कुछ शख्स ऐसे भी होते हैं....जिन की मन की सच्चाईयों और
फ़न की खूबियों से आप प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते
कभी कभी किसी से कितनी भी बातें कर लो ...
हर बार कम लगने लगती हैं.... और कभी ऐसा हो जाता है
कि किसी से की हुई बहुत कम बातें भी कम नहीं लगतीं...
है तो ये एक अनबूझ पहेली ही,,,,,लेकिन अखरती नहीं
लगता है न किसी पुरानी फिल्म का जुमला...!!
मुझे भी लगा...... अब.... कोई बात तो करनी ही थी आपसे (:
ख़ैर.....एक ग़ज़ल ले कर हाज़िर हूँ
ग़ज़ल
पाँव जब भी इधर-उधर रखना
दिल में अपने ख़ुदा का डर रखना
रास्तों पर कड़ी नज़र रखना
हर क़दम इक नया सफ़र रखना
वक़्त जाने कब इम्तिहान माँगे
अपने हाथों में कुछ हुनर रखना
मंज़िलों की अगर तमन्ना है
मुश्किलों को भी हम-सफ़र रखना
खौफ़ रहज़न का तो बजा, लेकिन
रहनुमा पर भी कुछ नज़र रखना
बात किस से करोगे फुर्क़त में
आंसुओं को सँभाल कर रखना
चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे
बंदिशें मुझ पे सोच कर रखना
हक़ जताना अज़ीज़ है जो तुम्हें
फ़र्ज़ को भी अज़ीज़तर रखना
तंज़ जब भी करो किसी पे अगर
सामने ख़ुद को पेशतर रखना
आएं कितने भी इम्तिहाँ 'दानिश'
अपना किरदार मोतबर रखना
______________________________
रहज़न=लुटेरा ,,,,,, रहनुमा=मार्ग-दर्शक
बजा=सही/ठीक,,,,,,फुर्क़त=वियोग,उदासी ,,,,,,
अज़ीज़=प्रिय
अज़ीज़तर=ज़्यादा प्रिय ,,,,,, तंज़=कटाक्ष
पेशतर=पहले ,,,,,, किरदार=चरित्र
मोतबर=विश्वसनीय .
_______________________________
_______________________________
33 comments:
pahlaa comment,,
bahut jaldi mein..pahle kaa maukaa kaafi din mein milaa hai aaj...
:)
behatareen/ lajawaab, badhaai sweekaren.
वक़्त जाने कब इम्तिहान माँगे
अपने हाथों में कुछ हुनर रखना
हक़ जताना अज़ीज़ है जो तुम्हें
फ़र्ज़ को भी अज़ीज़तर रखना
वाह मुफलिस जी, आज तो सुबह सुबह ही खज़ाना मिल गया , एक सुन्दर ग़ज़ल का।
लाज़वाब रचना के लिए आभार और बधाई।
खौफ़ रहज़न का तो बजा, लेकिन
रहनुमा पर भी कुछ नज़र रखना
****
बात किस से करोगे फुर्क़त में
आंसुओं को संभाल कर रखना
****
तंज़ जब भी करो किसी पे अगर
सामने ख़ुद को पेशतर रखना
जनाब...ऐसे अशआर पढ़ कर क्या कहूँ ? कहा तो जब जाता है जब पास में लफ्ज़ हों...इस ग़ज़ल के लिए सिर्फ तालियाँ बजा सकता हूँ और वो ही कर भी रहा हूँ...कमाल किया है आपने...कमाल...मेरी दिली दाद कबूल करें...
नीरज
'मुफलिस' जी आदाब
ग़ज़ल का हर शेर समाज के लिये एक पैग़ाम है
वैसे हम तो मतले से आगे बढ़ ही नहीं पा रहे जनाब
पाँव जब भी इधर-उधर रखना
दिल में अपने ख़ुदा का डर रखना
वाह....वाह...वाह
'इधर-उधर' में कितना कुछ कह गये आप
अरे भाई यहाँ तो बड़ी सारी बंदिशें लगा राखी है. क्या करना, क्या न करना. अब बताओ कमेन्ट लिखें या न. अगर आपकी ये सारी बातें इंसान मान ले तो दुनिया ही कुछ और होगी. पर हम नहीं सुधरेंगें!
वाकई बहुत अच्छी ग़ज़ल है.एक बार पढ़कर बार पढ़ने को दिल करता है
वक़्त जाने कब इम्तिहान माँगे
अपने हाथों में कुछ हुनर रखना
आपकी बात गाँठ रखने लायक है ....... न जाने कब हुनर की ज़रूरत पढ़ जाए .....
