आजकल ब्लॉग पर आना-जाना कम हो पा रहा है,,,कुछ वक्त की तंगी
कुछ मन का खालीपन ,,,और ऐसा ही कुछ.....!?!
वैसे क़लम भी तो इतना मेहरबान नही रहता मुझ पर कि
अपने खयालात आपसे जल्द-जल्द सांझा करता रहूँ ।
ख़ैर....एक ग़ज़ल ले कर आप की ख़िदमत में हाज़िर हो रहा हूँ ।
अपनी राहनुमाई से नवाज़ेंगे भरोसा है मुझे ............
ग़ज़ल
ज़िक्र न जिन में होगा उसका , उसकी बात न होगी
मेरी, उन तहरीरों की कोई औक़ात न होगी
मौसम की दावत है , अब तो , कुछ मनमानी कर लें
उम्र गुज़र जाने पर हासिल ये सौग़ात न होगी
अब पहले-सा वक्त नहीं , खुश-फ़हमी में मत रहना
सच की राह पे चल दोगे, तो तुम को मात न होगी
उट्ठो , जागो , दुश्मन की हर हरक़त को पहचानो
क्या तब तक ख़ामोश रहोगे जब तक घात न होगी?
क्या इक ऐसा दौर भी होगा , वो युग भी आयेगा
इन्सां की पहचान जहाँ , मज़हब या ज़ात न होगी !
एक झलक, बस एक झलक, बस एक झलक हसरत है
दीद की प्यासी आंखों को कब तक खैरात न होगी?
दिल का दर्द घनेरा अब आंखों तक घिर आया है
बादल दूर न होंगे अब , जब तक बरसात न होगी
रास नहीं आई तुझको रिश्तों की तल्ख़ हक़ीक़त
ऐसी ख़ुद से भी दूरी 'दानिश' बिन बात न होगी
तहरीरों=लिखितें/लेखन
औकात=स्तर
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45 comments:
एक झलक, बस एक झलक, बस एक झलक हसरत है
दीद की प्यासी आंखों को कब तक खैरात न होगी?
एक झलक, बस एक झलक, बस एक झलक हसरत है
दीद की इन प्यासी आँखों को देखें कब दीदार हैं होते...?
दिल का दर्द घनेरा अब आंखों तक घिर आया है
बादल दूर न होंगे अब , जब तक बरसात न होगी
बरस जाओ जी बरस जाओ .......!!
रास नहीं आई तुझको रिश्तों की तल्ख़ हक़ीक़त
ऐसी ख़ुद से भी दूरी 'मुफ़लिस' बिन बात न होगी
वाह ....अब बात तो आप ही जानो .....पर ये सबसे बढ़िया लगा ....!!
अच्छी ग़ज़ल है।
एक झलक, बस एक झलक, बस एक झलक हसरत है
दीद की प्यासी आंखों को कब तक खैरात न होगी?
दिल का दर्द घनेरा अब आंखों तक घिर आया है
बादल दूर न होंगे अब , जब तक बरसात न होगी
रास नहीं आई तुझको रिश्तों की तल्ख़ हक़ीक़त
ऐसी ख़ुद से भी दूरी 'मुफ़लिस' बिन बात न होगी
शेर तो सभी लाजवाब हैं....कुछ बेमिसाल हैं...पर दिल में रच-बस गए वो ये तीन हैं...
बहुत खूब लिखते हैं आप सर जी,,,,
बचवा की aDaDi....
उट्ठो , जागो , दुश्मन की हर हरक़त को पहचानो
क्या तब तक ख़ामोश रहोगे जब तक घात न होगी..
प्रमाण मुफलिस जी .......... बहुत दिनों बाद आपकी ग़ज़ल पढने को मिली है ........ सब के सब शेर लाजवाब हैं, या कहूं तो बेमिसाल हैं........... कमाल का लिखते हैं आप ......
वाहवा मुफलिस जी... अच्छी ग़ज़ल..
एक झलक, बस एक झलक, बस एक झलक हसरत है
दीद की प्यासी आंखों को कब तक खैरात न होगी?
आने जाने और देरी वाला हिसाब आपका ठीक मुझ सा ही है. मैं समझता हूँ कि ये बढ़िया भी है. पढ़ने वाले को आराम मिले और आप भी दिल की बात कह पाएं. ग़ज़ल के शेर बहुत पसंद आये, बाक़ी दुनियारी में उलझे दिल को आपने बखूबी बयां किया है.
