Friday, January 1, 2010

आप सब को नव-वर्ष
2 0 1 0 की ढेरों शुभकामनाएं
आईये....हम सब मिल कर दुआएं करें कि
आने वाला साल दुखों की दवा बन कर आये
सुखों का खज़ाना भी साथ लाये....
इंसान,,,इंसान की क़द्र करे....और हर बशर
दूसरों के दुखों को भी बांटने का जतन करे......
एक ग़ज़ल हाज़िर करने की इजाज़त चाहता हूँ
उम्मीद करता हूँ कि आप मेरी प्रार्थना में शामिल रहेंगे.........






ग़ज़ल


नयी दस्तक , नए आसार , ओ साथी
सँवर जाने को हैं तैयार , ओ साथी


करें, मस्ती में हो सरशार , ओ साथी
नई इक सुबह का दीदार , ओ साथी


नया साल आये , तो, ऐसा ही अब आये
मने, हर दिल में इक त्यौहार , ओ साथी


हर इक आँगन में महकें आस के बूटे
सजे ख़ुशबू से हर घर-द्वार , ओ साथी


चलो, नफ़रत का हर जज़्बा मिटा कर हम
मुहोब्बत का करें इज़हार , ओ साथी


जियें इंसान सब इंसान ही बन कर
बहुत अब हो चुके अवतार , ओ साथी


करें कोशिश यही, हर ख़्वाब हो पूरा
मिले हर सोच को आकार , ओ साथी


लगन, मेहनत की राहें सख्त हैं, माना
कभी मानें नहीं हम हार , ओ साथी


करें 'दानिश' यही अब प्रार्थना मिल कर
चमन अपना रहे गुलज़ार , ओ साथी



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सरशार = उन्मत्त , परिपूर्ण
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26 comments:

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' said...

्जनाब मुफलिस साहब आदाब,
सुबहान अल्लाह
नये साल की शुरूआत इतनी पाक दुआओं से की है आपने
अल्लाह आपकी सभी दुआ कुबूल करे- (आमीन)
हर शेर पर दाद दी जानी चाहिये
ये शेर क्या कह गये आप
जियें इंसान सब इंसान ही बन कर
बहुत अब हो चुके अवतार, ओ साथी
अल्लाह नये साल में और बुलंदी अता फरमाये
-आमीन
शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

मनोज कुमार said...

आपको नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनाएं।

Yogesh Verma Swapn said...

लगन, मेहनत की राहें सख्त हैं, माना
कभी मानें नहीं हम हार , ओ साथी

करें 'मुफ़लिस' यही अब प्रार्थना मिल कर
चमन अपना रहे गुलज़ार , ओ साथी

नव वर्ष २०१० की हार्दिक मंगलकामनाएं. ईश्वर २०१० में आपको और आपके परिवार को सुख समृद्धि , धन वैभव ,शांति, भक्ति, और ढेर सारी खुशियाँ प्रदान करें . योगेश वर्मा "स्वप्न"

Pushpendra Singh "Pushp" said...

खुबसूरत रचना आभार
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं ................

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

सुंदर गजल कही है।

नव वर्ष की अशेष कामनाएँ।
आपके सभी बिगड़े काम बन जाएँ।
आपके घर में हो इतना रूपया-पैसा,
रखने की जगह कम पड़े और हमारे घर आएँ।
--------
2009 के ब्लागर्स सम्मान हेतु ऑनलाइन नामांकन
साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन के पुरस्कार घोषित।

डॉ टी एस दराल said...

बहुत सुन्दर अल्फाजों से सजी रचना।
भाव भी अति सुन्दर।
नव वर्ष से यही आशाएं हैं।
मुफलिस जी, नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।

सर्वत एम० said...

