye baat sach me dikh jaati hai to anand barasne lagta hai fir
मानो , तो सब है बस में , न मानो, तो कुछ नहीं
इतना-सा ही तो फ़र्क़ है बस जीत-हार में
....
waah man ke haare har hai man ke jeete jeet!
चाहत , यक़ीन , फ़र्ज़ , वफ़ा , प्यार , दोस्ती
कल रात कह गया था मैं, क्या-क्या, ख़ुमार में
waah shere gazal hai yeh to..waise har lafz yakeena gazal ka har lafz sundar hai...bahut khoob janaaab !
dekho upar wale ki marzi rahi to padhta rahunga aap ko !!
वाह वाह ...क्या बात है ..एक एक शेर दमदार है.
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल....
इंसान को न जाने है ख़ुद पर ग़ुरूर क्यूँ
है ज़िन्दगी , न मौत ही जब इख़्तियार में
बहुत खूबसूरत...और सच्चाई भी...
मानो तो सब है बस में,न मानो तो कुछ नहीं
इतना-सा ही तो फ़र्क़ है बस जीत-हार में
कितनी गहराई है इस शेर में...
दानिश साहब...पूरी ग़ज़ल शानदार है.
♥
आदरणीय दानिश जी
सादर नमस्ते !
पूरी ग़ज़ल बेहतरीन है -
मक़्ते सहित इन अश्'आर ने दिल ले लिया …
इंसान को न जाने है ख़ुद पर ग़ुरूर क्यूँ
है ज़िन्दगी , न मौत ही जब इख़्तियार में
मानो , तो सब है बस में , न मानो, तो कुछ नहीं
इतना-सा ही तो फ़र्क़ है बस जीत-हार में
चाहत , यक़ीन , फ़र्ज़ , वफ़ा , प्यार , दोस्ती
कल रात कह गया था मैं, क्या-क्या, ख़ुमार में
नफ़रत के ज़ोर पर तो किसी को न कुछ मिला
पा लेता है बशर तो, ख़ुदा को भी प्यार में
आपके यहां ग़ज़ल के प्यासों की प्यास बुझने की गारंटी होती है हमेशा …
शब्द नहीं मिल रहे तारीफ़ के लिए दानिश साहब
मुबारकबाद !
बधाई और मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
बहुत खूब सर!
सादर
दानिश जी [ मुझे वैसे पुराना ही नाम ज्यादा पसंद है ..मुफ्लिश जी //////ये कुछ अपना सा लगता है ...]
चाहत , यक़ीन , फ़र्ज़ , वफ़ा , प्यार , दोस्ती
कल रात कह गया था मैं, क्या-क्या, ख़ुमार में
अब इस शेर के बाद क्या कहू , कुछ कहने के लिये कोई शब्द ही नहीं बचा ... सोचा था कि और भी कुछ कहूँगा , लेकिन घूम फिर कर इसी शेर पर रुक जाता था .. लेकिन फिर आपकी तारीफ़ करना अब तो बस सूरज को दिया दिखलाना है , क्योंकि आपके इसे शेर में वो बात है ..जो खुदा के करीब ले जाता है ....
नफ़रत के ज़ोर पर तो किसी को न कुछ मिला
पा लेता है बशर तो, ख़ुदा को भी प्यार में
बस सलाम कबुल करे..
विजय
हर शेर मुकम्मल और उम्दा !
अच्छी ग़ज़ल, जो दिल के साथ-साथ दिमाग़ में भी जगह बनाती है।
Waah daanish ji aanand aa gaya aapki gazal padh kar.
Zabardust, bemisaal.
Dil se daad.
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति । मेर नए पोस्ट पर आकर मेरा मनोबल बढ़एं । धन्यवाद ।
दानिश जी
माना , कि मुश्किलें हैं , रहे-ख़ारदार में
बदलेगा वक़्त , गुल भी खिलेंगे बहार में
क्या खूब मतला है......
इंसान को न जाने है ख़ुद पर ग़ुरूर क्यूँ
है ज़िन्दगी , न मौत ही जब इख़्तियार में
तय की गई थीं जिन पे घरों की हिफाज़तें
शामिल रहे थे लोग वही , लूट-मार में..
jvab nahi bahut sundar !
tisra stanza bahut bhaya garur kis baat ka hai insan ko
tisra stanza bahut bhaya garur kis baat ka hai insan ko
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