एक झलक, बस एक झलक, बस एक झलक हसरत है
दीद की प्यासी आंखों को कब तक खैरात न होगी?
दिल का दर्द घनेरा अब आंखों तक घिर आया है
बादल दूर न होंगे अब , जब तक बरसात न होगी
behatareen/lajwaab, muflis ji sabhi sher anupam hain.
अहा हुज़ूर क्या खूब बात कही है आपने पूरी ग़ज़ल में वेसे मैं
आपके ग़ज़ल कहने से पहले की भूमिका पे ज्यादा फ़िदा हो जाता हूँ
और जैसे ही यह शब्द आया के मन का खालीपन .... शब्द ही जैसे
शुन्य हो गए मेरे ...
जब ग़ज़ल पे आया तो किस शे'र की बात करूँ यह समझ नहीं
आरहा ...मतला दूसरा शे'र आपके मखमली अंदाज़ को बखूबी
बयान कर रहा है ...
मौसम की दावत है , आओ , कुछ मनमानी कर लें
उम्र गुज़र जाने पर हासिल ये सौग़ात न होगी
और इस शे'र को ताज़र्बाकारी की बातें ना कहूँ तो क्या कहूँ...
और यह शे'र मुझे मेरे जैसा लगता है .....
एक झलक, बस एक झलक, बस एक झलक हसरत है
दीद की प्यासी आंखों को कब तक खैरात न होगी?
धूम मचाने को तैयार है यह शे'र ... बढ़ाई क्या दूँ ... बस आपको
सलाम करता हूँ...
आपका
अर्श
waah waah..........har sher jandar........har sher mein itna vajan hai ki padhne wala thodi der to khamosh hi ho jata hai ..........bahut hi khoobsoorti se likha hai...........badhayi
मुफलिस जी नमस्कार। भूमिका पढ़कर थोड़ी उदासी का आभास हुआ। लेकिन ग़ज़ल पढ़कर आनंद आ गया।
मौसम की दावत है , आओ , कुछ मनमानी कर लें
उम्र गुज़र जाने पर हासिल ये सौग़ात न होगी
बिल्कुल सही कहा है। वर्तमान में ही मज़ा है।
Dil jeet liua aapki is hazal ne Bandhu.
मुफलिस जी...
प्रणाम
मैं समझ नहीं पा रही हूँ आपका कैसे शुक्रिया अदा करूँ...
आप आये मेरे ब्लॉग पर और मेरा मार्गदर्शन किया ....
गाने से पहले मैंने इस गाने को सुना ही नहीं......अगर सुनती तो याद आ जाता...
बस इन्टरनेट से लिरिक्स उठाये और गा दिया...गाते वक्त मुझे लगा 'तूफाने' तो कोई शब्द है ही नहीं...फिर सोचा ..जाने दो लिखा है मुझे क्या ...
आपका का बहुत बहुत शुक्रिया.....
इसे मैं ज़रूर ठीक करुँगी...
जहाँ तक नोट्स को नीचे करने का प्रश्न है कोशिश किया था लेकिन ट्रैक बेसुरा होने लगा था....इस लिए इसी पर गाना पड़ा...
एक बार फिर आपका धन्यवाद ..आप please आया कीजिये ..आप आते नहीं हैं.....
मौसम की दावत है , आओ , कुछ मनमानी कर लें
उम्र गुज़र जाने पर हासिल ये सौग़ात न होगी
दिल का दर्द घनेरा अब आंखों तक घिर आया है
बादल दूर न होंगे अब , जब तक बरसात न होगी
रास नहीं आई तुझको रिश्तों की तल्ख़ हक़ीक़त
ऐसी ख़ुद से भी दूरी 'मुफ़लिस' बिन बात न होगी
उट्ठो , जागो , दुश्मन की हर हरक़त को पहचानो
क्या तब तक ख़ामोश रहोगे जब तक घात न होगी..
अब मैं क्या करूंम कोई ऐसा शेर ही नहीं है जो मुझे पसंद न आया हो जो यहाँ नहीं लिखे उसका मतलव ये नहीं कि वो मुझे पसंद नहीं मेरे पास शब्द नेहीं हैं कि तारीफ कर सकूँ। एक ए क अशआर वाह वाह अपने आप कह रहा है। मे ही आप गज़ल सम्राट हैं बधाई और शुभकामनायें
अब पहले-सा वक्त नहीं , खुश-फ़हमी में मत रहना
सच की राह पे चल दोगे तो तुम को मात न होगी
शेर मुझे ख़ास तौर पर पसंद आया.आपकी गजल कमाल करती है.
