आज जो ग़ज़ल मैं आपसे सांझी करने जा रहा हूँ
उसे आप पहले "आज की ग़ज़ल" ब्लॉग पर पढ़ चुके हैं
बस मन में आया कि उसी ग़ज़ल को दोहरा लिया जाए...
उम्मीद करता हूँ कि हमेशा की तरह ही
अपनी दुआओं से नवाजेंगे ....
ग़ज़ल
जो सच से ही नज़रें बचा कर चले
समझ लो वो अपना बुरा कर चले
चले, जब भी हम, मुस्कुरा कर चले
हर इक राह में गुल खिला कर चले
हम अपनी यूँ हस्ती मिटा कर चले
मुहव्बत को रूतबा अता कर चले
लबे-बाम हैं वो, मगर हुक़्म है
चले जो यहाँ, सर झुका कर चले
इसे, उम्र भर ही शिकायत रही
बहुत ज़िन्दगी को मना कर चले
वो बादल ज़मीं पर तो बरसे नहीं
समंदर पे सब कुछ लुटा कर चले
चकाचौंध के इस छलावे में हम
खुद अपना ही विरसा भुला कर चले
किताबों में चर्चा उन्हीं की रहा
ज़माने में जो, कुछ नया कर चले
ख़ुदा तो सभी का मददगार है
बशर्ते, बशर इल्तिजा कर चले
कब इस का मैं 'दानिश' भरम तोड़ दूँ
मुझे ज़िन्दगी आज़मा कर चले
____________________________
____________________________
लबे-बाम = अटरिया पर , छत पर ,
अटारी (बालकनी में)
----------------------------------------
36 comments:
लबे-बाम हैं वो, मगर हुक़्म है
चले जो यहाँ, सर झुका कर चले
इसे, उम्र भर ही शिकायत रही
बहुत ज़िन्दगी को मना कर चले
वाह...
सच, ऐसी ही होती है ये ज़िन्दगी.
वो बादल ज़मीं पर तो बरसे नहीं
समंदर पे सब कुछ लुटा कर चले
सियासत की हक़ीक़त बयान करता शेर.
चकाचौंध के इस छलावे में हम
खुद अपना ही विरसा भुला कर चले
बहुत बड़ा पैग़ाम है शेर में.
किताबों में चर्चा उन्हीं की रहा
ज़माने में जो, कुछ नया कर चले
बिल्कुल सही...
कुछ अलग करके ही मिलती है पहचान
ख़ुदा तो सभी का मददगार है
बशर्ते, बशर इल्तिजा कर चले
हक़ीक़त है...
बहुत अच्छी ग़ज़ल है.
खूबसूरत गज़ल ..
चले, जब भी हम, मुस्कुरा कर चले
हर इक राह में गुल खिला कर चले
किताबों में चर्चा उन्हीं की रहा
ज़माने में जो, कुछ नया कर चले
सकारात्मक सोच ।
बढ़िया ग़ज़ल मुफलिस जी ।
"दिखाई दिए यूं कि बेखुद किया ! हमें आपसे जो जुदा कर चले " जैसे कुछ बोल रहे होंगे ? पक्का याद नहीं और फिल्म शायद बाज़ार ? का ख्याल आ रहा है !
बहुत बेहतर लिखा है आपने !
चकाचौंध के इस छलावे में हम
खुद अपना ही विरसा भुला कर चले.......
जी हाँ बहुत ही ज्यादा ज़रूरत है इस चकाचौंध से बचने की व अपना विरसा संभालने की !!
लबे-बाम हैं वो, मगर हुक्म है
चले जो यहाँ, सर झुका कर चले
बहुत उम्दा !क्या बात है!
वो बादल ज़मीं पर तो बरसे नहीं
समंदर पे सब कुछ लुटा कर चले
हमारे मुल्क की तीन चौथाई आबादी इसी तकलीफ़ से दो चार हो रही है
चकाचौंध के इस छलावे में हम
खुद अपना ही विरसा भुला कर चले
हम इसी चकाचौंध के पीछे भाग रहे हैं ,और इस दौड में क्या छूटा जा रहा है इस का एहसास तक नहीं है
कब इस का मैं 'मुफ़लिस' भरम तोड़ दूँ
मुझे ज़िन्दगी आज़मा कर चले
मतले से मक़ते तक ख़ूबसूरत ग़ज़ल
चले, जब भी हम, मुस्कुरा कर चले
हर इक राह में गुल खिला कर चले
हमेशा ऐसे ही चलते रहिये बहुत खूब।
इसे, उम्र भर ही शिकायत रही
बहुत ज़िन्दगी को मना कर चले
किताबों में चर्चा उन्हीं की रहा
ज़माने में जो, कुछ नया कर चले
वैसे शाहिद मिर्जा जी ने जो कहा है बस वही मेरा कमेन्ट समझ लें क्योंकि हर शेर बेमिसाल है। बहुत बहुत बधाई।
जो सच से ही नज़रें बचा कर चले
समझ लो वो अपना बुरा कर चले
किताबों में चर्चा उन्हीं की रहा
ज़माने में जो, कुछ नया कर चले
Umda sher !