सबसे पहले साल-ए-नव पर मुबारकां, बधाइयाँ और बेशुमार प्यार. बात इस गजल के अशआर की. वाकई जरूरत इन्हीं दुआओं की है आज के समाज को. इंसानियत को जितना नीचे गिराया जा चुका है, अब जरूरत है उसे उसका मकाम वापस दिलाने की. मैं इस गजल के एक एक लफ्ज़ से इत्तिफाक रखता हूँ.
लेकिन, अगर ये अशआर मैं ने कहे होते तो मुफाईलुन मुफाईलुन फऊलुन में ही कहता. मुआफी की दरख्वास्त है लेकिन इस बहर/वजन में रवानी है, जबकि ३ मुफाईलुन में रवानी मजरूह हो रही है. फऊलुन को को कहीं कहीं जबरन मुफाईलुन बनाना पड़ा है, ऐसा मुझे महसूस होता है, हो सकता है मैं गलतफहमी का शिकार हूँ.
मुफलिस भाई, शायद आप ने भी महसूस किया होगा कि मेरा बताया (मैं उस्ताद नहीं हूँ) वजन शायद बढ़िया काम करता. मुझे चूंकि कुछ शेर चेष्टित लगे इस लिए बार बार यही एहसास कचोट रहा था , काश २ मात्राएँ कम होतीं.
एक बार फिर नए साल की मुबारकबाद.

mukti said...

सही लिखा है हम इन्सान बने रहें यही अच्छा है. एक अच्छा इन्सान बनना बहुत बड़ी बात होती है.
आपको भी नववर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!!

manu said...

नया साल मुबारक हो सभी को.....

मफाईलुन मफाईलुन मफाईलुन.........

एकदम बेखटका ग़ज़ल मुफलिस जी......
इसमें फऊलुन तो है ही नहीं..जिसे जबरदस्ती मफाईलुन बनाने की बात हो....!
आज काफी दिन बाद ग़ज़ल की बात की है हमने....
हो सकता है के इतने दिनों में कुछ भूल भाल गए हों....

इसीलिए सर्वत जी से माफ़ी मांगते हैं....

सर्वत जी...
खटके वाली ग़ज़ल पढनी हो तो इस बार हमारे ब्लॉग पे आइये.....
हमने डाली है खटकती ग़ज़ल...
:)
:)
एक बार फिर से सभी को नया साल मुबारक हो....
बहुत बहुत मुबारक हो.....

नया साल आये तो ऐसा ही अब आये....
जी हुज़ूऊऊउर.

Asha Joglekar said...

आमीन ! सारे शेर बहुत सुंदर, पूरी गज़ल ही आशा का
संचार करती हुई ।

चलो, नफ़रत का हर जज़्बा मिटा कर हम
मुहोब्बत का करें इज़हार , ओ साथी

जियें इंसान सब इंसान ही बन कर
बहुत अब हो चुके अवतार , ओ साथी
बढिया ।

Asha Joglekar said...

नये साल में आपकी लेखनी और परवान चढे ।

daanish said...

जी , मनुजी ...
आपने दुरुस्त फरमाया
रवानी में कमी तो सर्वत जी की ज़ाती राए है
दोनों बहरों में रवानी क़ायम है,,,रवां-दवाँ है
दरअस्ल....
(म.फा.ई.लुन X ३)
और
(म.फा.ई.लुन.+म.फा.ई.लुन+फ.ऊ.लुन)
दोनों की अपनी खासियत है
एक सालिम बहर है
और दूसरी में ज़िहाफ़ का इस्तेमाल है ,,बस
तकनीकी नज़रिए से 'इस' बेहर को निभा पाना कोई आसान काम नहीं ,,,
लफ्ज़ ख़ुद फिसलने या फैलने की
कोशिश करते हैं ,,,
संजोना पड़ता है .......
खैर ,,,,अन्य तब्सिरों का इंतज़ार रहेगा
स्वागत है .

अपूर्व said...

एक उम्मीदों से भरे नये साल की इब्तिदा करने के लिये इससे बेहतर अशआर और कहीं मिल भी नही सकते थे..
और यह शे’र तो वक्त के सफ़हों के बीच संजो कर रखने लायक है
जियें इंसान सब इंसान ही बन कर
बहुत अब हो चुके अवतार , ओ साथी

इस प्रार्थना मे हमारा मामूली स्वर भी शामिल माने..

इस्मत ज़ैदी said...

muflis sahab apko naya sal mubarak ho aur apki kahi ankahi saari duaen baargahe rabbulizzat men qubool hon ameen.

ghazal ka har lafz apni sachchai bayan kar raha hai ,mubarak ho

हरकीरत ' हीर' said...