आपको जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें .....आप यूँ ही बुलंदियों को छुते रहे ...न हालात की ज़िद,,रहे न वगैरा-वगैरा....क़लम भी मेहरबान बनी रहे ...दुआ है ....इसी खुशी में इक मोहब्बत भरी नज़्म मेरे ब्लॉग पे......!!
बहुत ही उम्दा ग़ज़ल कही है आपने. हर शेअर क़ाबिले-तारीफ़ है. आपके कलाम में ख़यालात की पुख़्तगी देखने के लायक़ है.
क्या इक ऐसा दौर भी होगा , वो युग भी आयेगा
इन्सां की पहचान जहाँ , मज़हब या ज़ात न होगी !
उट्ठो , जागो , दुश्मन की हर हरक़त को पहचानो
क्या तब तक ख़ामोश रहोगे जब तक घात न होगी?
क्या कहें! दिल खुश हो गया. निहायत ही उम्दा अशआर हैं. मुबारक हो.
महावीर
बेहतरीन शायरी के लिए आपको बहुत बहुत बधाई ..इत्मीनान से आपकी अन्य रचनाएं भी पढूंगी यूं ही लिखते रहीये
- लावण्या
'मौसम की दावत है…'
'दिल का दर्द……'
क्या बात है!
बधाई।
क्या इक ऐसा दौर भी होगा , वो युग भी आयेगा
इन्सां की पहचान जहाँ , मज़हब या ज़ात न होगी !
behad umda khyal.
bahut achchee lagi aap ki yah gazal.
Janamdin ki dheron shubhkamnayen.
ज़िक्र न जिन में होगा उसका , उसकी बात न होगी
मेरी, उन तहरीरों की कोई औक़ात न होगी ..ziker hmaaraa hum se behter hai ki us mahfil me hai.....
मुफलिस जी आपका अंदाजे बयां वाकई कमाल का है। हमारी ओर से आपको बहुत बहुत बधाई।
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क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?
पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।
मौसम की दावत है , आओ , कुछ मनमानी कर लें
उम्र गुज़र जाने पर हासिल ये सौग़ात न होगी
बहुत सही बात कही है ...
जो कुछ है आज है , कल किसने देखा है ...ये पल नसीब हो न हो ...
इसी पल को जश्न बना लें ...
जन्मदिन की बहुत बहुत बधाइयाँ ...
मुफ़लिस जी, जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
उट्ठो , जागो , दुश्मन की हर हरक़त को पहचानो
क्या तब तक ख़ामोश रहोगे जब तक घात न होगी..
क्या खूब लिखा है मिफलिस जी....बहुत ही बढिया लगी ये गजल ।
आपको जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई और उज्जवल भविष्य हेतु हार्दिक शुभकामनाऎँ!!!!
दिल का दर्द घनेरा अब आंखों तक घिर आया है
बादल दूर न होंगे अब , जब तक बरसात न होगी
jai ho guru ji , ye sher -- special effects by Muflis saheb hai .. meri dil se mubarakbaad , deri se aane ke liye maafi .. aap to sab jaante hi hai .. aur haan janmdin ki bhi badhai .. meri taraf se ek glass matmaila paani ka .. meri agli poem aapko nazar karta hoon ..
aapka
vijay
उट्ठो , जागो , दुश्मन की हर हरक़त को पहचानो
क्या तब तक ख़ामोश रहोगे जब तक घात न होगी?
खूब लिखा है।
क्या इक ऐसा दौर भी होगा , वो युग भी आयेगा
इन्सां की पहचान जहाँ , मज़हब या ज़ात न होगी !
एक झलक, बस एक झलक, बस एक झलक हसरत है
दीद की प्यासी आंखों को कब तक खैरात न होगी?
behad khoobsurat panktiyaan ,padhkar man prasnn ho gaya
मुफ़लिस जी
देश और मन की कई समस्याओं को समेटकर चल रही आपकी ग़ज़ल .
सर यहीं हूं बस पुरानी बीमारी अपनी गिरफ्त में लिये हुए है कि कम्पूटर से जी भाग रहा है और यही कारण है कि आज आपकी ख़ूबसूरत ग़ज़ल भी मन को बांध नहीं पा रही है. माफी की प्रार्थना के साथ....