लबे-बाम हैं वो, मगर हुक़्म है
चले जो यहाँ, सर झुका कर चले
खूबसूरत गज़ल
इसे, उम्र भर ही शिकायत रही
बहुत ज़िन्दगी को मना कर चले
क्या बात है!
वो बादल ज़मीं पर तो बरसे नहीं
समंदर पे सब कुछ लुटा कर चले
कितना कुछ बयां कर रहा है ये शेर...
किताबों में चर्चा उन्हीं की रहा
ज़माने में जो, कुछ नया कर चले
बहुत खूब. सुन्दर गज़ल.
Adaab ..
it is always insightful to read your creative endeavors.
sharing a few with you
Nashaad dil ki baatein laakh sun lijiye, nasal e nau se
Jo puchh lo abba ki janamdin kab aata hai, sochne lagte hein
Nahin milti taleem e zau, kissi jamaat mein ab
Jise bhi dekhiye sabak e mohabbat hi rate jaata hai
Regards
Arun
bus ek do aur
Na raunk e rukhsaar rahi na libaas mein burqa unke
Makeup ne kha liya kuchh unko ajaadi ki tehreer ne
Zikar e mohabbat hai hota har gali kuche mein aaj
Kahaan reh gaye woh, mere desh ka charcha karne wale
kindly excuse for sharing here but i m slow on my blog update
बहुत खूबसूरत गज़ल लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है!बधाई!
वो बादल ज़मीं पर तो बरसे नहीं
समंदर पे सब कुछ लुटा कर चले
हर शेर बेमिसाल है। बहुत अच्छी ग़ज़ल है.
वो बादल ज़मीं पर तो बरसे नहीं
समंदर पे सब कुछ लुटा कर चले
चकाचौंध के इस छलावे में हम
खुद अपना ही विरसा भुला कर चले
bahut sunder
नमस्कार मुफलिस जी,
बहुत उम्दा शेर कहें हैं,
"लबे-बाम हैं वो, मगर हुक़्म है
चले जो यहाँ, सर झुका कर चले"
"चकाचौंध के इस छलावे में हम
खुद अपना ही विरसा भुला कर चले"
आप के अशआर पढ़ कर सोच को एक नया नजरिया मिलता है.
जो सच से ही नज़रें बचा कर चले
समझ लो वो अपना बुरा कर चले
जी समझ लिया .....
इसे, उम्र भर ही शिकायत रही
बहुत ज़िन्दगी को मना कर चले
बस थोडा और मना लीजिये .....
वो बादल ज़मीं पर तो बरसे नहीं
समंदर पे सब कुछ लुटा कर चले
बादलों ने लुटाया भी तो समंदर पे .....?
किसी नदिया पे तो नहीं ....
इसलिए तो इन्हें आवारा फरेबी कहा जाता है .....
किताबों में चर्चा उन्हीं की रहा
ज़माने में जो, कुछ नया कर चले
जी.... जैसे हीर राँझा की मौत ....
यहाँ रहा को रही कर लें ...जल्दीबाजी में शायद रह गया ....
एक शानदार ग़ज़ल ....!!
ये खूबसूरत ग़ज़ल पढके वो खूबसूरत ज़माना याद हो आया...अपना एक कमबख्त सा शे'र भी टूटके याद आ रहा है..जिसे आज तक उलट-पुलट कर देख रहे हैं हम...
खफा 'बेतख्ल्लुस' है उनसे तो, फिर
ज़माने से क्यूँ मुंह बना कर चले..
या
खफा 'बेतख्ल्लुस' से है वो तो, फिर
ज़माने से क्यूँ मुंह बना कर चले....
आपने भी कोई मदद नहीं की ना....!!
:(
हम अपनी यूँ हस्ती मिटा कर चले
मुहव्बत को रूतबा अता कर चले
तीसरा मतला खूब कहा है...
और
लबे-बाम है वो , मगर हुक़्म है
चले जो यहाँ, सर झुका कर चले ...
क्या बेचारगी है...जरूरत ही क्या लबे-बाम आने की...अपने दिल का हाल कहता शे'र..