लगन, मेहनत की राहें सख्त हैं, माना
कभी मानें नहीं हम हार , ओ साथी

करें 'मुफ़लिस' यही अब प्रार्थना मिल कर
चमन अपना रहे गुलज़ार , ओ साथी



मुफलिस जी sadgi bhari duaayein .....jitna paak saaf आपका dil है utani paakizgi aapki duaaon mein भी dikh rahi है .....rabb aapki duaaon par mehar kare .....aamin ....!!

श्रद्धा जैन said...

करें कोशिश यही, हर ख़्वाब हो पूरा
मिले हर सोच को आकार , ओ साथी

bahut achchi soch ke saath aapne nav varsh ka swagat kiya hai
nav varsh ki hardik shubhkamana

गौतम राजऋषि said...

आह, ये हुई न ब्लौगिंग!! ये हुई न टिप्पणियां, जिसके लिये हम सदा तरसते रहते हैं। सर्वत साब और मनु जी की जय हो...!!!

आपकी ये ग़ज़ल पहले कहाँ पढ़ी मैंने गुरुवर? कहीं छपी है ना?

मतला और हुस्ने-मतला ग़ज़ब का बना है। "बहुत अब हो चुके अवतार ओ साथी" क्या बात कही है सर जी। मजा आ गया...

और "मिले हर सोच के आकार" की प्रार्थना में हम भी शामिल हैं आपके संग।

स्वप्न मञ्जूषा said...

जियें इंसान सब इंसान ही बन कर
बहुत अब हो चुके अवतार , ओ साथी

मुफलिस जी,
आपकी ग़ज़ल की तारीफ जब इतने वड्डे-वड्डे ग़ज़लगो कर चुके हैं...तो हम क्या कहें ??
आपकी लेखनी के तो सभी क़ायल हैं...
बहुत खूबसूरत है आपकी कलम...और क़लाम..

दिगम्बर नासवा said...

मुफ़लिस जी ....... मैं पिछले कुछ दिनो से नेट पर नही आया और आपकी इस लाजवाब ग़ज़ल से महरूम रह गया .......... आपको और आपके परिवार को नये साल की बहुत बहुत मुबारक ............

ushma said...

करें 'मुफ़लिस' यही अब प्रार्थना मिल कर
चमन अपना रहे गुलज़ार , ओ साथी...
bahut sundar rchnaa hai ! hm bhi duaa karte hain........
चमन अपना रहे गुलज़ार , ओ साथी !
nyaa sal mubaark !

निर्मला कपिला said...

चलो, नफ़रत का हर जज़्बा मिटा कर हम
मुहोब्बत का करें इज़हार , ओ साथी

जियें इंसान सब इंसान ही बन कर
बहुत अब हो चुके अवतार , ओ साथी
वाह लाजवाब और नये साल मे सही सन्देश । आपको टिप्पणी करते हुये संकोच होता है मेरी कलम इतनी सशक्त नहीं है इस लिये।
बहुत देर से आने के लिये क्षमा चाहती हूँ कई दिन बाद 2-3 दिन से ही सक्रिय हुई हूँ । आपको नये साल की बहुत बहुत शुभकामनायें

रचना दीक्षित said...

चलो, नफ़रत का हर जज़्बा मिटा कर हम
मुहोब्बत का करें इज़हार , ओ साथी

जियें इंसान सब इंसान ही बन कर
बहुत अब हो चुके अवतार , ओ साथी

नव वर्ष का एक बहुत बेहतरीन तोहफा

alka mishra said...

आपके मुबारक कदम मेरे गरीब खाने में पड़े ,खुशामदीद

इस ग़ज़ल के रूप में की गयी दुआएं भगवान् स्वीकार करें .......

Pushpendra Singh "Pushp" said...

इस बेहतरीन रचना के लिए
बहुत बहुत बधाई ......................

कडुवासच said...

... बेहद प्रभावशाली व प्रसंशनीय गजल !!!!

Alpana Verma said...

'जियें इंसान सब इंसान ही बन कर
बहुत अब हो चुके अवतार , ओ साथी'
- वाह!बहुत ही उम्दा बात कही है!

-ग़ज़ल बहुत ही प्रभावी है.
नये साल की बहुत बहुत शुभकामनाएँ आप को भी.