उट्ठो , जागो , दुश्मन की हर हरक़त को पहचानो
क्या तब तक ख़ामोश रहोगे जब तक घात न होगी?
क्या इक ऐसा दौर भी होगा , वो युग भी आयेगा
इन्सां की पहचान जहाँ , मज़हब या ज़ात न होगी !
पूरी की पूरी गज़ल ही खूबसूरत है पर आज के हालात में ये दो एकदम सही बैठते हैं । आभार ।.
रास नहीं आई तुझको रिश्तों की तल्ख़ हक़ीक़त
ऐसी ख़ुद से भी दूरी 'मुफ़लिस' बिन बात न होगी
--वाह क्या शेर है।
मौसम की दावत है , आओ , कुछ मनमानी कर लें
उम्र गुज़र जाने पर हासिल ये सौग़ात न होगी
दिल का दर्द घनेरा अब आंखों तक घिर आया है
बादल दूर न होंगे अब , जब तक बरसात न होगी
रास नहीं आई तुझको रिश्तों की तल्ख़ हक़ीक़त
ऐसी ख़ुद से भी दूरी 'मुफ़लिस' बिन बात न होगी
यह शेर बहुत पसंद आए. आपकी अगली गज़ल का इंतज़ार रहेगा.
दिल का दर्द घनेरा अब आंखों तक घिर आया है
बादल दूर न होंगे अब , जब तक बरसात न होगी
इस शे'र का दर्द काफी पहले महसूस कर चुकें है हम...
जब ये हुआ था उसी दिन....sms पर उस दिन भी मन उदास हो गया था....
एक झलक, बस एक झलक, बस एक झलक हसरत है
दीद की प्यासी आंखों को कब तक खैरात न होगी?
इस के साथ ही याद आ गयी ....जनाब कैसर साहिब की.......
आ गए आप सामने मेरे...
अब मेरी जान जान में आई.....
उनका ये शे'र तब से जहाँ से नहीं गया.....
वैसी ही कैफियत आपके शे'र में भी महसूस कर रहा हूँ....
और ये शिकस्ता बह्र,,,,,
इसने वो दिन याद दिला दिए...प्राची के पार वाले.....
एक शे'र हमने भी कहा था .....
सो कैसे पायेंगे हम सरहद पर जो गौतम की..
हाथ में ले गांडीव अगर टुकड़ी तैनात न होगी.....
इस गजल को पोस्ट करने का विशेष रूप से आभार.....!!!!!!!!!!
देरी इसी लिए हो गयी के इसे पढ़ते पढ़ते दिल प्राची के पार चला जता था....और कमेन्ट रह जाता था......
aur haan....!!!
QAISER saahib ko salaam kahiyegaa....
utho jaago ..............
kya ik aisa.............
bahut khoob ,inshaallah aisa waqt zaroor ayega ,shayad shruaat ho chuki hai .
हुज़ूर दिल का खाली पन कोई अच्छी बात नहीं है लेकिन अगर दिल का खानी पन ऐसी खूबसूरत ग़ज़लों को जन्म दे तो यक़ीनन अच्छी बात है...जिस ग़ज़ल का हर शेर सवा शेर हो उसके बारे में क्या कहूँ...कलम चूमने को जी चाहता है आपकी...
मौसम की दावत है , आओ , कुछ मनमानी कर लें
उम्र गुज़र जाने पर हासिल ये सौग़ात न होगी
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एक झलक, बस एक झलक, बस एक झलक हसरत है
दीद की प्यासी आंखों को कब तक खैरात न होगी?
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दिल का दर्द घनेरा अब आंखों तक घिर आया है
बादल दूर न होंगे अब , जब तक बरसात न होगी
सरकार मेरे मकते में दिल लूट लिया है आपने...वाह...बात कहने का ये खूबसूरत अंदाज़ किसी को भी आपका दीवाना बना सकता है फिर हम तो चीज ही क्या हैं...बेहतरीन ग़ज़ल के लिए दिली दाल कबूल फरमाएं जनाब और दिल के खाली पन को भरने की कोशिश भी न करें....पाठकों पर मेहरबानी होगी....:))
नीरज
हरकीरत जी के कमेन्ट से मालूम पड़ा की जनाब का जनम दिन भी था लेकिन कब था इसका हमें अंदाज़ा नहीं था चलो कोई बात नहीं देर आये दुरुस्त आये वाली कहावत मानते हुए अब कह देते हैं..." मुबारकां जी जनम दिन दियां लख लख मुबारकां....ज्युन्दे रवो ते दिलकश गज़लां लिखते रवो "
नीरज
दिनों बाद मुफ़लिस जी की ग़ज़ल...अहा! और क्या ग़ज़ल बुनी है सर...