ये खूबसूरत ग़ज़ल पढके वो खूबसूरत ज़माना याद हो आया...अपना एक कमबख्त सा शे'र भी टूटके याद आ रहा है..जिसे आज तक उलट-पुलट कर देख रहे हैं हम...
खफा 'बेतख्ल्लुस' है उनसे तो, फिर
ज़माने से क्यूँ मुंह बना कर चले..
या
खफा 'बेतख्ल्लुस' से है वो तो, फिर
ज़माने से क्यूँ मुंह बना कर चले....
आपने भी कोई मदद नहीं की ना....!!
:(
हम अपनी यूँ हस्ती मिटा कर चले
मुहव्बत को रूतबा अता कर चले
तीसरा मतला खूब कहा है...
और
लबे-बाम है वो , मगर हुक़्म है
चले जो यहाँ, सर झुका कर चले ...
क्या बेचारगी है...जरूरत ही क्या लबे-बाम आने की...अपने दिल का हाल कहता शे'र..
Bahut khubsurat Gazal...
ग़ज़ल पढ़ी और बेतरह पढ़ी..पढ़ते हुए मीर साब की वह क्लासिक ग़ज़ल भी लता जी की आवाज मे जैसे कानो मे घुलती सी गयी..बहर ही इतनी पुरकशिश है कि अशआर तो कयामत होने ही थे...एक से एक..किसे गुनगुनाऊँ किसे छोड़ दूँ
कैसी तो यह बात है..
वो बादल ज़मीं पर तो बरसे नहीं
समंदर पे सब कुछ लुटा कर चले
और फिर इन दो शे’रों का पुरमआनी कान्ट्रस्ट
इसे, उम्र भर ही शिकायत रही
बहुत ज़िन्दगी को मना कर चले
और
कब इस का मैं 'मुफ़लिस' भरम तोड़ दूँ
मुझे ज़िन्दगी आज़मा कर चले
और क्या कहूँ..
bahot achche.
चकाचौंध के इस छलावे में हम
खुद अपना ही विरसा भुला कर चले
किताबों में चर्चा उन्हीं की रहा
ज़माने में जो, कुछ नया कर चले
bahut khoob ...
gazal mein gazab ki taaseer ...
वो बादल ज़मीं पर तो बरसे नहीं
समंदर पे सब कुछ लुटा कर चले
बेहतरीन !
इसे, उम्र भर ही शिकायत रही
बहुत ज़िन्दगी को मना कर चले
वो बादल ज़मीं पर तो बरसे नहीं
समंदर पे सब कुछ लुटा कर चले ...
सादा और सरल ग़ज़ल कहने में आपका कोई सानी नही है ..
नये ख़यालात और लाजवाब तरीके से पेश करने का अंदाज़ ... मज़ा आ जाता है आपको पढ़ कर ....
चकाचौंध के इस छलावे में हम
खुद अपना ही विरसा भुला कर चले
बहुत उम्दा शेर है.
*ख़ूबसूरत ग़ज़ल.
इसे, उम्र भर ही शिकायत रही
बहुत ज़िन्दगी को मना कर चले ।
यह तो हार का एक मोती है । वैसे तो सारे का सरा हार ही बहुत कीमती है । बेहद उम्दा गज़ल ।
वो बादल ज़मीं पर तो बरसे नहीं
समंदर पे सब कुछ लुटा कर चले
- बहुत तीखा और सुन्दर |
कितनी खूबसूरत गज़ल है !
हर शेर पर बस वाह वाह वाह !
किताबों में चर्चा उन्हीं की रहा
ज़माने में जो, कुछ नया कर चले
ख़ुदा तो सभी का मददगार है
बशर्ते, बशर इल्तिजा कर चले
वाह वाह वाह
बहुत प्यारी ग़ज़ल है आपकी. सादगी से शेर कह जाना एक कला है, और वो कला आप में है.
मेरी ग़ज़ल की आपने सराहना की,आभारी हूँ.
कुँवर कुसुमेश
हम अपनी यूँ हस्ती मिटा कर चले
मुहव्बत को रूतबा अता कर चले..
Beautiful couplets !
.
.
किताबों में चर्चा उन्हीं की रहा
ज़माने में जो, कुछ नया कर चले..
हर पंक्ति लाजवाब है।
.
bahot achchi lagi.
6.5/10
बेहतरीन ग़ज़ल
कई शेर याद रखे जाने लायक
bahut khoob.....
khoobsoorat.....!!!
bahut khoob.....
khoobsoorat.....!!!
Post a Comment