बात किस से करोगे फुर्क़त में
आंसुओं को संभाल कर रखना
आपने तो जीवन का फलसफा लिख दिया .... सच है तन्हाई में कोई साथ नही देता ....
चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे
बंदिशें मुझ पे सोच कर रखना
दिल में लगी हो आग तो अक्सर ऐसा ही होता है ...........
मुफ़लिस जी .......... सारे शेर क़ाबिले तारीफ़ ....... हक़ीकत बयान कर रहे हैं ...........
bahut hi sundar gazal.......har sher lajawaab.
पहले ये बताइये कि हर बार स अजीब औ गरीब प्रस्तावना के पीछे कौन शख्स होता है, जो आपसे इतनी खूबसूरत गज़ल कहलवाता है :)
भूमिका स्वरुप उकेरे गये शब्द भले ही किसी फार्मेट में नहीं हो, किसी बेहतरीन ग़ज़ल से कम नहीं...कैसा पर्दा है कि चिलमन से लगे बैठे हैं/साफ छुपते भी नहीं सामने आते भी नहीं की तर्ज पर। क्यों गुरुवर??
ग़ज़ल की तारीफ़ में कुछ कहना हिमाकत ही होगी हम अदनों की जो पलक-पावड़े बिछाये बैठे रहते हैं कि कम मुफ़लिस साब ग़ज़ल लगायेंगे अपने ब्लौग पर।
जबरदस्त मतला हमेशा की तरफ। और ये शेर "खौफ़ रहज़न का तो बजा, लेकिन
रहनुमा पर भी कुछ नज़र रखना" तो सब कुछ कहे दे रहा है। लाजवाब!
फिर ये शेर भी "चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे
बंदिशें मुझ पे सोच कर रखना"...उफ़्फ़्फ़!!!
...और मतला तो हाय रेsssss!
फिर से आता हूँ।
आपकी गज़लों पर वैसे भी कुछ कहने की योग्यता नही रखता हूँ..बस बार बार पढ़ते हुए सहेज लेना चाहता हूँ..हर्फ़-दर-हर्फ़..
Har sher lajawab.Yun hi likhte rahen.
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल है...बहुत ही खूबसूरत. इसके चार शेर मुझे बहुत ही अच्छे लगे अपनी ज़िन्दगी के लिये-
रास्तों पर कड़ी नज़र रखना
हर क़दम इक नया सफ़र रखना
वक़्त जाने कब इम्तिहान माँगे
अपने हाथों में कुछ हुनर रखना
मंज़िलों की अगर तमन्ना है
मुश्किलों को भी हम-सफ़र रखना
हक़ जताना अज़ीज़ है जो तुम्हें
फ़र्ज़ को भी अज़ीज़तर रखना
वक़्त जाने कब इम्तिहान माँगे
अपने हाथों में कुछ हुनर रखना
खौफ़ रहज़न का तो बजा, लेकिन
रहनुमा पर भी कुछ नज़र रखना
तंज़ जब भी करो किसी पे अगर
सामने ख़ुद को पेशतर रखना
ye teenon sher bas kamaal ke hain..
vaise hain to sabhi lekin mujhe ye teenon hi bahut acche lage...
shukriya...
behtareen....zindagi ke sach ko behad prabhaavi shabdon mein baandh diya hai...
चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे
बंदिशें मुझ पे सोच कर रखना
वाह ...
बहुत सुन्दर मतला
पाँव जब भी इधर-उधर रखना
दिल में अपने ख़ुदा का डर रखना
और ये बेहतरीन शेर .......
मंज़िलों की अगर तमन्ना है
मुश्किलों को भी हम-सफ़र रखना
बहुत बहुत आभार
ये शेर भी बहुत कुछ ..
कह रहा है
चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे
बंदिशें मुझ पे सोच कर रखना
बहुत बहुत आभार
चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे
बंदिशें मुझ पे सोच कर रखना
bahut bahut khoob
तंज़ जब भी करो किसी पे अगर
सामने ख़ुद को पेशतर रखना
kya baat kahi hai
आएं कितने भी इम्तिहाँ 'मुफ़लिस'
अपना किरदार मोतबर रखना
bahut khoobsurat Maqta
मुफ्लिस जी ये गज़ल मैने पहले भी पढी थी मगर मेरा कमेन्ट पता नही क्या हुया शायद नेट कई बार कुछ देर आता जाता रहता है तो मैने ध्यान नही दिया हो} आप तो गज़ल के उस्ताद हैं फिर भला मैं क्या कमेन्ट करूँ । हर एक शेर दिल को छू गया और ये तीनो तो लाजवाब
वक़्त जाने कब इम्तिहान माँगे
अपने हाथों में कुछ हुनर रखना
बात किस से करोगे फुर्क़त में
आंसुओं को संभाल कर रखना
पाँव जब भी इधर-उधर रखना
दिल में अपने ख़ुदा का डर रखना
इस गज़ल के लिये बधाई । शुभकामनायें
मतले पर ही मैं ढेर हो गया था पढ़ते ही .... महफ़िलों में कोट करने वाला शे'र मिला है बहुत दिनों बाद ब्लॉग में .. बहुत खुबसूरत ग़ज़ल ...