लेकिन पहले की बात पहले। वक्त की तंगी तो समझ में आती है, लेकिन मन का खालीपन..???
सोच रहा हूँ कि मैं क्या करूँ.....क्या कर सकता हूँ। वो फोन पे निपटूंगा खैर..
ग़ज़ल का मतला...शायद अभी तक के मेरे द्वारा पढ़े गये तमाम ग़ज़लों में सबसे जबरदस्त मतला है। सारी तारिफ़ों से परे है गुरूवर...दिल से कह रहा हूँ। रटने लायक, जगह-जग उद्धत करने लायक मतला...तो मैंने रट लिया है।
फिर उम्र गुजर जाने पर हासिल ये सौगात न होगी वाला मिस्रा तो हाय रेsssss...
फिर दीद की प्यासी आँखों वाला शेर....बहुत खूब सर, इतना कि वाह-वाह हमारी चीख बन कर इधर कश्मीर से लुधियाने तक पहुँच रही होगी।
बादल दूर न होंगे का दर्द उभर कर आ रहा है। फिर मनु जी की टिप्पणी से इसे जोड़ कर भी देखता हूँ....और मौन रह जाता हूँ।
मक्त हमेशा की तरह जबरदस्त।
अर्से बाद एक लाजवाब ग़ज़ल पढ़ने को मिली है।
आप ठीक हैं ना?
जनाब 'मुफलिस' साहब,
गज़ल के हर शेर की बाबत टिप्पणियों में इतना कुछ लिखा जा चुका है,
कि हमारे लिये कोई गुंजाइश ही नहीं रह गयी है...
मुआफ कीजिये, इस बाबत आपसे ही शिकायत करने की गुस्ताखी कर रहा हूं..
(इंसानी फितरत है, अपनी गलती आसानी से कौन मानता है)
वैसे मैं भी नजर रखूंगा, हो सके तो ई-मेल से नई पोस्ट की इत्तला देने की मेहरबानी फरमाते रहें
इनायत होगी..
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद
shahidmirzashahid@gmail.com
अब पहले-सा वक्त नहीं , खुश-फ़हमी में मत रहना
सच की राह पे चल दोगे, तो तुम को मात न होगी
दिल का दर्द घनेरा अब आंखों तक घिर आया है
बादल दूर न होंगे अब , जब तक बरसात न होगी
Amazingly beautiful..Muflis ji....!!
second one to simply wow!! wd fantastic depth
एक झलक, बस एक झलक, बस एक झलक हसरत है
दीद की प्यासी आंखों को कब तक खैरात न होगी?
दिल का दर्द घनेरा अब आंखों तक घिर आया है
बादल दूर न होंगे अब , जब तक बरसात न होगी..
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! दिल को छू गई आपकी ये शानदार ग़ज़ल!
उट्ठो , जागो , दुश्मन की हर हरक़त को पहचानो
क्या तब तक ख़ामोश रहोगे जब तक घात न होगी?
यह तो एक शेर है लेकिन हकीकत यह है कि मेरे सामने समस्या थी कि आखिर किस-किस शेर की तारीफ की जाये. एक तो इतनी मुश्किल बहर, ऊपर से से ऐसे रदीफ़ और काफिये, लगता है प्रार्थी की रोजी रोटी पर संकट आ ही गया. मैं खुद को इस गजल के बाद बहुत कमतर महसूस कर रहा हूँ, जलन का एहसास हो रहा है. आखिर ऐसा मैं कब लिख पाऊँगा?
दिल की गहराई में जा कर भावनाओं को टटोलते हुए अनजाने में ही बहुत कुछ कुरेद गयी . एक मार्मिक गहरी और बेहतरीन रचना
मौसम की दावत है , अब तो , कुछ मनमानी कर लें उम्र गुज़र जाने पर हासिल ये सौग़ात न होगी...
bahut umda gazal hai...
कुछ और नही बस शानदार .....
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