--- ग़ज़ल ---
'हाँ' , 'ना' कहना सीखो जी
रौब न सहना , सीखो जी
'हाँ' , 'ना' कहना सीखो जी
रौब न सहना , सीखो जी
कुछ अपने, कुछ दूजों के
रंग में रहना, सीखो जी
कल-कल करती नदियों से
पल-पल बहना सीखो जी
छाँव भले ललचाती हो
धूप भी सहना सीखो जी
मीठे बोल, मधुर लहजा
सुन्दर गहना ! सीखो जी
वक़्त की मर्ज़ी के आगे
कुछ-कुछ ढहना सीखो जी
जब कहने को बात न हो
तब चुप रहना सीखो जी
शब्द तो कहते हो "दानिश"
अर्थ भी कहना सीखो जी
रंग में रहना, सीखो जी
कल-कल करती नदियों से
पल-पल बहना सीखो जी
छाँव भले ललचाती हो
धूप भी सहना सीखो जी
मीठे बोल, मधुर लहजा
सुन्दर गहना ! सीखो जी
वक़्त की मर्ज़ी के आगे
कुछ-कुछ ढहना सीखो जी
जब कहने को बात न हो
तब चुप रहना सीखो जी
शब्द तो कहते हो "दानिश"
अर्थ भी कहना सीखो जी
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