बात किस से करोगे फुर्क़त में
आंसुओं को सँभाल कर रखना
चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे
बंदिशें मुझ पे सोच कर रखना
ये दोनों ही शे'र खासा परेशान कर रहे हैं मुझे अलग से ... :) :)
अर्श
ghayal kar diya aapne..!
dk sahab ,adab arz hai ,
matle se lekar maqte tak har sher apne aap men ehsasaat ki ek duniya samete hue hai ,behad khoobsoorat shayeri !
inmen zyadatar asha'ar maqnateesi kaifiyat rakhte hain jaise
पाँव जब भी इधर-उधर रखना
दिल में अपने ख़ुदा का डर रखना
वक़्त जाने कब इम्तिहान माँगे
अपने हाथों में कुछ हुनर रखना
बात किस से करोगे फुर्क़त में
आंसुओं को सँभाल कर रखना
चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे
बंदिशें मुझ पे सोच कर रखना
आएं कितने भी इम्तिहाँ 'मुफ़लिस'
अपना किरदार मोतबर रखना
maqta to khud hi aik poori darsgaah hai .bahut khoob ,mubarak ho.
behtareen abhivaykti....
किस शेर के लिये क्या कहूं? शब्दातीत.
तंज़ जब भी करो किसी पे अगर
सामने ख़ुद को पेशतर रखना
क्या बात है! हर शेर अपने आप में अव्वल.
वक़्त जाने कब इम्तिहान माँगे
अपने हाथों में कुछ हुनर रखना
.....बहुत सुन्दर,प्रभावशाली व प्रसंशनीय!!!!
ख़ूबसूरत ख़यालात, लफ़्ज़ों का जादू और बह्र का कमाल - ग़ज़ल का हर शेअर एक पैग़ाम लिए हुए है.
बात किस से करोगे फुर्क़त में
आंसुओं को संभाल कर रखना
तंज़ जब भी करो किसी पे अगर
सामने ख़ुद को पेशतर रखना
पाँव जब भी इधर-उधर रखना
दिल में अपने ख़ुदा का डर रखना
ऐसे अशार जो दिल को छू जाते हैं.
बधाई.
महावीर शर्मा
पाते हैं कुछ गुलाब पहाड़ों में परवरिश
आती है पत्थरों से भी खुशबू कभी कभी
गजल अशआर पढ़े तो नासिर काज़मी साहब का यह शेर जहन में ठोकरें मारने लगा. छोटी बहर, फिर 'रखना' जैसी वाहियात रदीफ़, उस के बाद पर-सर जैसे काफिये-लेकिन खूब लड़ा मर्दाना वो लुधियाना वाला मुफलिस था.
मैं तो फ़्लैट हो गया भाई.
वक़्त जाने कब इम्तिहान माँगे
ये इम्तिहान कौन सुधारेगा.
Ghazal ka har sher umda lagaa..
*ek seekh deta hua ..**bahut kuchh kahta hua..
***khaas kar yah sher liye jaa rahi hun--
वक़्त जाने कब इम्तिहान माँगे
अपने हाथों में कुछ हुनर रखना
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मुफलिसजी बहुत दिनों बाद आई आपके ब्लॉग पर और इतनी खूबसूरत गज़ल से मुलाकात हुई । और यह शेर तो
बात किस से करोगे फुर्क़त में
आंसुओं को संभाल कर रखना
कमाल ।
aaha..padhkar maja aa gaya :)
You have such a huge fan following...
चुप रहा मैं, तो लफ़्ज़ बोलेंगे
बंदिशें मुझ पे सोच कर रखना
mere kol alfaaz nahin ke main kuchh keh sakaan...bahut khoob
bahut hi shaandar ghazal kahi hai
Anaam Jasvinder nu suneha bhej dena ke comments bheijan lai vi approval do zaroorat paindi hai?
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